BBCHindi.com
अँग्रेज़ी- दक्षिण एशिया
उर्दू
बंगाली
नेपाली
तमिल
 
बुधवार, 26 अप्रैल, 2006 को 10:58 GMT तक के समाचार
 
मित्र को भेजें कहानी छापें
आत्महत्या को मजबूर विदर्भ के किसान
 

 
 
कैलाश का परिवार
आत्महत्या करने वाले कैलाश की तस्वीर के साथ उनका परिवार
नागपुर के 400 किसानों वाले लिंगा गाँव के 26 वर्षीय किसान कैलाश झाड़े की शादी की बात चल रही थी. लेकिन समस्या यह थी कि शादी के लिए पैसे नहीं थे. वह कर्ज़ भी नहीं ले सकते थे क्योंकि परिवार पहले ही साहूकार और बैंक के कर्ज़ों में डूबा हुआ था.

कैलाश को कर्ज़ों से मुक्ति का एक ही रास्ता नज़र आया आत्महत्या और युवा किसान ने कुछ सप्ताह पहले यही रास्ता अपनाया.

कैलाश के चचेरे भाई प्रमोद मनोरथी बताते हैं, “उनके ऊपर बैंक का कर्ज़ था और वह गहरी सोच में डूबे रहते थे कि बैंक का कर्ज़ कैसे चुकाएंगे और शादी का कर्ज़ उन्हें कौन देगा.”

कैलाश की परेशानी विदर्भ के कपास उगाने वाले 32 लाख किसानों की परेशानियों से मिलती जुलती है. उनकी कहानी छतर के 470 किसानों की कहानी है. हर दिन इलाके में औसतन तीन किसान कैलाश की तरह आत्महत्या करना चाह रहे हैं.

 उस पर सरकार का कर्ज़ था. हम सोचे थे सरकार का कर्ज़ है जब होगा तो वापस कर देंगे. वह अपनी जान ले लेगा ऐसा हमने सोचा नहीं था.
 
भगवान शेटे

कैलाश पर केवल 22 हज़ार रुपए का कर्ज़ था लेकिन वह पिछले 10 साल से अदा नहीं कर पा रहा था. इतनी छोटी रक़म के लिए अपनी जान से हाथ धो बैठना शायद बड़े शहर वालों की सोच से बाहर हो. लेकिन विदर्भ में इससे भी छोटी राशि के कर्ज़दार किसान आत्महत्या कर रहे हैं.

शेटे परिवार

दूसरी तरफ 40 वर्षीय वितोभा शेटे एक बड़े किसान थे. यवतमाल ज़िले में मागी गाँव के सबसे अमीर किसान. उनपर पौने तीन लाख रुपए का कर्ज़ था.

उनके बड़े भाई भगवान शेटे कहते हैं, “उस पर सरकार का कर्ज़ था. हम सोचे थे सरकार का कर्ज़ है जब होगा तो वापस कर देंगे. वह अपनी जान ले लेगा ऐसा हमने सोचा नहीं था.”

शेटे परिवार वितोभ के आत्महत्या से टूट गया है

और पास के एक गाँव में 35 वर्षीय चंद्रभान मध्यम वर्ग का किसान था. उसपर डेढ़ लाख रुपए का कर्ज़ था. उसने आत्मदाह कर लिया. उनकी विधवा रेखा कहती हैं, “वह आत्महत्या की बात किया करते थे. मैं उन्हें समझाती थी कि सब ठीक हो जाएगा. लेकिन उन्होंने मेरी नहीं सुनी. मैं उनसे नाराज़ हूँ. ”

रेखा की अपने दिवंगत पति से नाराज़ी मामले की गंभीरता का पता देती है. आत्महत्या करने वाले अधिकतर किसान यह समझकर अपनी जान ले लेते हैं कि उन्हें कर्ज़ों से छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन कर्ज़ उनके परिवार वालों को देना पड़ता है. दूसरी बात यह कि वह अपने पीछे अपने बच्चों की ज़िम्मेदारियाँ अपनी विधवाओं पर छोड़ कर चले जाते हैं.

अकेली लड़ाई

अफसोस कि बात यह है कि इलाके में कोई ऐसी सरकारी या निजी संस्था नहीं है जो इन विधवाओं और उनके बच्चों की देखभाल कर सके.

लिंगा गाँव जैसे अनेक गाँवों के लोग कर्ज़ों से दबे हैं

किशोर तिवारी अकेले यह लड़ाई लड़ रहे हैं.

आईआईटी अहमदाबाद से पढ़े तिवारी 10 साल पहले जेनरल इलेक्ट्रिक की एक मोटे तनख्वाह वाली नौकरी छोड़कर किसानों की सेवा में जुट गए. उन्होंने अब तक कई विधवाओं की बेटियों की शादियाँ कराई हैं.

वह कहते है “विधवाओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. सरकार इनकी मदद नहीं करती. मैं आज भी उस परिवार की देखभाल कर रहा हूँ जिसके आदमी ने 1997 में इस इलाके में सबसे पहले आत्महत्या की.”

कर्ज़ का जाल

किशोर तिवारी किसानों के बीच 10 साल से काम कर रहे हैं. वह कहते हैं “किसानों के आत्महत्या के प्रमुख कारण यह है कि किसानों को फसल के दाम नहीं मिल रहे हैं. उन्हें बैंकों से कर्ज़ नहीं मिलता और इस साल भी बहुत महंगाई थी और फसल कम हुई.”

साहूकार सुबोध भागवत बल प्रयोग की बात को ग़लत बताते हैं

किसान कहते हैं जेनेटिकली मोडीफाई बीज आ जाने से उन्हें महँगे दर पर बीज खरीदना पड़ता है. इसके लिए उन्हें बैंक या साहूकार से पैसे लेने पड़ते हैं. इसके बाद खाद भी विदेशी मिलते हैं जिसके लिए उन्हें कर्ज़ लेना पड़ता है.

यहाँ तक कि किटाणुओं को मारने की दवा के लिए भी उन्हें कर्ज़ लेना पड़ता है. किसान कर्ज़ इस भरोसे पर लेते हैं कि फसल अच्छी हुई तो वह कर्ज़ चुकाने के बाद भी कुछ पैसे कमा सकते हैं. लेकिन समस्या उस समय खड़ी हो जाती है जब सूखा पड़ जाए या वर्षा न हो. इसके कारण वो कर्ज़ चुका नहीं पाते. और अगर एक साल फसल खराब हुई तो इसका असर आने वाले सालों पर भी पड़ता है.

कुछ किसानों के कर्ज़ उनके पिता और दादा के समय से चले आ रहे हैं. प्रभुनाथ कहते है “हम लोगों को कर्ज़ चुकाने के लिए भी कर्ज़ लेने पड़ते हैं. और कर्ज़ चुकाने में जितनी देर हो ब्याज उतना बढ़ता जाता है. जिसके कारण बैंक और साहूकार आपकी संपत्ति और खेत ज़ब्त कर लेते है. ”

बैंक से नोटिस और साहूकार की धमकी किसानों के लिए मृत्यु दंड से कम साबित नहीं होती. लेकिन बर्तनों की एक दुकान के मालिक और साहूकार सुबोध भागवत कहते हैं यह इल्ज़ाम गलत है “हम बल का प्रयोग नहीं करते. अगर कोई डिफाल्टर हो जाता है तो हम अदालत जाते है किसानों का सहारा लेते हैं.”

क्या है समाधान?

किसान कहते हैं बैंकों के कर्ज़ माफ़ किए जाएं या कम से कम ब्याज माफ़ किया जाए, और नए कर्ज़ असान ब्याज दर पर दिए जाएं.

लेकिन सरकार कहती है उसके पास पैसे नहीं.

राज्य सरकार ने 10075 करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा दिसंबर में की थी. किसान कहते हैं वो पैकेज उन तक अब भी नहीं पहुँचा.

लेकिन यह पैकेज भी काफी नहीं. विदर्भ के 32 लाख किसानों को सरकारी बैंकों ने चार हज़ार करोड़ से अधिक कर्ज़ दिए है. किसानों को 4000 करोड़ रुपए का पैकेज चाहिए, जो राज्य सरकार के बस की बात नहीं.

 
 
इससे जुड़ी ख़बरें
लहलहा रही है कर्ज़ की विषबेल
16 नवंबर, 2005 | भारत और पड़ोस
बच्चे ज़्यादा तो पानी कम
08 अप्रैल, 2005 | भारत और पड़ोस
नाराज़ हैं हरियाणा के किसान
02 फ़रवरी, 2005 | भारत और पड़ोस
सुर्ख़ियो में
 
 
मित्र को भेजें कहानी छापें
 
  मौसम |हम कौन हैं | हमारा पता | गोपनीयता | मदद चाहिए
 
BBC Copyright Logo ^^ वापस ऊपर चलें
 
  पहला पन्ना | भारत और पड़ोस | खेल की दुनिया | मनोरंजन एक्सप्रेस | आपकी राय | कुछ और जानिए
 
  BBC News >> | BBC Sport >> | BBC Weather >> | BBC World Service >> | BBC Languages >>