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सिर्फ़ 'एक चम्मच चमत्कारी पानी' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
दुनियाभर में महात्मा बुद्ध के निर्वाणस्थल के रूप में मशहूर पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज़िले कुशीनगर में कुंभ के मेले जैसा माहौल देखने पर लोगों से पूछा तो पता चला कि यह मेला बुद्ध के लिए नहीं बल्कि एक चम्मच 'चमत्कारी' पानी पाने के लिए लगा है. 'चमत्कारी' पानी दे रहे लोगों का दावा है कि इसमें संजीवनी बूटी के गुण हैं और इसे पीने से सभी तरह के रोग-तकलीफ़ों से निजात मिल जाती है. इस पानी को पीने के बाद कुछ लोग स्वास्थ्य लाभ मिलने की बात कह रहे हैं तो कुछ इस आस में भी दिखे कि उनकी भी तकलीफ़ दूर होगी. ज़िले में बुद्ध के निर्वाण स्थल से क़रीब 20 किलोमीटर दूर फ़ाज़िलनगर के जोगिया गाँव में दो महीनों से प्रत्येक रविवार और मंगलवार को एक लाख से भी ज़्यादा लोग इस एक चम्मच 'चमत्कारी' पानी को पाने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं. केवल उत्तर प्रदेश की ही तमाम जगहों से नहीं बल्कि बिहार, मध्यप्रदेश, दिल्ली और नेपाल से भी लोग यहाँ पहुँच रहे हैं. हफ़्ते के इन दोनों दिनों में सुबह के तीन बजे से लेकर दोपहर के 12 बजे तक इस गाँव को जाने वाले रास्तों पर बसों, ट्रैक्टर-ट्रालियों, ऑटोरिक्शा और दोपहिया वाहनों से आते-जाते लोगों का ताँता लगा रहता है. शुरुआत इस 'चमत्कारी' पानी की खोज भी कम आश्चर्यजनक नहीं है. गांव में यह सिलसिला जनवरी 2006 में शुरू हुआ जब यहाँ रहनेवाले एक कुशवाहा परिवार को सपने में दिखा कि उनके घर के सामने बोरिंग से निकल रहे पानी में संजीवनी बूटी है. तभी से इस परिवार ने यह पानी लोगों को देना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में इस पानी की एक चम्मच मात्राभर पाने के लिए यहाँ लाखों की तादाद में लोग पहुँचने लगे. 'चमत्कार' का असर इस पानी के चमत्कारी असर पर लोगों की राय अलग-अलग है. दिल्ली के मयूर विहार इलाके से यहाँ पहुँची पूनम सिंह लकवे की तकलीफ़ से आराम पा रही हैं. नौ बार इस पानी को पी चुके रामरेखा मौर्य को गठिया के दर्द में कुछ कमी आती महसूस हो रही है. पर कैलासी देवी छह बार पानी पीने के बाद भी दर्द से बेज़ार हैं और देवरिया से सातवीं बार यहाँ पहुँचे रामनरेश प्रजापति साइटिका से अब भी त्रस्त हैं. पानी पीने आने वाले लोगों में सफ़ेद दाग दूर करने से लेकर संतान की इच्छा रखने वाले लोग भी है. इलाके के ऑटोरिक्शा चालकों और सवारी ढोने वालों की तो जैसे चांदी ही है. ठेले वालों की भी ज़बरदस्त बिक्री हो रही है. परेशानी लोगों की इस भीड़ से गाँववासियों को काफ़ी तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा है. बेकाबू भीड़ ने इनके खेतों को बंजर की शक्ल दे दी है. गांव के रमाशंकर राय कहते हैं, "हम लोग रातों को सो नहीं पाते. भीड़ घर में भी घुस जाती है. अभी तक तो भीड़ में ही चोरी और चेन छीनने की घटनाएँ हो रही थीं, पिछली रात मेरे घर में भी चोर घुस आए थे."
एक अन्य ग्रामीण बताते हैं कि बच्चे मंगलवार को स्कूल नहीं जा पाते क्योंकि भीड़ में कुचल जाने का ख़तरा रहता है. परेशान तो कुशवाहा दंपति भी हैं. चार महीने पहले तक सब्ज़ी बेचकर रोज़ छह-सात सौ कमाने वाले रामानंद कुशवाहा सिर पर हाथ रखकर कहते हैं, "भीड़ ने मेरे डेढ़ बीघे के खेत को रौंद डाला. गेंहू का एक दाना नहीं मिला और टमाटर और लौकी की फ़सल भी नष्ट हो गई है. ख़ुद बर्बाद होकर दूसरों को फ़ायदा कैसे पहुँचाएँ." रोज़ बढ़ती जा रही अनियंत्रित भीड़ को देखकर उन्होंने स्थानीय थाने में इस बारे में फ़रियाद भी की है. वैज्ञानिक पहलू मनोचिकित्सक सीबी भदेसिया इसे 'मास हिस्टीरिया' बताते हैं और कहते हैं कि इसमें लोग भीड़ की तरह ही बर्ताव करने लगते हैं. गोरखपुर विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में प्रोफ़ेसर बब्बन मिश्र भी इस बारे में कहते हैं, "प्रत्येक रोग में शारीरिक कष्ट के साथ मानसिक कष्ट भी होता है. ऐसी जगहों पर लोगों को मानसिक शांति मिलती है तो उनको लगता है कि शारीरिक कष्ट भी कम हो गया है." उधर भीड़ से त्रस्त गाँववासियों ने पिछले दिनों यह सूचना लिखकर लटका दी है कि अब पानी केवल रविवार को ही मिलेगा. पर भीड़ इसे मानेगी, इसमें शक ही है. | इससे जुड़ी ख़बरें चालीस बच्चों की मृत्यु | भारत और पड़ोस सभी के आराध्य हैं चातन स्वामी10 नवंबर, 2005 | भारत और पड़ोस उस्ताद ने काटे बच्चों के कान16 सितंबर, 2004 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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