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श्रीलंका में सूनामी राहत संबंधी समझौता | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
श्रीलंका में सरकार और लिट्टे विद्रोहियों के बीच सूनामी पुनर्निर्माण संबंधी राहत में भागीदारी करने का समझौता हुआ है. इस समझौते के तहत देश भर के सभी सूनामी प्रभावित इलाक़ों में राहत सामग्री का एकसमान वितरण किया जाएगा. सूनामी के छह महीने बाद भी देश के हज़ारों प्रभावितों को राहत नहीं मिल सकी है. इस संबंध में तैयार किए गए दस्तावेज लेकर नार्वे के अधिकारी तमिल विद्रोहियों के इलाक़े में जाएंगे जहां इस पर विद्रोहियों के नेता हस्ताक्षर करेंगे. इस समझौते के बाद दोनों पक्ष क़रीब तीन अरब डॉलर की राशि का इस्तेमाल राहत सहायता के लिए कर सकेंगे. कोलंबो में बीबीसी संवाददाता दमिता लूथरा का कहना है कि इस समझौते के कारण आंतरिक विवाद पैदा हो गया है और सरकार में दरार पड़ रही है. राष्ट्रवादी पार्टी जन विमुक्ति पेरुमना ( जेवीपी) ने राजधानी में ज़बर्दस्त प्रदर्शन किया और उन्हें संसद में घुसने से रोकने के लिए पुलिस को आंसू गैस का इस्तेमाल करना पड़ा है. पुलिस के अनुसार कोलंबो में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. मुस्लिमों में गुस्सा तमिल विद्रोहियों और सरकार के बीच इस समझौते को लेकर न केवल राष्ट्रवादी दल में असंतोष है बल्कि मुस्लिम समुदाय भी ख़ासा नाराज़ है. आमपराई ज़िले के मस्जिदों के संघ के अध्यक्ष इब्राहिम ने बीबीसी से कहा " यह बहुत दुखद है. इस समझौते से किसी को कुछ नहीं मिलेगा. हम इस समझौते का विरोध करते हैं." समझौता कराने में बड़ी भूमिका निबाने वाले नार्वे के विदेश उपमंत्री विदार हेलगेसन का कहना है कि पूर्व में मुस्लिम नेता इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं हैं. श्रीलंका में सूनामी के कारण 31000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और दस लाख से अधिक लोग बेघरबार हो गए थे. हस्तक्षेप की अपील
सूनामी के बाद लिट्टे ने तमिल इलाक़ों में लोगों की समस्याओं की ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा लेकिन देश के दूसरे सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुस्लिमों को लगता है कि उनकी तरफ़ राजनेता ध्यान नहीं दे रहे हैं. देश की दो प्रमुख मुस्लिम पार्टियां अलग अलग खेमों में हैं. हालांकि इन दलों को उम्मीद थी कि सूनामी राहत संबंधी समझौते में उन्हें भी शामिल किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. पुनर्निर्माण समझौता शुरु से ही विवादों के घेरे में रहा है. पहले तमिल विद्रोही इससे खुश नहीं थे फिर राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग की सरकार के कई गठबंधन दलों और बौद्ध भिक्षुओं ने इसका विरोध किया. इसके बाद अब मुस्लिम समुदाय इस पर अपनी नाराज़गी जता रहा है. |
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