शुक्रवार, 10 फ़रवरी, 2006 को 12:25 GMT तक के समाचार
सरकार ने असम में लागू रहे आईएमडीटी (इल्लीगल माइग्रेंट्स डिटर्मिनेशन बाई ट्राइब्यूनल) क़ानून के स्थान पर नया क़ानून लाने की बजाए विदेशी नागरिक क़ानून में संशोधन करने का फ़ैसला किया है.
सरकार ने विदेशी नागरिक क़ानून में ऐसा प्रावधान करने की योजना बनाई है जिसके तहत किसी व्यक्ति को अवैध आप्रवासी क़रार देने से पहले उसे ट्राइब्यूनल के तहत सुनवाई का मौक़ा दिया जाएगा.
यह फ़ैसला प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति ने शुक्रवार को किया.
बैठक के बाद रक्षा मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पत्रकारों को जानकारी दी कि किसी भी व्यक्ति को विदेशी क़रार देने से पहले अब पूरी सुनवाई का मौक़ा दिया जाएगा.
सरकार ने ये फ़ैसला असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों से पहले किया है और विश्लेषक इसे अल्पसंख्यकों को खुश करने की मुहिम मान रहे हैं.
भाजपा के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया है कि आईएमडीटी क़ानून के निरस्त होने के बाद सरकार पिछले दरवाज़े से इस क़ानून को लाने की कोशिश कर रही है.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपने असम के दौरे में अल्पसंख्यकों को आश्वासन दिया था कि आईएमडीटी क़ानून के निरस्त होने के बाद उनके वैधानिक हितों की रक्षा की जाएगी.
अदालत का फ़ैसला
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने असम राज्य में ग़ैरक़ानूनी तरीके से पहुँचने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान के लिए लागू विवादास्पद आईएमडीटी क़ानून को पिछले साल असंवैधानिक क़रार दे दिया था.
अवैध बांग्लादेशियों की पहचान के इरादे से यह क़ानून कांग्रेस पार्टी के शासनकाल में 1983 में बनाया गया था.
इस क़ानून के तहत अवैध आप्रवासी की नागरिकता सिद्ध करने का दायित्व शिकायतकर्ता का था.
यह क़ानून केवल असम में लागू था और अब वहाँ भी पूरे देश की तरह ही विदेशी नागरिक क़ानून लागू हो गया है.
असम गण परिषद और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और अन्य राजनीतिक दलों ने इस क़ानून का कड़ा विरोध किया था.