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दिल्ली में गैस पीड़ितों का अनशन | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
न्याय की गुहार लेकर भोपाल गैस पीड़ित 800 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर दिल्ली इस आस के साथ पहुँचे थे की उनकी सुनवाई होगी. पर ऐसा हुआ नहीं और इनमें से छह लोग अब आमरण अनशन पर बैठे हैं. वर्ष 1984 में यूनियन कार्बाइड की भोपाल फैक्ट्री में गैस लीक का बड़ा हादसा हुआ था जिसमें 20 हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए थे और डेढ़ लाख से ज़्यादा ज़हरीली गैस की चपेट में आ गए थे. महत्वपूर्ण है कि पीड़ितों की आवाज़ सरकार और मीडिया तक पहुँचाने के लिए अब कुछ विदेशी छात्र और फ़िल्म अभिनेता आमिर ख़ान भी आगे आ रहे हैं. दिल्ली के जंतर मंतर में आमरण अनशन पर बैठे छह पीड़ित लोगों का कहना है कि वे अपना अनशन तब तक नहीं तोड़ेंगे जब तक सरकार उनकी छह सूत्री माँगे नहीं मानती. वे गैस पीड़ितों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग बनाने की माँग कर रहे हैं ताकि पीड़ितों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा किया जा सके और उनका आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास हो सके.
वे साथ ही स्वच्छ पेयजल, यूनियन कार्बाइड और उसके तत्कालीन प्रमुख वारन एंडरसन के ख़िलाफ़ कार्रवाई, उसके मौजूदा मालिक डॉ केमिकल्स से भोपाल में फैले ज़हरीले कचरे को साफ करवाना, कंपनी को 'ब्लैक लिस्ट' करावाना और भोपाल पीड़ितों के लिए एक स्मारक बनाने की माँग कर रहे हैं. भूख हड़ताल पर बैठे सतीनाथ सारंगी जो कि गैस पीड़ितों का एक संगठन भी चलाते हैं, कहते हैं, "ये कमज़ोरों की सच के लिए लड़ाई है और वायदे के बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हमसे नहीं मिले हैं. पर हमें आशा है कि जब जनता की आवाज़ उन तक पहुँचेगी तो वे हमें सुनने पर मजबूर होंगे. वे दो बार डॉ केमिकल्स के मालिकों से मिल चुके हैं पर हमसे मिलने की उनको फुर्सत नहीं. " गैस पीड़ित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, उनके पुत्र राहुल गाँधी और कई केंद्रीय मंत्रियों से मिल चुके हैं. अब अपनी माँगे मनवाने के लिए वे अंतरराष्ट्रीय दबाव का प्रयोग भी करना चाहते हैं. एक अमरीकी और एक फ्राँसीसी छात्र भी तीन दिन की भूख हड़ताल पर आज से बैठे हैं और एक भोपाल समर्थक अमरीका में भी भूख हड़ताल पर बैठेंगी. पर गैस पीड़ितों को यह भी आभास है कि जब तक किसी मशहूर हस्ती की आवाज़ उनके साथ नहीं जुड़ती, मीडिया और सरकार पर असर पड़ने की संभवना कम है. इसलिए 14 अप्रैल को आमिर ख़ान उनके समर्थन में आगे आ रहे हैं. शायद बुकर पुरस्कार विजेता अरूंधती राय और मेधा पाटकर ने जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन का पक्ष सरकार तक पहुँचाया है वही काम भोपाल पीड़ितों के लिए आमिर ख़ान कर पाएँ. | इससे जुड़ी ख़बरें राजनीतिक उदासीनता में खो गया मामला01 दिसंबर, 2004 | भारत और पड़ोस गैस कांड मुआवज़े का वितरण शुरू हुआ17 नवंबर, 2004 | भारत और पड़ोस भोपाल में अब भी ज़हर का ख़तरा14 नवंबर, 2004 | भारत और पड़ोस गैस कांड और मुआवज़े का विवाद19 जुलाई, 2004 | भारत और पड़ोस 'बची हुई राशि भी गैस पीड़ितों को दें'19 जुलाई, 2004 | भारत और पड़ोस भोपाल गैस-कांड की बरसी पर जुलूस03 दिसंबर, 2003 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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