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एलटीटीई पर जबरन वसूली का आरोप | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एक ताज़ा रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि श्रीलंका के तमिल टाइगर (एलटीटीई) विद्रोही देश से बाहर रहने वाले तमिलों को डरा-धमकाकर उनसे मोटी धनराशि वसूल कर रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वाच की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमरीका और यूरोप में रहने वाले तमिलों से वसूली जाने वाली रक़म और बढ़ा दी गई है ताकि 'अंतिम युद्ध' के लिए धन जुटाया जा सके. एलटीटीई के राजनीतिक धड़े के प्रमुख एसपी तमिलसेल्वन ने जबरन वसूली के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि "एलटीटीई के विदेशों में न कोई एजेंट हैं न उसके सदस्य दुनिया में कहीं भी किसी से पैसे वसूलते हैं." उन्होंने अपनी सफाई में कहा, "होता यह है कि विदेश में रहने वाले तमिल युद्ध से प्रभावित अपने भाइयों की सहायता के लिए पैसे इकठ्ठा करते हैं." यूरोप, अमरीका और कनाडा में लगभग आठ लाख श्रीलंकाई तमिल रहते हैं. यह आरोप ऐसे समय पर आया है जबकि तमिल विद्रोहियों और सरकार के बीच नॉर्वे की मध्यस्थता में युद्धविराम को स्थायी बनाने पर बातचीत चल रही है. ह्यूमन राइट्स वाच का कहना है कि "तमिल विद्रोहियों ने पिछले वर्ष से धन वसूली का एक बहुत आक्रामक व्यस्थित अभियान चला रखा है." रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर सरकारी सेना के हाथों उल्लंघन हुआ है इसलिए बहुत सारे लोग तमिल विद्रोहियों को समर्थन और पैसा भी देते हैं लेकिन "तमिल संगठनों का आतंक इतना है कि लोग अगर धन नहीं देना चाहते तो भी मजूबरन उन्हें विद्रोहियों की माँग माननी पड़ती है." ह्यूमन राइट्स वाच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कनाडा और ब्रिटेन की सरकार श्रीलंकाई तमिलों को सुरक्षा दे. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लोगों से बातचीत की गई उन्होंने बताया कि विद्रोहियों के प्रतिनिधि उनके घर आकर उन्हें धमकियाँ देते हैं और पैसे की माँग करते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक़ धन वसूल रहे विद्रोहियों के प्रतिनिधि कहते हैं कि वे 'अंतिम युद्ध' के लिए पैसे इकट्ठा कर रहे हैं जबकि दूसरी ओर युद्धविराम पर बातचीत भी चल रही है. जानकारों का कहना है कि एलटीटीई दुनिया के सबसे अमीर चरमपंथी संगठनों में है. ब्रिटेन और अमरीका एलटीटीई को आतंकवादी संगठन की सूची में रखते हैं. | इससे जुड़ी ख़बरें प्रभाकरन मिलेंगे पत्रकारों से04 अप्रैल, 2002 | पहला पन्ना 'शांति वार्ता के लिए रोक हटे'10 अप्रैल, 2002 | पहला पन्ना प्रभाकरन को सौंपने की माँग16 अप्रैल, 2002 | पहला पन्ना श्रीलंका में सीधी बातचीत21 मई, 2002 | पहला पन्ना | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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