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मदरसों के पंजीकरण का विरोध | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पाकिस्तान में धार्मिक संस्थाओं के एक शीर्ष संगठन ने सभी मदरसों के पंजीकरण की सरकार की कोशिशों का विरोध करने की घोषणा की है. वक्फ़ उल मदारिस के प्रवक्ता क़ारी हनीफ़ जालंधरी ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उन्हें सरकार की विभिन्न शर्तों पर आपत्ति है. जालंधरी ने कहा कि मदरसों को मिलने वाले धन के स्रोत का नाम सार्वजनिक करने की शर्त उन्हें मंज़ूर नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर डर है कि सरकार निजी दानदाताओं को तंग कर सकती है. जालंधरी ने सरकार से यह भी स्पष्ट करने की माँग की है कि नफ़रत फैलाने वाली सामग्री से उनका क्या आशय है. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में मदरसों के पंजीकरण का काम बुधवार से ही शुरू होना था. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया है कि सरकार मदरसा प्रतिनिधियों की बैठक बुलाकर ताज़ा मतभेदों को दूर करने की कोशिश करेगी. मुशर्रफ़ की घोषणा राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने धार्मिक संस्थाओं में अवैध कार्यकलापों और अतिवाद को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों पर रोक के उपायों के तहत मदरसों के अनिवार्य पंजीकरण की घोषणा की थी. पाकिस्तान में 12 हज़ार से ज़्यादा मदरसे हैं. पिछले दो दशकों के दौरान इनकी संख्या में काफ़ी बढ़ोत्तरी हुई है और इनमें से कुछ के संबंध तालेबान और अन्य चरमपंथी इस्लामी संगठनों से होने की बातें भी कही गई हैं. कई विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति मुशर्रफ़ ने पश्चिमी देशों को यह भरोसा दिलाने के लिए मदरसों के पंजीकरण की घोषणा की है कि पाकिस्तान में धार्मिक संस्थाओं पर नज़र रखी जा रही है. |
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