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यूनियन कार्बाइड में 'सफ़ाई' पर विवाद | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भोपाल में यूनियन कार्बाइड की बंद पड़ी फैक्ट्री में हज़ारों टन पड़े ज़हरीले रासायनिक तत्वों की कथित सफ़ाई का मामला गरमा गया है. गैस पीड़ितों के लिए काम कर रहे ग़ैर सरकारी संगठनों का कहना है कि सरकार वहाँ पड़े इन पदार्थों को चुपचाप हटा रही है जबकि राज्य सरकार इसे ग़लत बताती है. पहले चरण की सफ़ाई 20 जून तक पूरा कर देने के जबलपुर उच्च न्यायालय के आदेश के ठीक पहले यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में काम शुरू किए जाने को स्वयंसेवी संस्थाएँ रासायनिक पदार्थों को वहाँ से हटाने का नाम दे रहे हैं. गैस पीड़ितों की संस्था इंटरनेशनल कैम्पेन फॉर जस्टिस की रीना ढींगरा का कहना है कि वहाँ उन्होंने कुछ लोगों को काम करते देखा और ये लोग रासायनिक पदार्थ वहीं गड्ढे में फेंक रहे थे. उनके अनुसार इन मज़दूरों ने न तो कोई मास्क पहन रखा था और न ही उनके पास कोई दस्ताने या ऐसे उपकरण थे जो ज़हरीले पदार्थों को हटाने के काम के लिए ज़रूरी होते हैं. मध्य प्रदेश सरकार के गैस राहत विभाग के प्रमुख सचिव एम एम उपाध्याय का कहना है कि सरकार ने परिसर में कोई ऐसा काम शुरू नहीं किया जो ज़हरीले पदार्थों की सफ़ाई से संबंधित हो. विवाद राज्य मंत्रिमंडल में गैस राहत और पुनर्वास कार्यों के मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा, ''यह काम सिर्फ़ सुरक्षा की दृष्टि से किया जा रहा है. उच्च न्यायालय का आदेश था कि दीवारें जर्जर हो गईं हैं और इस ओर ध्यान दिया जाए. यह काम मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की देखरेख में हो रहा है.'' उन्होंने कहा कि यह काम सिर्फ़ दीवारें बनाने का है ताकि रासायनिक पदार्थ बरसात के पानी के साथ बहकर बाहर न जा पाएँ. लेकिन स्वयंसेवी संस्था ग्रीनपीस और इंटरनेशनल कैम्पेन फॉर जस्टिस का तर्क है कि वर्षों से टूटी पड़ी दीवार को बनाने का ध्यान सरकार को अचानक कैसे आया. वे कहते हैं कि सरकार पूरा रासायनिक कचरा धीरे धीरे हटा देना चाहती हैं ताकि इसकी सफ़ाई का मसला ही सिरे से समाप्त हो जाए. स्वयंसेवी संस्थाओं ने वहाँ चल रहे काम को टालने और सफ़ाई की विस्तृत योजना जारी करने की मांग की है. |
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