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जादू मंतर के चक्कर में चक्करघिन्नी | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अगर आपके पास हनुमान और राम-सीता की तस्वीरों वाले पुराने सिक्के हैं तो आप मालामाल हो सकते हैं. आपने कहीं तीन टाँगों वाला मेढ़क देखा हो तो फिर तो आपको इसके बदले पूरे पाँच लाख रुपए मिल सकते हैं. और तो और छह नाख़ून वाले कछुए के लिए कई लोग आसानी से आपको एक लाख रुपए तक देने के लिए तैयार हो सकते हैं. ज़ाहिर है, आप इसे पागलपन कहेंगे लेकिन छत्तीसगढ़ में बस्तर से सरगुजा तक यह पागलपन इन दिनों अपने चरम पर है. ओझा-बैगा-गुनिया यानी तांत्रिकों ने इन चीज़ों को शुभ घोषित कर दिया है और इनके लिए छत्तीसगढ़ में अंधविश्वासी लोगों के बीच एक होड़-सी मची हुई है. इनके सहारे करोड़पति बनने का सपना देखने वाले लोग घने जंगलों में भटक रहे हैं, पुराने टीले खोद रहे हैं, गांव-गांव की धूल फाँक रहे हैं. दांव पर जान हद तो यह है कि इसके लिए जान भी दांव पर लगानी पड़े तो भी लोग तैयार हैं. गुरुवार को रायगढ़ जिले के एक गांव में तीन भाई ऐसा ही शुभ कछुआ पकड़ने के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठे. रायगढ़ के लालचंद रात्रे को किसी तांत्रिक ने बताया था कि अगर किसी के पास छह नाखूनों वाला कछुआ हो तो उसे ज़मीन में गड़ा हुआ ख़जाना नज़र आ जाता है. 40 साल के लालचंद लगातार इस करामाती कछुए की तलाश में यहां-वहां भटकते रहे. एक दिन जब उन्हें पता चला कि एक कुएं में कई कछुए हैं तो वह कुएं में उतरे. लंबे समय से इस्तेमाल नहीं होने के कारण कुंए में जहरीली गैस का रिसाव हो रहा था. रात्रे जहरीली गैस की चपेट में आ गए और उनकी वहीं मौत हो गई. रात्रे के दो भाई सुदामा और पंचात भी एक-एक कर इस कुएं में उतरे और इस गैस का शिकार बन गए. रायगढ़ के कलेक्टर आरएस विश्वकर्मा कहते हैं, "जशपुर और रायगढ़ के इस इलाके में बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों से आए व्यापारी ग्रामीणों को उकसाते हैं. गांव वाले भी अंधविश्वास और पैसे के लोभ में अपना जीवन दांव पर लगा देते हैं. हालांकि अब ऐसी घटनाओं पर बहुत हद तक क़ाबू पा लिया गया है." रायगढ़ में कुछ समय पहले ही हनुमान और राम-सीता की तस्वीरों वाले सिक्के के नाम पर ठगी करने वाला एक गिरोह पुलिस के हाथ लगा था, जो लोगों को 50 हज़ार से लेकर एक लाख रुपए में इस तरह के सिक्के बेचता था. उल्लुओं की शामत ऐसी चीज़ों के चक्कर में लोग कब्रिस्तान के भी चक्कर काट रहे हैं. बस्तर के कोंडागांव में लोगों ने सिक्कों की तलाश में 150 साल पुरानी कब्रें भी खोद डालीं.
इतना ही नहीं, अंधविश्वास और ठगी के इस कुचक्र में कई जानवर और पंछी भी मारे जा रहे हैं. ख़जाने की तलाश में काली बिल्ली को मारकर उसकी आंख निकाल लेने की कई घटनाएँ सामने आई हैं. तांत्रिक गिरधर शर्मा कहते हैं, "पिछले कुछ समय में ही राज्य में हज़ारों की संख्या में उल्लू मारे गए हैं. आज तक मैंने कछुआ, सिक्का, सांप के केचुल का उल्लेख न तो किसी तंत्र विद्या की पुस्तक में पाया है और न ही अपने संपर्क में आने वाले सैकड़ों तांत्रिकों से. यह विशुद्ध रुप से ठगी का मामला है." अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र इसे अंधविश्वास से जोड़ते हैं. वे कहते हैं, "तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में हर कोई बिना मेहनत के पैसे पाना चाहता है. इसका लाभ ढोंगी तांत्रिक, साधु और बाबा उठा रहे हैं. राज्य में बड़े पैमाने पर लोग इस तरह के अंधविश्वास में फंसकर मानसिक रोग के शिकार हो रहे हैं." मामला चाहे ठगी से जुड़ा हो या फिर अंधविश्वास से, फिलहाल छत्तीसगढ़ में आशा, आस्था और विश्वास के झूले पर पेंगे लेता कोई परेशान-सा अनजान आदमी जब धीरे से आपके कानों में फुसफुसाए तो संभव है, वह आपसे 1717, 1818 या 1919 के सिक्के के बारे में पूछ रहा हो. |
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