गुरुवार, 08 सितंबर, 2005 को 14:04 GMT तक के समाचार
मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू होने से देश का इतना बड़ा नुकसान हुआ है कि उससे हमारा देश संभलने के बजाए दिन व दिन और कमज़ोर होते जा रहा है.
इस देश की सबसे बड़ी कमज़ोरी है जन्म पर आधारित जातिवाद.
यह सबसे बड़ा कलंक है हमारे समाज का और दुर्भाग्य की बात यह है कि इसको मिटाने की बजाए इसे और ठोक-ठोक करके मज़बूत किया जा रहा है.
दुर्भाग्य यह है कि हमने या हमारे संविधान ने तो कहा कि हम अपने नागरिकों के बीच कोई भी भेदभाव जाति या धर्म के बीच नहीं करेंगे, लेकिन दुर्भाग्य की पहला ही संशोधन जो हमने किया उसमें हमने अनुसूचित जाति के आधार पर आरक्षण देकर जातिवाद को बढ़ावा दे दिया.
उसके बाद मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए आरक्षण दे दिया. इस तरह से जन्म के आधार पर और जातियों के आधार पर समाज को बाँटने का काम एक बार फिर हुआ.
इससे कमज़ोर तबकों को कोई लाभ नहीं हुआ.
आर्थिक और शैक्षणिक आधार पर अगर हम कमज़ोर लोगों को सहुलियत देते तो मैं कहता हूँ कि सौ प्रतिशत आरक्षण इस आधार पर दे दें.
अब पार्टियाँ भी टिकट देते समय जातियों की खुलकर बात करते हैं और इसी के आधार पर टिकट देते हैं.
जब तक इस जातिवाद के कलंक से छुटकारा नहीं पाते हैं, जिसे गाँधी जी ने इसे कैंसर कहा था, तब तक भारतीय समाज मज़बूत नहीं बन सकता, एकता नहीं बन सकती.
राजनीति पर प्रभाव
इसके चलते राजनीतिक परिवर्तन बहुत हो गए. आज कोई भी चुनाव देख लीजिए. बिहार, उत्तर प्रदेश या कोई भी चुनाव, जातिवाद के बिना कोई बात ही नहीं होती.
हम जब कहते है कि तमाम नागिरक बराबर हैं और एक नागरिक एक वोट की नीति है तब जाति की बात क्यों होती है.
लोकतंत्र को मज़बूत करने के बजाए इसे बहुत कमज़ोर खोखला बना कर रहे हैं, यह हुआ है मंडल का असर.
दलित हितों की बात करने वाली मायावती को कहना पड़ता है कि ब्राह्मणों का सम्मेलन करेंगे. केवल किसी एक जाति के आधार पर कोई लोकतंत्र में चुनकर नहीं आ सकता.
विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को भी अपनी राजनीतिक मज़बूती के लिए ये कदम उठाना पड़ा था.
लोग आमतौर पर सार्वजनिक रुप से मंडल के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहते पर व्यवहार में बिलकुल उल्टा करते हैं.
तमाम राजकीय पक्ष आज जातिवाद के आधार पर उम्मीदवार तय करते हैं और यही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है हमारे देश का.
बाबा साहेब आम्बेडकर ने पहले संशोधन 1951 में कहा था कि यह केवल 10 साल के लिए रहना चाहिए लेकिन क्या हुआ? आरक्षण आज तक जारी है.
आज सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद भी हम कहते हैं कि हम क़ानून बदलेंगे तो इसका मतलब क्या है? हम अपने आपको धोखा दे रहे हैं इससे कोई लाभ नहीं होने वाला.
(विनोद वर्मा से हुई बातचीत के आधार पर)