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जादूगोड़ा की 'जादुई' दुनिया | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
दुनिया उरांव की उम्र 17 साल है लेकिन लंबाई केवल दो से तीन फीट. पैर अजीब ढंग से मुड़े हुए. न कुछ बोल सकता है न कुछ समझ पाता है. बस हंसता है. दुनिया को देखकर उसकी दुनिया समझना मुश्किल है. ऐसी बीमारियां भारत के झारखंड राज्य के जादूगोड़ा में आम हैं. कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनकी छह उँगलियां हैं. सर बहुत बड़े. कुछ बच्चों का आधा शरीर विकसित हुआ है. अगर एक साथ इन बच्चों को देख लें तो दिल खौफज़दा हो जाता है. ये सभी बच्चे जादूगोड़ा में फेंके जा रहे रेडियोएक्टिव कचरे के पास बसे गांवों में रहते हैं. ऐसी ही एक बच्ची है सात साल की गुड़िया जो न कुछ बोलती है न समझती है. बस एकटक निहारती है. दुनिया तो घिसट कर चलता है. गुड़िया चल भी नहीं पाती है. गुड़िया के पिता छतुआ दास कहते हैं " मुझे समझ में नहीं आता ऐसी क्या बीमारी है. ऐसी ही पैदा हुई थी. डॉक्टर कुछ बताते नहीं. मैं ग़रीब आदमी हूं. जबतक ज़िंदा हूं. इसकी देखभाल करुंगा. मेरे मरने के बाद इसका क्या होगा." भारत की एकमात्र यूरेनियम की खान जादूगोड़ा में है और उससे प्रतिदिन निकलने वाला सैकड़ों टन कचरा आबादी के पास ही खुले में फेंका जाता है.
खदान चलाने वाली भारत सरकार की कंपनी यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड का कहना है कि ये बीमारियां यूरेनियम या रेडियोएक्टिव कचरे के कारण बिल्कुल नहीं है. स्वयंसेवी संस्थाओं का आरोप रेडियोएक्टिव कचरे के ख़िलाफ काम कर रही संस्था जोहार के घनश्याम बिरुली कुछ और कहते हैं “ यूरेनियम की ख़दान से पहले यहां सबकुछ ठीक था. अब ऐसे विकलांग बच्चे पैदा हो रहे हैं. कैंसर और सांस की बीमारियां आम हैं. चमड़े के रोग होते हैं.” बिरुली अपनी बात के समर्थन में उस सर्वेक्षण का हवाला देते हैं जो परमाणु वैज्ञानिक संघमित्रा गडेकर और सुरेन्द्र गडेकर ने किया है. गडेकर दंपत्ति ने कुछ वर्ष पहले जादूगोड़ा और आसपास के क्षेत्र में सर्वेक्षण किया था. संघमित्रा गडेकर कहती हैं “ जादूगोड़ा के बच्चों में आनुवंशिक बीमारियां अधिक पाई गईं. ऐसी बीमारियां उन्हीं क्षेत्रों में मिलती हैं जहां रेडियोएक्टिवटी की समस्या है. कनाडा और जापान में ऐसी समस्या देखी गई हैं. ” जादूगोड़ा में बच्चों की बीमारी को रेडियोएक्टिवटी से जोड़ना आसान तो नहीं है लेकिन आबादी के बिल्कुल सामने कचरा फेंका जाना कहीं से भी सही नहीं ठहराया जा सकता.
इसके साथ ही कारखाने का गंदा पानी सीधे सीधे नदी में जाता है जहां का पानी लोग पीने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. सरकारी टीम और कंपनी 1997 में बिहार विधानसभा की एक टीम ने भी जादूगोड़ा का सर्वेक्षण किया था और कहा था कि कंपनी को लोगों की सुरक्षा के लिए गंभीर उपाय करने चाहिए. मैंने जब इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए यूसीआईएल के अधिकारियों से संपर्क किया तो वो बातचीत के लिए तैयार नहीं हुए. उन्होंने समय देकर इंटरव्यू नहीं दिया. इंटरव्यू तो मुझे नहीं मिला लेकिन चूंकि मैं जादूगोड़ा में ही पैदा हुआ हूं और पला बढ़ा हूं इसलिए मुझे समझ में आ रहा था कि जादूगोड़ा में क्या कुछ बदला है. जादूगोड़ा का नाम पहले जारागोड़ा हुआ करता था. यूरेनियम की ख़दान खुलते ही यहां शायद जादुई परिवर्तन होने लगे और नाम हो गया जादूगोड़ा. दुनिया पूरी तरह बदल गई लेकिन इस बदली हुई दुनिया में जन्मे दुनिया उरांव की दुनिया बिल्कुल नहीं बदली है. | इससे जुड़ी ख़बरें यूक्रेन ने चेरनोबिल हादसे को याद किया26 अप्रैल, 2006 | पहला पन्ना परमाणु सुरक्षा पर बरादेई की चेतावनी21 जून, 2004 | पहला पन्ना 'भोपाल गैसकांड पीड़ितों को न्याय नहीं'29 नवंबर, 2004 | पहला पन्ना 'हथियारों का कचरा नहीं हटेगा'14 अप्रैल, 2003 | विज्ञान क्या हुआ था भोपाल में उस रात?28 अगस्त, 2002 | पहला पन्ना | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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