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बुधवार, 26 अप्रैल, 2006 को 10:34 GMT तक के समाचार
 
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पानी से बंधी है शादी की उम्मीद
 

 
 
कुआँ
कुओं में पानी नहीं
गर्मी के मौसम में यहाँ विरडा की प्रथा चलती है जिसके तहत महिलाएँ सूखे तालाब में गड्डा खोदती हैं और पाँच से सात घंटे के बाद उसमें से पानी निकलता है.

इस तरह उनकी लंबी मेहनत के बाद उन्हें मात्र पाँच या सात मटका पानी मिल पाता है और इसकी कोई गारंटी नहीं कि यह पानी मीठा हो या खारा.

इस गाँव के 32 वर्षीया तंजी भाई मकवाना ने मुझे बताया कि जब भी उनके विवाह की बात चलती लड़की वाले कहते कि लड़की यहाँ क्या करेगी. उसका तो जीवन पानी भरने में निकल जाएगा.

तंजी भाई बोले “यहाँ की सामाजिक प्रथा ऐसी है कि इन मामलों में बुज़ुर्ग लोग ही पड़ते हैं और हम कोई समाधान नहीं कर सकते. ”

 कई बार तो हम गाँव छोड़ने की बात तक करते हैं. मन में ऐसा आता है कि शहर चले जाएँगे और वहाँ विवाह कर लेने पर शहर जा कर हम करेंगे क्या और फिर हमारे माता पिता और खेती बाड़ी यहाँ है. इसलिए हम यहीं पर हैं
 
दिलीप भाई

इनके मित्र भरत भाई का कहना है कि क्योंकि पानी नहीं है इसलिए खेती भी अच्छी नहीं होती और फिर आर्थिक रूप से लोग पीछे रह जाते हैं. उनका कहना है “यह एक तरह का दुष्चक्र है".

यहाँ के युवा जब भी इकट्ठे होते हैं तो अपने विवाह को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं. दिलीप भाई ने मुझे बताया “कई बार तो हम गाँव छोड़ने की बात तक करते हैं. मन में ऐसा आता है कि शहर चले जाएँगे और वहाँ विवाह कर लेने पर शहर जा कर हम करेंगे क्या और फिर हमारे माता पिता और खेती बाड़ी यहाँ है. इसलिए हम यहीं पर हैं.”

पानी की कमी के चलते शादी नहीं हो रही

दिलीप भाई की शादी की बात अब तक पाँच लड़कियों से चली पर हर जगह मामला पानी पर जा अटका. इसीलिए हरेश भाई जैसे लोगों के दिमाग में यह बात बैठ गई है कि अब तो सिर्फ़ नर्मदा के पानी का सहारा है.

इस गाँव के ज़्यादातर युवा या तो खेती करते हैं या हीरा तराशने का काम जानते हैं. हरेश भाई जैसे युवक तो यह सुनते सुनते परेशान हो चुके हैं कि उन्हें गाँव छोड़ कहीं और जाकर कुछ धंधा करना चाहिए. उनका कहना है “गाँव तो तब छोड़ दें जब हमें कुछ और करना आता हो. शहर में हम रहेंगे कहाँ.”

 गाँव तो तब छोड़ दें जब हमें कुछ और करना आता हो. शहर में हम रहेंगे कहाँ.
 
हरेश भाई

जहाँ तक अपनी लड़कियों की शादी का मुद्दा है तो इस गाँव के लोग उनके लिए शहरों में लड़के तलाश करते हैं जहाँ पानी की इतनी तकलीफ़ न हो.

पानी की कमी के चलते इन युवकों को भी इस काम में जुटना पड़ता है. यहाँ के युवा सर्कल के इर्दगिर्द बर्तन बांध कर काफी दूर से पानी लेने जाते हैं.

इनका सारा दिन पानी इकट्ठा करने और अपने काम में निकल जाता है. जो ख़ाली वक़्त मिलता है उसमें वे गाँव के तालाब के पास बने टैंक पर नज़र रखते हैं जिस पर लिखा है 30 हज़ार लीटर.

पर वह तो तब भरेगा जब नर्मदा का पानी आएगा. उसे देखते हुए वे अपनी शादी को लेकर चिंतन करते हैं.

 
 
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