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भारत और ब्रिटेन के बीच समझौता | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भारत और ब्रिटेन के बीच कैदियों को उनके देश भेजने पर एक समझौता हो गया है. इस समझौते पर भारत के गृह मंत्री शिवराज पाटिल और ब्रिटेन के विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ ने हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते के तहत सज़ायाफ़्ता कैदी या उनके प्रतिनिधि यह अनुरोध कर सकते हैं कि उन्हें देश वापस भेज दिया जाए, इन क़ैदियों को अपने ही देश में सज़ा की वह मियाद पूरी करनी होगी जो उन्हें दूसरे में सुनाई गई है. भारतीय प्रवक्ता ने बताया कि यह अनुरोध तभी माना जा सकता है जब उस कैदी के ख़िलाफ़ कोई अपील या आरोप विचाराधीन नहीं हो. समझौते की शर्तों में यह भी कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को सैनिक अदालत ने दोषी पाया है तो उसे स्वदेश नहीं भेजा जाएगा. इसी तरह अगर किसी व्यक्ति को मौत की सज़ा दिए जाने की आशंका हो तो उन्हें स्वदेश नहीं भेजा जाएगा. दोनों मंत्रियों ने ब्रिटेन में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को भी वापस भेजने के बारे में किए गए पुराने समझौते का नवीकरण किया. नेपाल दिल्ली में आयोजित संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में जैक स्ट्रॉ और भारतीय विदेश मंत्री नटवर सिंह ने नेपाल की स्थिति पर चिंता प्रकट की और वहाँ लोकतंत्र की बहाली पर ज़ोर दिया. नटवर सिंह ने कहा कि भारत नेपाल की स्थिति पर नज़र रखे हुए है और इस बात पर विचार कर रहा है कि अगर लोकतंत्र की बहाली नहीं होती है तो क्या किया जाए. भारतीय विदेश मंत्री ने बताया कि नेपाल में भारत के राजदूत शिवशंकर मुखर्जी को राजा के नाम एक संदेश के साथ भेजा रहा है. भारतीय और ब्रितानी विदेश मंत्रियों ने कहा कि उनकी बातचीत में नेपाल की ख़ास तौर पर चर्चा हुई. ब्रितानी विदेश मंत्री से जब पूछा गया कि वे नेपाल को सैनिक सहायता बंद करने के एमनेस्टी इंटरनेशनल की माँग के बारे में क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा कि इस पर गंभीरता के साथ विचार चल रहा है. |
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