|
'आदेशों से संतुलन बिगड़ने का ख़तरा' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कुछ न्यायिक आदेशों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इनसे न्यायपालिका और विधायिका के अधिकारों का नाज़ुक संतुलन बिगड़ने का ख़तरा हो सकता है. समाचार एजेंसियों के अनुसार झारखंड विधानसभा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने बैठक बुलाई थी और विधानसभा के अध्यक्षों को संबोधित करते हुए ऐसा कहा. उधर भाजपा शासित राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों ने इसमें शामिल न होने का फ़ैसला किया. लेकिन लोकसभा के उपसभापति अकाली दल सांसद चरणजीत सिंह अटवाल ने बैठक में भाग लिया. इस बैठक में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में कहा गया कि विधायिका और न्यायपालिका के बीच अच्छे संबंध बनाए रखना बेहद ज़रूरी है.
लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने ये स्पष्ट ज़रूर किया कि बैठक का मकसद विधायिका और न्यायपालिका के बीच कोई टकराव पैदा करना नहीं है बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसके राजनीतिक पहलुओं पर चर्चा करना है. उल्लेखनीय है कि भाजपा नेता अर्जुन मुंडा ने झारखंड में शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के राज्यपाल के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास मत की तारीख़ बदलने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को सख़्त आपत्ति थी और उन्होंने इसे विधायिका के कामकाज में न्यायपालिका का दखल मानते हुए राष्ट्रपति से इस बारे में सलाह माँगी थी. लोकसभा अध्यक्ष के इस मत से भारतीय जनता पार्टी सहमत नहीं थी और उसने लोकसभा अध्यक्ष के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी बात कही थी. हालाँकि पहले सत्तारुढ़ गठबंधन यूपीए भी इस मामले में खुलकर लोकसभा अध्यक्ष के साथ नहीं दिखा. |
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||