सोमवार, 05 सितंबर, 2005 को 11:36 GMT तक के समाचार
सुरक्षाकर्मियों पर हुए हमले के बाद छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने सभी नक्सली संगठनों और उनसे जुड़ी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला किया है.
सरकार इसके लिए एक अध्यादेश लाने जा रही है.
शनिवार की शाम बस्तर के जंगलों में एक बारूदी सुरंग के फटने से गश्त में लगे 24 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी.
हालांकि केंद्र के ग़ैरक़ानूनी गतिविधि प्रतिरोधक क़ानून के तहत माओवादी संगठनों पर प्रतिबंध पहले से ही था और राज्य सरकार इसी का हवाला देकर अलग से क़ानून लागू नहीं करती थी.
विश्लेषकों का कहना है कि आँध्र प्रदेश से अनुभव बाँट रही छत्तीसगढ़ सरकार को हाल के हमले के बाद यह राज्यव्यापी प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता महसूस हुई.
अध्यादेश
छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री रामविचार नेताम के अनुसार सोमवार को मंत्रिमंडल की एक आपात बैठक हुई जिसमें माओवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए अध्यादेश जारी करने का फ़ैसला किया गया.
उन्होंने कहा, "इसके तहत ऐसे सभी संगठनों या व्यक्तियों पर कार्रवाई की जा सकेगी जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से आतंकवाद को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं."
सरकार की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति ऐसी गतिविधि में संलग्न पाया जाएगा सरकार उसको गिरफ़्तार करने और उसकी संपत्ति ज़ब्त करने के लिए स्वतंत्र होगी.
इसके लिए एक से सात साल जेल की सज़ा का भी प्रावधान किया गया है.
सरकार ने कहा है कि जो भी दोषी पाया जाएगा उसका पक्ष सुनने के लिए एक न्यायाधीश की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति बनाई जाएगी.
सात राज्यों से घिरे छत्तीसगढ़ राज्य के सभी 16 ज़िले नक्सल प्रभावी हैं.
छत्तीसगढ़ इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाने वाला आँध्र प्रदेश के बाद दूसरा राज्य है.
क्या असर होगा
नक्सली मामलों के जानकार और छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग का कहना है कि केंद्रीय क़ानून के तहत राज्य सरकार यूँ भी नक्सली गतिविधियों पर रोक लगाने का प्रयास करती रहती थी.
लेकिन अब सरकार को उम्मीद है कि इस अध्यादेश से नक्सली संगठनों या माओवादी संगठनों को मिलने वाली सभी तरह की सहायता पर रोक लगाई जा सकेगी.
रुचिर गर्ग ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि पुलिस के लिए सबसे बड़ी परेशानी नक्सलियों को नेटवर्क है जो उन्होंने जंगल में बना रखा है और प्रशासन उम्मीद कर रहा है कि इस बहाने से इस नेटवर्क को भी ख़त्म किया जा सकेगा.
लेकिन उनका कहना है कि पुलिस और प्रशासन के पास इस क़ानून के बहाने से अतिरिक्त अधिकार तो आ जाएँगे लेकिन इससे आम आदिवासी और पत्रकारों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.
उनका कहना है, "पहले भी सुरक्षाकर्मी आदिवासियों को नक्सलियों का साथ देने का आरोप लगाकर परेशान करते थे और दूसरी ओर नक्सली उन पर मुखबिरी का आरोप लगाकर प्रताड़ित करते थे लेकिन अब तो नक्सलियों को पानी पिलाने वाले की भी शामत आ सकती है."
उन्होंने पत्रकारों के अनुभवों का हवाला देकर कहा कि अधिकारी वैसे भी पत्रकारों को संदेह के दायरे में रखकर चल रहे हैं.