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गुरुवार, 25 मई, 2006 को 10:52 GMT तक के समाचार
 
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"दूषित" पानी पीने को मजबूर
 
कुआं खोदते लोग
टेलिंग पांड् के पास कुआं खोदकर पानी पीने की मजबूरी है
जादूगोड़ा की यूरेनियम खान से निकलने वाला कचरा जहां फेंका जाता है उसके बिल्कुल पास ही कुआं खोद कर लोग पानी पीते हैं.

टेलिंग पांड्स वो स्थान होता है जहां खान से निकलने वाला हज़ारों टन कचरा फेंका जाता है. यहां आधिकारिक रुप से जाना मना है लेकिन सिर्फ सौ डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर आबादी है.

जब हम टेलिंग पांड्स के पास बसे एक गांव में पहुंचे तो पाया कि लोग वहां कुआं खोद रहे थे.

यह पूछे जाने पर कि क्या ये पानी दूषित नहीं होगा तो गांववालों का कहना था " अब चेकअप कौन करेगा. गंदा है तो गंदा है. हमारे पास और कोई चारा नहीं. पानी की कोई सुविधा नहीं है. हमें तो यही पानी पीना पड़ता है. "

समस्या सिर्फ इन्हीं लोगों की नहीं है. जादूगोड़ा से होकर सुवर्ण रेखा नदी बहती है.

इस नदी में कारखाने से निकलने वाला गंदा पानी फेंका जाता है. कंपनी का कहना है कि यह पानी साफ करके फेंका जाता है लेकिन इस नदी के रास्ते होकर गुज़रने वालों का कहना है कि इस पानी से चर्म रोग होते हैं. खुजली बढ़ती है.

ट्रक
ट्रको में यूरेनियम का अयस्क ले जाया जाता है जो आबादी से होकर गुज़रता है
इतना ही नहीं इसी नदी में सब्ज़ियां धोई जाती हैं जिन्हें लोग खरीदते हैं और खाते हैं.

नदी में सब्ज़ियां धो रहे मुंशी महतो का कहना था " नदी का पानी बहुत ख़राब है. खदान नहीं था तो पानी ठीक था. अब पानी गंदा है. हम इसमें से होकर आते जाते हैं तो पैरों में खुजली होती है. पैर फटते हैं. नदी पर पुल नहीं है. इसी गंदे पानी में सब्ज़ियां धोनी पड़ती हैं."

समस्या यहीं ख़त्म नहीं हो रही थीं. कंपनी से जो यूरेनियम अयस्क निकलता है उसे ट्रकों में ले जाया जाता है कहीं और साफ करने के लिए.

ये अयस्क बिल्कुल खुले में आबादी के बीचोबीच से होकर ले जाया जाता है. ऐसी ही एक ट्रक चलाने वाले सुसेन कहते हैं कि उन्हें रेडियोएक्टिविटी से बचने का कोई साधन नहीं दिया गया है.

वो कहते हैं " मुंह ढंकने के लिए कपड़ा नहीं है. साबुन नहीं है. मास्क नहीं है. हेलमेट नहीं है. कोई सुविधा नहीं है. हम बीमार पड़ें तो इलाज तक की सुविधा नहीं है."

ये ड्राईवर निजी कांट्रैक्ट पर काम करते हैं और यूसीआईएल इनकी ज़िम्मेदारी नहीं लेता है.

जादूगोड़ा और आसपास के लोग लगातार ये शिकायत करते हैं कि वो जल्दी थक जाते हैं. बीमारी की वजह किसी को पता नहीं होती.

एक निवासी प्रेम शंकर मिश्रा कहते हैं कि विकिरणों का प्रभाव लंबे समय में पता चलता है तभी यहां बूढ़े लोग कम है.

मिश्रा की बात सच लगती है क्योंकि जादूगोड़ा में दो दिन रहने के दौरान हमें भी बहुत कम बूढ़े लोग दिखे.

 
 
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