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शुक्रवार, 12 अगस्त, 2005 को 22:53 GMT तक के समाचार

महत्वपूर्ण स्थान था कदिरगामर का

श्रीलंका की राजनीति में लक्ष्मण कदिरगामर का स्थान काफ़ी महत्वपूर्ण था. वैसे वे नेता कम अधिवक्ता अधिक माने जाते थे.

73 वर्षीय कदिरगामर ने ब्रिटेन के प्रख्यात ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से क़ानून की शिक्षा प्राप्त की थी.

श्रीलंका की वर्तमान राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के वे बेहद नज़दीकी थे और दोनों ही बार उनकी सरकार में वे विदेश मंत्री बने.

सबसे पहले कुमारतुंगा ने उन्हें 1994 से 2001 तक विदेश मंत्री बनाया. तीन साल बाद सन् 2004 में एक बार फिर कुमारतुंगा ने उनको विदेश मंत्री नियुक्त किया.

कदिरगामर स्वयं जाफ़ना के तमिल अल्पसंख्यक समुदाय से आते थे लेकिन वे तमिल विद्रोहियों के कट्टर विरोधी थे.

तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई को कई देशों में प्रतिबंधित करवाने का श्रेय कदिरगामर को जाता है जिनमें ब्रिटेन और अमरीका जैसे देश शामिल हैं.

कुमारतुंगा के क़रीबी

लक्ष्मण कदिरगामर श्रीलंका की वर्तमान मंत्रिमंडल में ऐसे मंत्रियों में थे जिन्हें सबसे कड़ी सुरक्षा मिली हुई थी.

कदिरगामर नॉर्वे की मध्यस्थता में हो रही शांतिवार्ता के कड़े आलोचक थे और हमेशा ये सवाल उठाते रहे कि आख़िर कैसे कोई दूसरा देश अलगाववादियों से बिना कुछ गँवाए समझौता करवा सकता है.

लेकिन ये वो हमेशा कहते रहे कि श्रीलंका की तीन दशक पुरानी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान आवश्यक है.

विवाद

लक्ष्मण कदिरगामर अपने राजनीतिक जीवन में कई बार विवादों में आए.

जब वे पहली बार विदेश मंत्री बने तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से कहा कि वह श्रीलंका के संकट से दूर रहकर मलेरिया और मच्छरों की समस्या पर ध्यान दे.

1996 में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम ने जब सुरक्षा की चिंता जताकर श्रीलंका जाने से मना कर दिया तो उन्होंने इसे एक दुर्भावनापूर्ण कृत्य बताया.

सन् 2003 में उन्होंने राष्ट्रकुल के प्रमुख पद के लिए दावेदारी की लेकिन विफल रहे.

अंतरराष्ट्रीय तौर पर उन्हें बौद्धिक संपदा संबंधी क़ानून का एक विशेषज्ञ माना जाता था.