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साहस की मिसाल बनीं बिल्क़ीस ख़ातून | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद ज़िले की 10 वर्षीया बिल्क़ीस ख़ातून कम उम्र में शादी जैसी सामाजिक कुरीति के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर अपने गाँव ही नहीं बल्कि पूरे ज़िले में साहस की मिसाल बन गई है. उनके इस साहसिक क़दम के लिए ज़िला प्रशासन ने राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए उनके नाम की सिफ़ारिश करने का फ़ैसला किया है. आख़िर बिल्क़ीस ख़ातून ने किया क्या है? ज़िले के भगवानगोला थाने के तहत मोहम्मदपुर गाँव की रहने वाली बिल्किस हबसपुर प्राथमिक विद्यालय में चौथी कक्षा में पढ़ती है. पिता नुरुल इस्लाम पेशे से राजमिस्त्री हैं और लखनऊ में रहते हैं. बिल्क़ीस के राजी नहीं होने के बावजूद उसकी माँ मैना बीबी ने गाँव के ही 25 वर्षीय तूफ़ान शेख़ नामक एक युवक से उसका निकाह करा दिया. रिपोर्ट बिल्क़ीस मजबूरी में अपनी ससुराल तो चली गई. लेकिन वहाँ से मौक़ा मिलते ही उसने थाने जाकर अपनी माँ और निकाह कराने वाले क़ाज़ी के ख़िलाफ़ थाने में रिपोर्ट लिखवा दी है. इस पर पुलिस ने उसकी माँ और क़ाज़ी को गिरफ़्तार कर लिया. हालाँकि बाद में उनकी जमानत हो गई. लेकिन बिल्क़ीस ख़ातून के इस साहसिक फ़ैसले ने उसे इलाक़े में चर्चित कर दिया है. उसके पति तूफ़ान भी लखनऊ में राजमिस्त्री का काम करते हैं. वह शादी के कुछ दिनों बाद ही लखनऊ चला गया था. बिल्क़ीस ख़ातून के इस फैसले से गाँववाले तो ख़ुश हैं ही, उसके स्कूल की शिक्षिकाएँ भी ख़ुश हैं. एक शिक्षिका महाश्वेता मुखर्जी कहती हैं, "इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ आवाज उठाकर बिल्किस ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है." मुर्शिदाबाद के ज़िलाधिकारी एन मंजूनाथ प्रसाद कहते हैं कि 10 साल की लड़की ऐसा साहसिक फ़ैसला कर सकती है, इसकी कल्पना करना मुश्किल है. आसपास के गाँवों में भी अब बिल्क़ीस ख़ातून की मिसाल दी जाने लगी है. वैसे इस इलाक़े में कम उम्र में लड़कियों की शादी होना आम है. ज़िला प्रशासन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 40 फ़ीसदी लड़कियों की शादी 10 से 14 की उम्र तक हो जाती है. लेकिन गाँव वाले इस आँकड़े को 65 से 70 फ़ीसदी बताते है. इसकी मुख्य वजह है-शिक्षा का अभाव, कुसंस्कार और ग़रीबी. लेकिन बिल्किस पहली लड़की है जिसने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है. फ़ैसला बिल्क़ीस ख़ातून की माँ मैना बीबी अब अपने फ़ैसले पर पछता रही है. बिल्क़ीस ख़ातून उनकी इकलौती संतान है. पहले चार बच्चे थे. लेकिन सबकी मौत हो गई.
इसलिए अपने अरमान पूरे करने और संतान की भलाई के लिए उन्होंने उसका निकाह पढ़वा दिया. वे कहती हैं, "अपनी ग़रीबी के कारण अच्छा लड़का देख कर मैंने उसका निकाह करा दिया. यह सोचकर कि लड़की सुख से रहेगी." बिल्क़ीस ख़ातून की माँ का कहना है कि अभी तुरंत तलाक़ होना मुश्किल है. बिल्क़ीस ख़ातून जब तक चाहे पढ़े. 18 वर्ष की होने के बाद वह चाहे तो अपने पति के घर लौट सकती है. माँ को भले अफ़सोस हो, लेकिन बिल्क़ीस ख़ातून को अपने फ़ैसले पर कोई अफ़सोस नहीं है. वह अपने पति से तलाक़ चाहती है. बिल्क़ीस ख़ातून कहती हैं, "मैं उस शादी को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकती. मैं पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूँ." ज़िला प्रशासन ने भी पढ़ाई में सहायता का भरोसा दिया है. |
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