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केरल में विकास है चुनावी मुद्दा | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
केरल को 'गॉड्स ओन कंट्री' यानि भगवान का देश कहा जाता है. यहाँ की व्यवस्था में पर्यटन और पारंपरिक उद्योग महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. केरल में मुख्यत: दो प्रमुख गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और काँग्रेस नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच चुनावी मुकाबला रहता हैं और आमतौर पर बारी-बारी से ये गठबंधन सत्ता में आते हैं. मुख्यमंत्री उम्मन चांडी की यूडीएफ सरकार राज्य में विकास कार्यों के आधार पर जनता से भी वोट माँग रही है. वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन एलडीएफ विकास के मुद्दे के साथ जनता के बीच हैं लेकिन दोनों गठबंधनों के बीच फर्क केवल विकास की परिभाषा का है. हिंदू के वरिष्ठ पत्रकार गौरीदासन नायर कहते हैं, “विकास केंद्र बिंदू पर है पर कैसा हो विकास इसके दो नज़रिए हैं. एक मॉडल है वाम दलों का जिसकी दलील है कि विकास ऐसा हो जिसमें रोज़गार पैदा हो वहीं दूसरी ओर यूडीएफ आधुनिक उच्च तकनीक की राह पर जाना चाहता है.” नायर का कहना है कि वाम दलों के वरिष्ठ नेता वीएस अच्युतानंदन और पिनरई विजयी के बीच पार्टी को आगे ले जाने को लेकर मतभेद हैं. वामपंथी गठबंधन भ्रष्टाचार और महिलाओं पर अत्याचार को चुनावी मुद्दा बना रहा है. सीपीएम केंद्रीय चुनाव समिति के सदस्य और चुनाव लड़ रहे एमके बेबी कहते हैं, “ भ्रष्टाचार यहाँ की बड़ी समस्या है. चुनाव में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ रहा अत्याचार भी एक मुद्दा है. कुनियाली कुट्टी जिन पर संगीन आरोप हैं और वे यूडीएफ के समर्थन से चुनाव लड़ रहे हैं और यह हमारे लिए एक मुद्दा है.” राजनीतिक टीकाकार पॉज़ ज़कारिया का कहना है कि मलयाली भ्रष्टाचार के साथ जीना सीख चुके हैं और जहाँ तक महिलाओं के साथ अत्याचार का मामला है यह महज चुनाव मुद्दा है. वहीं यूडीएफ गठबंधन अपने सरकार के पाँच वर्ष के कार्यकाल को मुद्दा बना रहा है. सरकार के कार्य से कोई नाराज नज़र भी नहीं आ रहा है. पर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार वामपंथी मोर्चा इस बार बाज़ी मार सकता है. शायद इसके पीछे इरावा समुदाय, चर्च और मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग का वामपंथी मोर्चा को समर्थन भी एक कारण हो सकता है. केरल में मुस्लिमों की आबादी 25 प्रतिशत और इसाई की 19 प्रतिशत हैं. यूडीएफ के प्रत्याशी शिबू बेबी जॉन कहती हैं कि मजहब के ठेकेदारों में कितना दम है वह इस चुनाव में सामने आ जाएगा और मुस्लिमों द्वारा एलडीएफ को वोट देने की बात झूठी साबित होगी. मुद्दे केरल के कुछ इलाकों में पानी की समस्या और कुछ हिस्से में उद्योग में आए पारंपरिक संकट चुनाव में राजनीतिक मुद्दा भी बना है. वामपंथी नेता और पूर्व विधायक मरसी कुट्टीअम्मा कहती हैं कि क्योर उद्योग संकट से गुजर रहा है और मज़दूरों को वर्ष में केवल 15 दिन ही काम मिल पाते हैं. उन्होंने कहा कि जनता उन्हें वोट अवश्य देगी क्योंकि उद्योगों को पुनर्जीवित करने की योजना उनके पास है. लेकिन केरल के सड़कों पर निकलने पर कोई ऐसा मुद्दा नज़र नहीं आता जो चुनावी नतीजे तय करेगा. पॉज़ ज़करिया कहते हैं कि यह एक रूटिन चुनाव है. सत्ता में परिवर्तन होगा क्योंकि सरकार के पाँच साल पूरे हो चुके हैं. लोगों को अपने मताधिकार का अवसर मिलेगा और जनता को यह आश्वासन कि लोकतंत्र काम कर रही है. केरल में विधानसभा चुनाव का कोई फर्क हो या न हो लेकिन केंद्र की राजनीति में इस चुनाव का गहरा असर अवश्य ही पड़ेगा. | इससे जुड़ी ख़बरें केरल:पहले चरण का चुनाव प्रचार थमा20 अप्रैल, 2006 | भारत और पड़ोस विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई में होंगे01 मार्च, 2006 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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