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शुक्रवार, 25 फ़रवरी, 2005 को 05:53 GMT तक के समाचार
 
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मध्य प्रदेश का भूतों का मेला
 

 
 
महिला
भारत के कई राज्यों में आज भी लोगों की इस तरह से झाड़ फूंक होती है
प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले में एक अदभुत मेला लगता है.

भूतों के मेले के नाम से जाना जाने वाला यह मेला जिले के माजलपुर गाँव में वसंत पंचमी के पहले के 22 दिनों में राज्य और बाहर से आए हुए ‘भूतों’ का जमावड़ा सा बन जाता है.

कई दिनों की तेज़ बारिश की वजह से हालाँकि सर्दी बदन में चुभ रही थी और मेले की भीड़ भी और दिनों से कुछ कम बताई जा रही थी.

फिर भी एक पतला दुबला सा नौजवान मंदिर के चारों ओर बने सीमेंट के चबूतरे की परिक्रमा कर रहा था. कभी तेज़ गति से और कभी वो धीमा हो जाता और कुछ बुदबुदाने लगता.

उजले रंग के पाजामे और कुर्ते के उपर जो सिलेटी रंग की पतली सी चादर उसने ओढ़ रखी थी वो शायद ही ठंड से उसका बचाव कर पा रही हो, तब जबकि उसने चप्पल या कोई जूते भी नहीं पहन रखे थे.

उसे चबूतरे पर चल रही झाड़ बुहार से भी कोई खास अंतर नहीं पड़ रहा था.

लेकिन शाम को करीब आते देख और ‘भूतों की मुक्ति के इस स्थल’ पर ‘भूत-प्रेत से पीड़ित’ एक ही व्यक्ति को पाकर थोड़ी निराशा थी कि कहीं आना बेकार तो नहीं हुआ? पास लग गए मेले में भी एकदम शांति थी.

पुरुषों पर भी झाड़ फूंक का प्रयोग किया जाता है

सिर्फ कहीं-कहीं शोले के गब्बर वाला डायलॉग और बिच्छू, बिच्छू के रिकॉर्ड के बजने के.

नही, घबराएँ नहीं, पूजा अंधेरा होने पर शुरू होगी तब मरीज़ आप ही आ जाएँगे. संजय ने कहा जो हमारे साथ तब हो लिए थे जब हमने उनसे गुरु महाराज के स्थल पर जाने का रास्ता पूछा था.’

सच ही जैसे ही पूजन जिसमें गुरु महाराज की जय के नारे लगाए गए, और एक छतरी के नीचे बने चरणों की आरती हुई और पुजारी ने ‘जो, जो मरीज़ है आगे आ जाएँ, बाकी लोग किनारे हो जाएँ की आवाज़ लगाई’, करीब आधा दर्जन औरत और मर्दों की एक टोली आगे आकर खड़ी हो गई.

ठंडी रातों में गाँवों के सन्नाटे. चरण स्थली पर जल रहे एक पेट्रोमैक्स लैंप के अलावा हर ओर छाया अंधेरा.

साथ खड़े अजीब सी आवाज़ें निकालते कुछ लोग जिनमें से कुछ को उनके परिवार वाले ज़बर्दस्ती वहां लाए थे और पास ही मौजूद पच्चासियों साल पुराने बड़गद के पेड़. .

चरण स्थली पर बनी छतरी के नीचे बैठे पुजारी ने इन लोगों में से एक को जो सर को घुमा-घुमाकर गुरुमहाराज की जय का नारा लगा रहा था आगे बुलाया और डपटकर कहा जोर से कह गुरुमहाराज की जय.

‘कहाँ से अया हई तई, के नाम हई’, पुजारी ने फूल की झाड़ू हाथ में घुमा कर पूछा.

‘सोम गाँव से’, भूतों के चंगुल में समझा जाने वाला व्यक्ति ने अजीब से अवाज़ में कहा.

अकेलेहै, की और भी लोग तेरे साथ है, जवाब मिला अकेला हूँ. यह पूछने पर कि वो इस भैया को छोड़ेगा या नहीं, भूत फौरन जाने को तैयार हो गया.

पुजारी ने कहा कि उस प्रेत का मर्डर हुआ था इसीलिए उसे मुक्ति नहीं मिली थी. ‘बाबा के यहाँ सिर्फ भूत नहीं उतारे जाते बल्कि आत्माओं को मुक्ति मिलती है.

ऐसी कहानियाँ यहाँ मौजूद वक्त और आसपास के गाँवों के लोग कहते नहीं थकते. हालाँकि ऐसे ‘मरीज़ों’ के अच्छे होने के किस्से की जाँच शायद किसी ने की नहीं अभी तक.

खैर, मदनलाल के बाद दो और मरीज़ों का इलाज़ हुआ, कसमों से, झाड़ू से पिटने के साथ, जब ‘भूतों से ग्रसित’ एक आदिवासी महिला के कथित भूत ने अपना नाम बताने और चुन्नी देवी को छोड़ने से मना किया.

इसी बीच पूजा स्थली पर रूपयों और सिक्कों का एक छोटा सा ढेर सा बन गया है.

बाद में, अब ‘आत्माओं के चंगुल से मुक्त’ चाक-चौबंद लग रहे मदनलाल ने बताया कि डॉक्टरों ने उन्हें हार्ट की बीमारी बताई थी लेकिन जाँच में वैसा कुछ भी नहीं निकला, तब वो यहां पिछले दो सालों से आ रहे हैं और उन्होंने 90 प्रतिशत आराम मिला है.

लेकिन उन्हें हिस्टिरिया, मिर्गी या फिर कोई और मनोवैज्ञानिक शिकायत भी तो हो सकती है जैसा कि डॉक्टरों का कहना है कि भूत प्रेत वगैरह की शिकायत करने वाले लोग ज़्यादातर ऐसे ही बीमारियों से पीड़ित होते हैं, मदन लाल ने जोर देकर कहा, नहीं वो तो आत्माओं के ही शिकार हैं.

मुझे स्थल के प्रांगण में ही दीवार पर लिखा एक वाक्य याद आया-विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ हो सकता है, लेकिन इस मामले में यह अविश्वसनीय तो नहीं?

 
 
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