मंगलवार, 14 सितंबर, 2004 को 16:31 GMT तक के समाचार
भारत के जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में अलग-अलग राय नज़र आ रही है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष कल्बे सादिक़ ने सोमवार को कहा था कि उन्होंने बोर्ड की अगली वार्षिक बैठक में परिवार नियोजन और उससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा कराए जाने की माँग की है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी ने सादिक़ के इस प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया.
कल्बे सादिक़ ने कहा था कि उन्होंने बोर्ड के अध्यक्ष के नाम एक पत्र लिखकर इस विषय पर चर्चा की माँग की है. बोर्ड की अगली बैठक दिसंबर में होनी है.
कल्बे सादिक़ का कहना था, "जब इस्लामी देशों में परिवार नियोजन की अनुमति है और ईरान जैसे देश में भी ये लागू किया गया जहाँ उलेमा (इस्लाम के ज्ञाता) सत्ता में हैं, तो हिंदुस्तान के मुसलमानों में इस बारे में जागरूकता क्यों पैदा नहीं की जा सकती?"
मंगलवार को इस मुद्दे पर मतभेद सामने आए. अध्यक्ष मौलाना राबे हसन नदवी ने लखनऊ में संवाददाताओं से कहा, "इस्लाम में बच्चे तो ख़ुदा की नेमत हैं."
बोर्ड के कुछ सदस्यों ने इस मुद्दे पर विचार करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया है कि कल्बे सादिक़ की यह निजी राय है और यह बोर्ड की आधिकारिक राय नहीं है.
इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर सादिक़ के बयान का स्वागत किया है.
पार्टी अध्यक्ष वेकैंया नायडू ने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा, "हम इस प्रस्ताव का स्वागत करते हैं. मैं सचमुच इस पहल पर बहुत ख़ुश हूँ."
मुद्दा बेमानी?
पीटीआई के अनुसार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हैदराबाद में कहा कि जनसंख्या आयुक्त के सफ़ाई देने के बाद मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि की उच्च दर का मुद्दा अब बेमानी हो गया है.
बोर्ड के सहायक महासचिव मोहम्मद अब्दुल रहीम कुरैशी ने कहा, "मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि दर इसलिए ज़्यादा नज़र आती है क्योंकि 2001 की जनगणना में जम्मू कश्मीर की जनसंख्या भी जोड़ी गई जबकि 1991 की जनगणना में यह नहीं जोड़ी गई थी."
उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के अलावा देश के बाक़ी हिस्सों में 1961 से जनसंख्या वृद्धि दर में लगातार कमी आ रही है. इस पुष्टि के बाद इस मुद्दे पर उठा विवाद थम जाना चाहिए.
कुरैशी ने कहा कि मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि कोई मुद्दा नहीं होने के बावजूद इस पर विवाद हो रहा है जबकि कोई भी मुसलमानों सहित देश के नागरिकों की आर्थिक कठिनाइयाँ और उनके शैक्षिक पिछड़ेपन के बारे में कोई बात नहीं करता.
कुरैशी ने कहा कि "14 साल की उम्र तक बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा के संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धांत के बारे में सरकार की ज़िम्मेदारी के बारे में कोई बात नहीं करता है."