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हम चुपचाप मर नहीं सकते:अरुंधती | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़ी और साहित्य के लिए बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधती राय का कहना है कि नर्मदा परियोजना से प्रभावित लोग चुपचाप नहीं मर सकते और सरकार को इनकी ज़िम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी. नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर और उनके कई सहयोगी नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे सरदार सरोवर बांध का निर्माण तत्काल रोके जाने की मांग के साथ दिल्ली में धरने पर बैठे हुए हैं. जल संसाधन मंत्री सैफ़ुद्दीन सोज़ के धरना स्थल पर आने और पुनर्वास संबंधी आश्वासन के बारे में पूछे जाने पर अरूंधती रॉय ने कहा कि मंत्री ने इस प्रकार का कोई आश्वासन दिया. सोज़ ने खुद घाटी में जाकर स्थिति का जायजा लेने की बात कही थी पर बाँध का कार्य रोके जाने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में पूछे जाने पर अरूंधती कहती है कि अदालत के पुनर्वास के आदेश में स्पष्ट रूप से लिखा है कि बाँध की ऊँचाई बढ़ाने से छह महीने पहले लोगों के पुनर्वास का कार्य पूरा किया जाना आवश्यक है अन्यथा इसकी ऊँचाई बढ़ाना अदालत की अवमानना होगी. उन्होंने अपना एक उदाहरण देते हुए कहा कि अदालत की अवमानना के लिए उन्हें एक दिन की कैद की सज़ा दी गई थी तो फिर जो बड़े पैमाने पर अदालत के फैसले का उल्लंघन कर रहे हैं उनको क्यों नहीं जेल भेजा जा सकता. उन्होंने सरदार सरोवर बांध बनाने वालों पर 35 हज़ार लोगों को बगैर पुनर्वास के बेघर करने का आरोप लगाया. सरकार की तरफ़ से पुनर्वास के लिए रुपए और बंजर ज़मीन दिए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि पुनर्वास के तौर पर रुपए देना बिलकुल ग़लत है और जो सरकार की तरफ़ से बंजर ज़मीन देना तो और भी ग़लत है. अरुंधती ने कहा कि कुछ लोग यहाँ बैठे हैं जिन्हें सरकार ने 15 वर्ष पहले ज़मीन दी लेकिन वहाँ पर अब भी कोई भी पैदावार नहीं हो रही है और ये लोग वापस गाँव आ गए क्योंकि जीवन जीने का उनके पास और कोई साधन नहीं बचा. उन्होंने कहा कि रुपए की जहाँ तक बात है तो ग़रीब लोगों को अगर सरकार मुआवजा देती है तो उसका 75 प्रतिशत हिस्सा तो अधिकारी लोग खा जाते है और प्रचार पाने के लिए ये अधिकार खुद घाटी जाने की बात करते हैं. केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बारे में वह कहती हैं कि जिस दिन सरदार सरोबर बाँध की नीव भारत प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा रखी थी उसी दिन से राजनीति का खेल जारी है. उनका कहना है कि इतने वर्षों के बाद आज भी आश्वासन देना कि घाटी में जाकर अभी देखता हूँ राजनीति नहीं तो क्या है. 35 हज़ार परिवारों के पुनर्वास का कार्य कोई खेल नहीं और यह दो मिनट में पूरा नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि दो हफ्ते या एक महीने में बाँध की ऊँचाई 120 मीटर बढ़ सकती है लेकिन इतनी जल्दी पुनर्वास का कार्य नहीं हो सकता. सरकार द्वारा इस खेल को अब बंद करना चाहिए. | इससे जुड़ी ख़बरें नर्मदा आंदोलन- कब क्या हुआ? 07 अप्रैल, 2002 | पहला पन्ना नर्मदा के विस्थापितों का दर्द05 अगस्त, 2002 | पहला पन्ना विश्व बैंक फिर बाँधों की ओर28 फ़रवरी, 2003 | कारोबार नर्मदा बाँध में डूब जाएगा हरसुद कस्बा28 जून, 2004 | भारत और पड़ोस नर्मदा में डूबने वालों की संख्या 62 हुई11 अप्रैल, 2005 | भारत और पड़ोस मानसून आने से पहले उजाड़ने का फ़ैसला18 जून, 2005 | भारत और पड़ोस नर्मदा बचाओ आंदोलन के बीस बरस24 नवंबर, 2005 | भारत और पड़ोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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