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शनिवार, 29 अक्तूबर, 2005 को 15:05 GMT तक के समाचार

पाणिनी आनंद
दिल्ली से

परिजनों को ढूँढ़ रही थी नम आँखें...

चारों ओर अफ़रातफ़री, घायल विदेशी पर्यटक, बिखरे मांस के लोथड़े, मकानों के टूटे शीशे और अपने परिवार के लोगों को ढ़ूढते परिजन, कुछ ऐसा ही मंजर था दिल्ली के सबसे व्यस्त समझे जानेवाले इलाके पहाड़गंज का.

विस्फोटों से पहाड़गंज दहल उठा. त्योहार के इस मौक़े पर दुकानों के आगे ख़रीदारों की नहीं, परेशान और सहमे हुए लोगों की भीड़ थी और कितनी ही आँखें अपने परिजनों को खोज रही हैं.

किसी का बेटा घर नहीं लौटा था तो कोई अपनी माँ को खोज रहा था.

विस्फोट इतना भयानक था कि आसपास के मकानों के तमाम शीशे टूट गए थे.

अनेक एंबुलैंस घटनास्थल पर मौजूद थीं और घायलों को अस्पताल ले जाने का काम चल रहा था.

यह विस्फोट शाम करीब साढ़े पाँच से छह के बीच हुआ जब बड़ी तादाद में लोग त्योहार के मद्देनज़र ख़रीददारी करने के लिए बाज़ार में मौजूद थे.

बेहिसाब पुलिसकर्मी, मीडियाकर्मी और सरकार के आलाअधिकारी मौके पर मौजूद तो थे पर कोई कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था

मेरे ठीक बगल में एक बच्चे का झुलसा हुआ हाथ पड़ा था पर बच्चा कहाँ था, कोई पता नहीं.

लोग शोर मचा रहे हैं और इलाके में दहशत थी. घायलों में तमाम महिलाएं और बच्चे हैं.

खचाखच भरे रहनेवाले इस बाज़ार में अब ख़रीददारों की नहीं, घायलों को खोज रहे लोगों और रोती-बिलखती महिलाएं थीं.

इसमें भी हालत तब और बिगड़ती नज़र आई, जब घटनास्थल के आसपास ही तमाम समाचार चैनलों पर लोगों ने दिल्ली के बाकी दो हिस्सों में भी विस्फ़ोट की ख़बर सुनी.

घबराए लोगों में तमाम व्यापारी भी थे पर सबसे ज़्यादा परेशानी उन लोगों को हो रही थी, जो अपने परिजनों को खोजने के लिए यहाँ आए हुए थे.

पुलिस किसी को भी कुछ भी बता पाने में असमर्थ थी. ऐसे समय में इलाक़े की बिजली आपूर्ति ठप होने से लोगों की मुश्किलें और बढ़ गईं थीं.