शनिवार, 18 दिसंबर, 2004 को 10:07 GMT तक के समाचार
पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने एक टीवी इंटरव्यू में घोषणा की है कि वे पाकिस्तानी सेना के प्रमुख बने रहेंगे.
इससे पहले उन्होंने वादा किया था कि वे इस साल के अंत तक सेनाध्यक्ष का पद छोड़ देंगे.
उन्होंने कहा कि वे राष्ट्र को संबोधित कर अपने कारणों की जानकारी देंगे लेकिन इससे आगे उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
उनका कहना था कि दोनो पदों पर बने रहकर वे 'लोकतंत्र को मज़बूत बनाने और पाकिस्तान में स्थिरता कायम करने' की भूमिका निभा पाएँगे.
'लोकतंत्र को बल'
बीबीसी संवाददाता ज़फ़र अब्बास के अनुसार उन्होंने ये स्पष्ट नहीं किया है कि सेनाध्यक्ष के ग़ैर-सैनिक मामलों में दख़ल देने से लोकतांत्रिक व्यवस्था किस तरह से मज़बूत बनेगी?
पर्यवेक्षकों का मानना है कि वे तो ऐसा शुरु से ही चाहते थे लेकिन उन्हें स्पष्ट नहीं था कि उनके ऐसा करने पर पश्चिमी देशों की क्या प्रतिक्रिया होगी?
विश्लेषक मानते हैं कि हाल में अपने पश्चिमी देशों के दौरे पर राष्ट्रपति मुशर्रफ़ को ऐसा प्रतीत हुआ कि पश्चिमी देश 'आतंकवाद के ख़िलाफ़' उनकी भूमिका में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं और पाकिस्तान में लोकतंत्र का मुद्दा उनके लिए उतनी प्राथमिकता नहीं रखता.
उधर विपक्षी दलों ने कहा है कि ये असंवैधानिक कदम है और वे अपना विरोध जारी रखेंगे.
संकेत
हाल में अमरीका के अख़बार 'वाशिंगटन पोस्ट' को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने संकेत दिया था कि वे इस्लामिक पार्टियों के गठबंधन मुत्ताहिदा मजलिसे अमल से किया वादा तोड़ देंगे.
उन्होंने उस समय ये भी कहा था कि 'ये उनकी नीतियों को चलाने के लिए आवश्यक होगा'.
उन्होंने ये भी दावा किया था कि अल क़ायदा और अन्य कट्टरपंथी संगठनों के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखने और भारत के साथ कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए उनका सेनाध्यक्ष रहना ज़रूरी है.
पिछले ही महीने पाकिस्तानी संसद ने एक विवादास्पद विधेयक पारित किया था जिसके तहत राष्ट्रपति मुशर्रफ़ को राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष की दोहरी भूमिका निभाने देने की अनुमति दी गई थी.