|
युद्धभूमि के बीचोबीच बसा 'शांति ग्राम' | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उत्तरी श्रीलंका के जाफना के चावाकचहरी कस्बे में गहन सुरक्षा क्षेत्र के अंदर सेना ने मरवनपलावु नाम के एक गाँव को नए सिरे से बसाया है. यह प्रयास इतना सफल हुआ है कि विश्व बैंक सहित कई अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठन इस गाँव के उत्थान में सहयोग दे रहे हैं. सन 1999 में जब सेना और तमिल विद्रोहियों के बीच इस इलाके में युद्ध हुआ तो मरवनपलावू के निवासी भाग गए थे. उस समय इस गाँव में 85 परिवार रहते थे. जब युद्धविराम हुआ तो यह लोग आसपास के गाँवों में रहने लगे. इनके लिए वापस आना संभव नहीं था क्योंकि इनका गाँव गहन सुरक्षा क्षेत्र के अंदर हैं जिसे पार करके कोई यहाँ तक नहीं पहुँच सकता था. इस वर्ष सेना ने मरवनपलावू में पुनर्वास का काम शुरु किया है. कुछ ही महीनों में वो सभी परिवार जो यहाँ से विस्थापित हुए थे वापस आ गए हैं. कंदैया ने तो अपने खेत भी जोत रहे हैं. वे कहते हैं कि सेना के साथ रहने में कोई परेशानी नही हो रही है. कंदैया कहते हैं, “यहां से भागकर पाँच साल तक मैं मजदूरी करता रहा. अब कम से कम अपने खेत में काम कर रहा हूँ. जरूरत पड़ने पर सेना हमें खाद और बीज भी लाकर देगी." कंदैया और गांव के बाकी लोगों को विश्व बैंक डेढ लाख रुपए दे रहा है तकि वो अपने मकान बना सकें. इस राशि की पहली किस्त इन लोगों को मिल गई है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था ने इन लोगों की आमदनी बढ़ाने के लिए रस्सी बनाने का काम दिया है. कच्चा माल वही संस्था देती है और तैयार माल वही खरीद लेती है. सेना ने गाँव में ही एक दुकान खोली है,जहाँ हर सामान राजधानी कोलंबो से भी सस्ते दामों पर मिलता है. जाफना में तो हर सामान की कीमत ज़्यादा है क्योंकि तमिल टाइगर वन्नी प्रदेश से होकर सड़क से जाने वाले सामान पर टैक्स लगाते हैं. प्रयास इस इलाक़े के सैन्य कमांडर मेजर मर्विन परेरा के अनुसार तमिल टाइगर विद्रोहियों ने गाँव वालों से कहा था कि वो सेना की दुकान से सामान न खरीदें, पर गाँव वालों ने विद्रोहियों की बात सुनने से इनकार कर दिया.
सेना ने गाँव के लोगों की एक समिति बनाई है जो गाँव की समस्या सेना को बताती है. महिलाओं की समस्या सुलझाने के लिए विजयाश्री को इस समिति में रखा गया है. वो कहती हैं कि “इस गाँव की महिलाओं को सैनिकों से कोई परेशानी नहीं है. यहाँ मिली सुविधाओं से गाँव के लोग इतने खुश हैं कि अब तमिल विद्रोहियों की बात ये नही मानेंगे.” यह पूछ्ने पर कि अगर तमिल टाइगर इन्हे गाँव छोड़ने को कहेंगे क्या होगा, विजयश्री बोलीं "अब हम किसी के कहने पर यहाँ से नहीं जाएँगे. हम लोग तभी इस गाँव को छोड़ेंगे जब युद्ध होगा." गाँव में अब तक कई मकान बन चुके हैं और कुछ अभी बन रहे हैं. लोगों को आशा है कि गाँव में शांति रहेगी और उन्हें युद्ध की वजह से बेघर नहीं होना पड़ेगा. |
| ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||