बुधवार, 14 सितंबर, 2005 को 07:45 GMT तक के समाचार
जगदीश प्रसाद माथुर
वरिष्ठ भाजपा नेता
कोई भी स्थिति स्थिर नहीं होती. इन 25 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने सफलताएं भी प्राप्त की हैं और कठिनाइयों का मुक़ाबला भी किया है और उसे मतभेद की स्थिति को भी झेलना पड़ा है.
ये सफ़र कोई अनोखा नहीं है. इस देश की हर पार्टी का ऐसा अनुभव रहा है.
यहाँ तक की एकछत्र कही जाने वाली पार्टी, कांग्रेस पार्टी तक विभाजित हुई है और जिस रास्ते पर वो चले थे, आज वहाँ से कहीं अलग खड़े हैं.
भाजपा कोई अनोखी पार्टी तो है नहीं. भाजपा ने आठ वर्षों तक शासन भी किया है.
आज जो सवाल उठ रहे हैं उनकी वजह यह है कि भाजपा अब सत्ता में नहीं हैं, पर क्यों नहीं हैं या कांग्रेस कैसे सत्ता में आ गई, यह न तो हम समझ पाए हैं, न कांग्रेस और न कोई और ही यह बता सकता है.
मूल्य और सिद्धांत
जहाँ तक पार्टी में मूल्यों, सिद्धांतों और अनुशासन के पालन का सवाल है, संगठन के लोगों के जीवन मूल्य समय और विज्ञान के विकास के साथ बदलते हैं.
कई लोग कहते हैं कि अब भाजपा भी पाँच सितारा होटलों में रहने लगी है. जनसंघ में ऐसा नहीं था. अरे उस समय पाँच सितारा होटल थे ही नहीं तो क्या होता.
पहले लोग बहुत सादा रहते थे, वो भी ठीक था पर विज्ञान की सुविधाओं के विकास के साथ ही संगठनों और लोगों का चरित्र भी बदलता है.
मेरा तो मानना है कि आज व्यक्ति का, समाज का और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का भी निर्णय विज्ञान की आधुनिकतम उपलब्धियों से प्रभावित हो रहा है. किसी गीता, रामायण, बाइबिल या क़ुरान से नहीं हो रहा.
भाजपा भी अब इस अज्ञात भय के विचार से ऊपर उठकर एक आधुनिक पार्टी के तौर पर उभर रही है.
रही बात पार्टी के मुद्दों की, तो हम आज भी समान नागरिक संहिता, धारा 370 और मंदिर निर्माण जैसे मुद्दों पर अडिग हैं और पार्टी ने अपने दृष्टिकोण को नहीं बदला है.
अनुशासन
सरकार के कायदों के बाहर किसी भी संस्था और व्यक्ति के लिए अनुशासन ख़ुद पर निर्भर करता है.
किसी ने अनुशासन भंग किया तो अधिक से अधिक आप उसको निकाल सकते हैं. गोली तो नहीं मार सकते न. सज़ा तो नहीं दे सकते.
जैसा कि अभी खुराना जी के साथ हुआ. खुराना जी ने अपनी ग़लती स्वीकार की. हमने उनकी प्राथमिक सदस्यता बहाल कर दी.
पर कोई पद नहीं दिया. इस तरह हमने अनुशासन और संबंधों का परस्पर मेल बनाकर रखा है.
भाजपा आज वैचारिक मंथन की स्थिति में है और मुझे लगता है कि जो आधुनिक आवश्यकताएं हैं, आज के परिवेश की दृष्टि से, वही स्थापित होगीं.
दुर्भाग्य यह है कि आज जो हिंदू को गाली दे वो धर्मनिरपेक्ष है और जो मुसलमान को गाली दे, वो हिंदू. ऐसा सोचना ग़लत है पर आज यह आम धारणा बन गई है.
आज जो थोड़ा सा अंतरकलह दिखाई दे रहा है, वो एक प्रारंभिक दौर है जिसमें आरएसएस और भाजपा के संबंधों के बीच जो एक नई सोच आ रही है, वो मूल है.
हाँ मगर परिवार एक ही है इसलिए सबकुछ ज़्यादा लंबा नहीं चलेगा और स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.
(पाणिनी आनंद से बातचीत पर आधारित)