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क्या रास्ता अपनाएँ मुसलमान? | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आज के दौर में पूरी दुनिया के मुसलमान एक अलग तरह की परिस्थिति से गुज़र रहे हैं. चाहे मध्य पूर्व हो, दक्षिण एशिया हो या इंडोनेशिया. इस परिस्थिति से निकलने का रास्ता भी उन्हीं को खोजना है और शायद यही सबसे बेहतरीन हल होगा उनकी दिक्कतों का. पढ़िए इस विषय पर आपके विचार हमें इन पाठकों के भी पत्र मिले हैं- मेघल पटेल, लंदन. संजय, भिवानी, भारत. संदीप, अमरीका. गौरव श्रीवास्तव, अमरीका. अबु मोहम्मद, जनकपुर, नेपाल. अब्दुल, ब्रिटेन. बोरूनदेव चौधरी, अमरीका. शीला मदान, शिकागो. रोनी यादव, अटलांटा, अमरीका. सलीम कुरैशी, भारत. हरीश अरोड़ा, भारत. रोहित, दिल्ली. हिमांशु वर्मा, भारत. मुंबई बमकांड में मरने वाले केवल हिंदू ही नहीं थे बल्कि मुसलमान भी थे. इसलिए यह कहना ग़लत है कि आतंकवादी केवल मुसलमान ही होते हैं. वो किसी भी कौम के हो सकते हैं और उनका किसी भी कौम से कोई मतलब नहीं होता है. जावेद अब्बास, सीकर, राजस्थान. अभी लेबनान में जो हमला हो रहा है उसे करवाने वाले क्या आतंकवादी नहीं हैं. क्या ख़्याल है आप का अमरीका और इसराइल के बारे में. आतंकवाद को जन्म कौन देता है, मुसलमान या मोदी-बुश जैसै लोग. हम लोग मुसलमानों को कभी अच्छी नज़र से देखते कहाँ है. अगर देखते तो आज आप के सामने यह सवाल पैदा न होता. आतंक तो हम सब किसी न किसी रुप मे फैला रहें हैं, चाहे सुक्ष्म आतंक हो या विराट सब हमारे बीच से ही पैदा होता है और इसका फल हम लोग खुद भोगते रहे हैं. आशिक, दोहा, कतर. मुसलमान ज़्यादातर कट्टर होते है ऐसा मेरा व्यक्तिगत विचार है क्योंकि धर्म एक है, परमात्मा एक है. वैसे तो यह बात किसी को भी जल्दी से समझ नहीं आती परन्तु मुसलमानों को समझाना बहुत ही मुश्किल है. मेरे विचारों से यदि आपकी भावना आहत होती हों तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ. धीरज प्रियदर्शी, पीतमपुरा, दिल्ली दंगा फसाद करने वाले कुछ मुट्ठी भर लोग ही होते हैं. और उनके अलावा इस समाज में होते हैं, कुछ मौकापरस्त लोग जो इन परिस्थितियों का फायदा उठाते हैं, और पूरी कौम को बदनाम करते हैं. ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए, इस परिस्थिति से निकलने का रास्ता भी वही तलाश सकते हैं. हमारे दिलों में जो कटुता भर गयी है, उसे हमें ही धोना पडेगा. ऐसी विषम परिस्थितियों में ही कुछ मुसलमान बंधुऒं ने सद्भाव और सौहार्द की मिसाल भी कायम की है. लेकिन अभी बहुत कुछ सोचने की जरुरन है कि आखिर क्यों अधिकांशतः मुसलमान ही इन घटनाओं में लिप्त पाये जाते हैं. और इस सवाल का जवाब केवल वो ही खोज सकते हैं. राम शब्द. बैंगलौर मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ और मुझे इस पर गर्व है. मैं किसी तरह के चरमपंथ की हिमायत नहीं कर रहा हूँ लेकिन हाल ही में जब मुंबई में 200 लोग मरे तो लोगों ने मुसलमानों को चरमपंथी कह दिया. लेकिन जब गुजरात में 2000 मुसलमानों की जानें गई थीं तो कितने लोगों ने इसे आतंकवाद का नाम दिया? लोग कहते हैं कि मुसलमान अशिक्षित हैं लेकिन ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की शिक्षा का विरोध करते हैं. जिन मुसलमानों ने गोधरा कांड में हिस्सा लिया या मुंबई में बम धमाके किए उन्हें फाँसी पर लटका दिया जाना चाहिए लेकिन साथ ही क्या आप गुजरात में मुसलमानों की हत्याएँ करने वाले हिंदुओं को फाँसी पर लटकाएँगे? मोहम्मद तारिक, पैरिस मेरे विचार मे हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं है. अगर ऐसा होता तो क्या हम हमारे माननीय राष्ट्रपति को शक की निगाह से देखेंगे? मुसलमानों को भी समाज की मुख्यधारा से जुड़कर इन आपराधिक तत्वों के ख़िलाफ़ लड़ना होगा. हेमाराम सेवडा, रामपुरा, भारत जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के छात्रों को प्रिया सिनेमा क्या पूरे दिल्ली मे सम्मान से देखा जाता है. जैसी जगह वैसा भेष. जैसे कोई लड़की पुरानी दिल्ली या निजामुद्दीन मे मिनी स्कर्ट मे नही जा सकती वैसे खुर्रु जी का वेश प्रिया सिनेमा के आस पास के लोगो के टिप्पणियों का कारण बन सकता है. मध्य पूर्व मामलों पर पीएचडी कर रहे खुर्रु जी को पता ही होगा कि ईरान घूमने जाने वाली विदेशी महिलाओं को भी बुर्का पहनना ही पड़ता है, भले ही वो मुस्लिम न हों. चंद्रकांत सिंह, मैड्रिड, स्पेन यह बात तो सही है कि सब मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं लेकिन फिर भी ये सभी लोग आतंकवादियों के साथ दिल से जुड़े हुए हैं. अगर दाऊद इब्राहीम कुछ करता है तो भी बहुत ख़ुश होते हैं और अगर भारत में हिंदुओं के ख़िलाफ़ कुछ होता है मिठाइयाँ बंटती हैं. आशू, मेरठ हमारे देश में मुसलमान लोग आतंकवाद पर आवज़ नही उठाते. वे जानते हैं सभी आतंकवादी मुसलमान हैं. ये लोग अपने देश भारत को कम पाकिस्तान को अधिक चाहते हैं. मैं तो कहता हुँ तुम सब मुसलमान भारत छोड़ कर पकिस्तान चले जाओ और हम भारतीयों को शांति से रहने दो. हमने तुम लोगों को रोका नहीं है. शंकर, मुंबई इन विस्फोंटों के बाद लोगों दिलों में मुसलमानो के प्रति द्वेष स्वाभाविक तो है पर उचित नहीं है. दीवार पर कील लगाते समय अगर धोखे से हथौड़ी अंगूठे पर लग जाए तो हम उस निर्जीव हथौड़ी पर भी अपना गुस्सा निकालने की कोशिश करते हैं, और यहां तो पूरी ज़िंदा क़ौम है. भारत ने सिख आतंकवादियों को भी देखा है, और इसके लिये बाक़ी सिखों को अपनी वेशभूषा बदलने की ज़रूरत कभी नहीं पड़ी, इसी तरह कुछ लोगों की करतूत के कारंण मुसलमानो को अपने रीति रिवाज और पहनावे को बदलने की क़तई ज़रूरत नहीं है. यह भय और आतंक कुछ दिनों का है, कल फिर हम पहले की तरह अमन और भाईचारे से रहेंगे. यह उम्मीद रखनी चाहिए. और जहां तक अंर्तदेशीय आतंकवाद का सवाल है वो कहीं भी और किसी भी धर्म के रूप मे हो सकता है, फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि कुछ को आसानी से दबाया जा सकता है और कुछ को दबाने मे वक्त लगता है, सिख, उलफ़ा, त्रिपुरा टाइगर्स, नागा विद्रोही, लिट्टे, माओवादी, आयरिश और स्पेनिश चरमपंथी और सबसे बढ़कर 1971 का बंग्लादेश इसके अच्छे उदाहरण हैं. इदरीस ए. खान, रियाध, सऊदी अरब मुसलमान वह क़ौम है जहाँ अमीर और ग़रीब के बीच की खाई बहुत स्पष्ट है. मुसलमानों ने हमेशा दूसरों को धर्मपरिवर्तन के लिए उकसाया और फिर उनका ख़्याल नहीं रखा. जैसा कि लेख में ही लिखा है मुसलमान दुनिया भर में बमविस्फोट कर रहे हैं और फिर अन्य लोगों को अपनी दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. राजेश, क्लीवलैंड, अमरीका भारत में आज़ादी के 59 वर्षों बाद भी अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों के लिए इस तरह की विकृत मानसिकता का होना वाकई शर्म की बात है. ऐसे समय में जबकि हमें मिल-जुलकर देश में फैले आतंक को समूल नष्ट करने का उपाय ढूँढना चाहिए, हम व्यर्थ ही धार्मिक दुराभाव फैलाकर अपनी शक्ति नष्ट कर रहे हैं. नियति वर्मा, मुंबई, भारत ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि मुस्लिम समुदाय के लोगों पर काफ़ी अत्याचार किया गया है. इसके लिए ज़िम्मेदारी गोधरा जैसी घटनाओं की भी बनती है. सैफ़, दुबई. सभी मुसलमानों को मिलकर आतंकवाद का विरोध करना चाहिए. जान तो किसी मुसलमान की भी जा सकती है. लोगों को भड़काने वाले नेताओं की बात नहीं माननी चाहिए. संजीव कुमार, नवी मुंबई, भारत हालांकि यह सच है कि जब भी इस तरह की कोई घटना होती है तो समझा जाता है कि इसके पीछे मुस्लिमों का हाथ है पर कोई भी सच्चा मजहब ऐसा नहीं सिखाता है. भारत में मेरे एक मुस्लिम मित्र ने हमेशा मेरी मदद की है पर उसके मन में यह धारणा है कि हिंदू ख़राब होते हैं. मुझे समझ में नहीं आता कि वह ऐसा क्यों सोचता है जबकि वो एक अच्छा इंसान है. योगेश, न्यूज़ीलैंड ऐसा सोचना ग़लत है क्योंकि इस देश में मुसलमान एक जुझारू कौम है. अतीक़ रहमान, जेदाह यह कहना कि मुसलमान देशद्रोही हैं, आतंकवादी हैं, बिल्कुल ग़लत है. मुसलमानों की आलोचना करने वालों से पूछना चाहता हूँ कि नेवी वार रूम घोटाले में तो एक भी मुसलमान नहीं है. इस बारे में आप लोग क्या कहेंगे. हाँ, मुसलमानों पर जो अत्याचार होते हैं उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ युवा भड़क सकते हैं और आतमकवादी इनका इस्तेमाल कर सकते हैं. समर अब्बास, ओमान मेरे विचार मे हर मुस्लिम आतंकवादी नहीं है. अगर ऐसा होता तो क्या हम हमारे माननीय राष्ट्रपति को शक की निगाह से देखेंगे? लेकिन ये भी कहना ग़लत नही होगा की हर बड़ी वारदात के पीछे किसी न किसी इस्लामिक संगठन का हाथ है. मेरे विचार से मुट्ठी भर मुस्लिम दहशतगर्दो के कारण पूरी कौम को बदनाम करना उचित नही है. मुसलमानों को भी समाज की मुख्यधारा से जुड़कर इन आपराधिक तत्वों के ख़िलाफ़ लड़ना होगा.मुकेश सकरवाल, ब्रिटेन मैं मानता हूँ कि ऐसी घटनाओं के लिए केवल मुसलमानों को ही दोष देना ठीक नहीं है पर ऐसा क्यों होता है कि किसी भी दुर्घटना के बाद जो लोग पकड़े जाते हैं वो अक्सर मुस्लिम समुदाय के होते हैं. संजय सिंह, न्यूज़ीलैंड सबसे पहले तो यह समझ लें कि केवल भारत ही आतंकवाद का शिकार नहीं है बल्कि पूरा विश्व इस आग में झुलस रहा है और इसलिए केवल भारत की दृष्टि से मुसलमानों को अल्पसंख्यक न कहें. यह बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आपने ही दुनिया भर के कई देशों को आतंकवाद के शिकार के रूप में गिनाया है. इन्हें अल्पसंख्यक कहकर आप लोग हिंदुओं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं. हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता केवल वोट की खातिर मुसलमानों को हिंदुओं द्वारा सताए जाने का संदेश पूरे विश्व को दे रहे हैं. मेरे भी कई मुसिलम मित्र हैं जिन्होंने विस्फोट की ख़बर के तुरंत बाद हमारी ख़ैर-ख़बर ली और उस रात हमें घर लौटा न देख वे लोग बेचैन हो गए. हम लोग सभी मुसलमानों को शक की निगाह से नहीं देख रहे हैं. यह जवाबदारी अब स्वयं उनकी है कि कौन ऐसा मुस्लिम युवक है जो कि दहशतगर्दों के हाथ का खिलौना बन रहा है. भारत के धर्मनिरपेक्ष नेताओं पर तो अब हमें बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहा. मनोज शराफ़, ठाणे, भारत सबसे पहले मैं आपको यह समझाना चाहूँगा कि मुसलमान वह कहलाता है जो इस्लाम के सिद्धांत का पालन करता हो. आज के दौर में जैसे आपने सही कहा कि मुट्ठी भर लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए या फिर जो भी उनका मक़सद है उसके लिए मासूम लोगों को मारा या फिर उनको तकलीफ़ गी. यह इस्लाम के उसूलों के ख़िलाफ़ है. जो आदमी नाहक़ किसी का ख़ून करे या मासूम लोगों पर बम गिराए या किसी भी धर्म की निंदा करे उसे इस्लाम के मूल सिद्धांत के मुताबिक मुसलमान कहलाने का हक़ नहीं है. मोहम्मद शफ़ी, कर्नाटक नहीं मैं नहीं सोचता कि कुछ बम धमाकों की वजह से पूरी मुसलमान कौम को बदनाम करना ठीक है . किन्तु मैं मानता हूँ कि किसी भी व्यक्ति के मन में मुसलमानों के प्रति द्वेष होना सामान्य है क्योंकि आतंकवादी ज्यादातर मुसलमान ही होते है. ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए मुसलमानों को सामने आना चाहिए और खुले आम इस प्रकार की घटनाओं की निंदा करनी चाहिये. इसके अलावा उन्हें पुलिस की सहायता करनी चाहिये. यह बहुत संभव है कि मुंबई में ताजा धमाकों में मुसलमान आतंकवादियों का ही हाथ हो. मैं सभी मुसलमान भाइयों से अनुरोध करूँगा कि वो पूरे मन से पुलिस की सहायता करें और दोषियों को पकड़वाने में सरकार की मदद करें. यदि एसा होता है तो किसी के भी मन में मुसलमानों के प्रति द्वेष भावना नहीं होगी. अमित, बंगलौर सब मुसलमान आतंकवादी नहीं होते लेकिन उनकी गतिविधियाँ शक ज़रूर पैदा करती हैं. मेरे बचपन में हमारे गाँव में रहने वाले हिंदू-मुसलमान मिलजुल कर सारे त्योहार मनाते थे. लेकिन आज ऐसा नहीं है. इससे हम क्या सोचें? चंद्रभूषण सिंह, हावड़ा मुसलमानों को अपना कट्टरपंथी नज़रिया बदलना होगा. इंसान एक है, उसका भगवान भी एक होता है. यह बात मुसलमानों को समझनी होगी. वे कहते हैं जहाँ भी मुसलमान मुश्किल में होंगे हम जा कर उनकी रक्षा करेंगे. यह संभव नहीं है. जयराम चौधरी, जोधपुर, राजस्थान दहशत फैलाने वाले मुट्ठीभर लोग हैं लेकिन उसे पनाह देने वाले मुट्ठीभर लोग नहीं हैं, यदि ऐसा रहता तो दहशतगर्द सलाखों के पीछे रहते और थोड़े-थोड़े वक्त पर भारतवासियों को ऐसी त्रासदी से नहीं गुजरना पड़ता. मुसलमानों में भी अच्छे लोग हैं फिरभी जहाँ मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं जैसे कश्मीर वहाँ हिन्दुओं का क्या हाल है यह सारा दुनियाँ जानता है. आजकल जिसतरह दुनियाँ का सिनेरियो मीडिया प्रस्तुत कर रहा है उससे तो यही लगता है कि इस्लाम खतरे में है और बाकी कौम उसे दबा रहे हैं, परन्तु सच्चाई इसके उलट है. जबतक हमारे राजनेता वोट बैंक से ऊपर उठकर स्वस्थ समाज, समृद्ध राष्ट्र के बारे में दृढ़ता नहीं अपनाएँगे लोगों में ऐसे ही भ्रान्तियाँ फैलेगी, लोग एकजुट नहीं रह पाएँगे. सुशील कुमार झा, गुड़गाँव, हरियाणा मुसलमान लोग आधुनिक हो जाएँ और आतंकवाद पर आवाज़ उठाएँ. बमकांड होते हैं मुसलमान आगे नही आते चुप हो कर बैठे रहते हैं. और समाज मुसलमानों पर शक करता है. राम, यूके झा जी, एक सुधार चाहूँगा. 'पकड़े जाने वाले अधिकतर मुसलमान होते हैं'. जी नहीं. 'पकड़े जाने वाले सब मुसलमान होते हैं'. चाहे वह एमएफ़ हुसैन का मामला हो या इस तरह का और कोई मामला. क्यों मुसलमान इस बारे में आवाज़ नहीं उठाता. उन्हें तो राष्ट्रगान से एतराज़ है. वे हर बुरे काम में एकजुट हो जाते हैं. मैं तो पूरी क़ौम को इस तरह की हरकतों का ज़िम्मेदार मानता हूँ. रॉनी, अटलांटा, अमरीका ऐ मालिक तेरे बंदे ऐसे हों हमारे कर्म ,नोकी पर चले और बदी से हटें ताकि हँसते हुए निकले दम .पाँचों उंगलियाँ एक बराबर नहीं होतीं. हम सब का इस पृथ्वी पर चार दिन का जीवन है. कोई भी इंसान बुराई के साथ पैदा नहीं होता. ऊपर वाले ने एक ही जात बनाई है इंसान की जो कि इन्सानियत से भरपूर है. हर देश में अच्छे बुरे सभी हैं किसी भी को शक की नजर से ना देखो तथा मैत्री पूर्वक वार्तालाप करना चाहिए. शीला मदान, शिकागो | इससे जुड़ी ख़बरें इस्लामी देशों के योगदान पर प्रदर्शनी13 मार्च, 2006 | मनोरंजन न्यूयॉर्क में 'मुस्लिम फ़िल्मोत्सव'20 अप्रैल, 2006 | मनोरंजन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से नाराज़ नेता24 अप्रैल, 2006 | भारत और पड़ोस 'हमलों के मुद्दे पर बंटे हैं ब्रितानी मुस्लिम'04 जुलाई, 2006 | पहला पन्ना | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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