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अमरीका से नाराज़ हैं कश्मीरी मुसलमान | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इराक़ के अल अस्करी मज़ार में बम धमाके के ख़िलाफ़ भारतीय कश्मीर के अनेक शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. इनमें हज़ारों की संख्या में शिया समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया. हर जगह प्रदर्शनकारियों ने अमरीका को अपने ग़ुस्से का निशाना बनाया. वे अमरीका के विरुद्ध नारे लगा रहे थे. ये इराक़ में शिया समुदाय की प्रतिक्रिया के बिलकुल ख़िलाफ़ था जहाँ अब तक कम से कम पचास सुन्नी मुसलमानों को मार दिया गया है. कश्मीर घाटी में शिया मुसलमानों की अच्छी ख़ासी तादाद है हालाँकि वहाँ सुन्नी मुसलमान बहुमत में हैं. संबंध सदभावनापूर्ण कभी-कभी यहाँ सुन्नी-शिया फ़साद भी हुए हैं लेकिन कुल मिलाकर दोनों समुदायों के बीच संबंध शांतिपूर्ण रहे हैं.
यहाँ तककि पाकिस्तान में आए दिन जो हिंसा होती है उसका भी यहाँ कोई असर देखने में नहीं आता. इसके कई कारण हैं. एक मुख्य कारण यह है कि कश्मीर के शिया समुदाय का अधिकतर झुकाव ईरान की ओर है और वे ईरान से ही प्रेरणा लेते हैं. कोई आश्चर्य नहीं कि कश्मीरी शिया मुसलमान भी अमरीका को शत्रु मानते हैं. आजकल तो उनमें अमरीका के प्रति ज़्यादा ही ग़ुस्सा है क्योंकि अमरीका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर उसके ख़िलाफ़ महाज़ खोल दिया है. सरकारी स्तर पर अमरीका की मुस्लिम देशों के प्रति नीति जो भी हो, आम मुसलमान अमरीका से नफ़रत करता है या कम से कम बेज़ार ज़रूर है. सुन्नी हों या शिया, सब का ये विचार है कि अमरीका ने इराक़ पर क़ब्ज़ा किया हुआ है और वह मुस्लिम देशों पर धौंस जमाता है. शायद यह भावना भी मुसलमानों के एकजुट होने में सहायक रही है. यह उल्लेखनीय है कि इराक़ में अल-अस्करी मज़ार पर विस्फोट के बाद भी ईरान के राष्ट्रपति ने नई फ़लस्तीनी सरकार को आर्थिक सहायता देने की घोषणा कर दी. | इससे जुड़ी ख़बरें अल हादी और अल अस्करी मज़ार22 फ़रवरी, 2006 | पहला पन्ना इराक़ को गृहयुद्ध से बचाने की अपील22 फ़रवरी, 2006 | पहला पन्ना अस्करी मज़ार पर हमले का भारी विरोध22 फ़रवरी, 2006 | पहला पन्ना बसरा में 11 सुन्नी क़ैदियों की हत्या23 फ़रवरी, 2006 | पहला पन्ना इराक़ में हिंसा, आपात बैठक23 फ़रवरी, 2006 | पहला पन्ना | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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