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बुधवार, 06 अप्रैल, 2005 को 06:26 GMT तक के समाचार

श्रीनगर से विनोद वर्मा
बीबीसी संवाददाता

दोनों कश्मीर को एक करने का ख्वाब

जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट यानी जेकेएलएफ़ अलगाववादियों की ऐसी पहली संस्था थी जिसने दोनों और के विवादित कश्मीर को एक करने का ख़्वाब देखा था.

लेकिन एक लकीर है जिसने कश्मीर को दो हिस्सों में बाँट रखा है.

और अब जब यह लकीर एक जगह से टूटने जा रही है, उस पर एक पुल खड़ा हो गया है तब जेकेएलएफ़ कहाँ है?

जब हर ओर श्रीनगर-मुज़फ़्फ़राबाद बस सेवा का शोर है और लोग इस कल्पना से ही उत्साहित हैं तब वे क्या सोच रहे हैं यही जानने के लिए मैं पहुँचा माइसुमा में जेकेएलएफ़ के दफ़्तर.

लंबी बातचीत से जो समझ में आया कि जेकेएलएफ़ नाराज़ है कि इस पूरी पहल में उनको साथ नहीं लिया जा रहा है और कश्मीर के लोगों की राय नहीं ली जा रही है.

बुनियादी मसला

कश्मीर के लोगों के बीच रायशुमारी जेकेएलएफ़ की पुरानी माँग है और हाल ही में उन्होंने पंद्रह लाख हस्ताक्षर भी इकट्ठे किए थे.

लेकिन सब सेवा से लोग तो ख़ुश हैं, इस सवाल के जवाब में जेकेएलएफ़ नेता शेख अब्दुल रशीद कहते हैं कि बस सेवा का शुरु होना तो ख़ुशी की ही बात है लेकिन इससे बुनियादी मसला तो हल नहीं होगा.

वे कहते हैं कि लोगों को अपनी आज़ादी का फ़ैसला देने का जो वादा था वो पूरा किया जाना चाहिए. जेकेएलएफ़ नेता ने कहा कि उन्हें भारत-पाकिस्तान की बातचीत में भी शामिल किया जाना चाहिए.

हालांकि उन्हें भारत सरकार के वादों पर भरोसा भी नहीं है और वे मानते हैं कि भारत सरकार इस विषय पर गंभीर नहीं है.

तो क्या वही नहीं होना जा रहा है जो जेकेएलएफ़ चाहता था कि दोनों ओर के लोग मिलें और एक दूसरे को समझें, इस सवाल के जवाब में उनका कहना है कि दोनों ओर के लोगों का मिलना बिना किसी डर के और किसी तीसरे पक्ष के बिना हो, बंदूकों के साए में नहीं.

इन शिकायतों के पीछे ये डर तो नहीं है कि यदि सब कुछ ठीक हो जाएगा तो जेकेएलएफ़ जैसे संगठनों का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा, इसके जवाब में शेख रशीद कहते हैं कि आज़ादी मिलने के बाद तो वैसे भी लिबरेशन फ़्रंट को ख़त्म हो जाना है लेकिन आज़ादी कहाँ मिल रही है.

जेकेएलएफ़ के अध्यक्ष यासीन मलिक अस्वस्थ हैं और दिल्ली में अपना इलाज करवा रहे हैं.

कश्मीरी मामलों के जानकार लोगों का मानना है कि एक तो जेकेएलएफ़ को अलगाववादी ताक़तों की राजनीति ने दरकिनार कर दिया और दूसरी ओर ये सवाल सबको खाए जा रहा है कि कहीं वे अप्रासंगिक तो नहीं हो जाएँगे.