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बुधवार, 23 जून, 2004 को 15:54 GMT तक के समाचार

विनीता द्विवेदी

'चाँद पर बस्ती बसाने वाले' बच्चे

चाँद पर शहर बसाना हो तो आपकी कल्पना क्या होगी, कैसे होंगे बाग़-बग़ीचे और कैसी होगी फ़िज़ा?
कौन सी होंगी मुश्किलें और कैसे आएँगे सपने?

ये शब्दों से निबटा देने लायक शायरी नहीं, अमरीकी अंतरिक्ष एंजेसी, नासा की एक परियोजना है जिसमें सफल हुए हैं पटिलाया के छात्र.

नासा ने इस डिज़ाइन प्रतियोगिता में दुनिया भर के स्कूली बच्चों से चाँद पर शहर की परिकल्पना कर मॉडल बनाने को कहा और नासा ने जो आठ प्रस्ताव चुने उनमें से एक था पटियाला के छात्रों का.

नासा की इस प्रतियोगिता के फ़ाइनल राउंड में भारत की टीम का चुना जाना कोई बहुत बड़े आश्चर्य की बात नहीं, भारतीय वैज्ञानिक अक़सर दुनिया की किसी भी शीर्षस्थ विज्ञान संस्था की मज़बूत टीम का हिस्सा होते ही हैं.

लेकिन इस ख़बर की ख़ास बात यह है कि नासा की इस डिज़ाइन प्रतियोगिता के आख़िरी राउंड में पहुँचने वाली टीम के सदस्य 14 से 19 वर्ष की बीच की उम्र के 18 छात्र हैं.

इनमें से एक हैं पटियाला के बुद्ध दल पब्लिक स्कूल के आयुष जो कहते हैं कि उनके स्कूल में 300 बच्चों का टेस्ट लेने के बाद उन्हें नासा के लिए डिज़ाइन बनाने वाली टीम में शामिल किया गया था.

“मेरी दसवीं की परीक्षाएँ हैं लेकिन फिर भी नासा जाने की तैयारी ने ज़्यादा अहमियत ले ली है और मेरे स्कूल से पूरा सहयोग भी मिल रहा है.”

तो अब 14 साल के आयुष अपने दसवीं कक्षा के इम्तिहान को ताक़ पर रख कर अमरीका जाने की तैयारी कर रहे हैं.

उनके साथ उन्हीं के स्कूल के छह और छात्र हैं और बाक़ी हैं पटियाला के 'थापर इस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नॉलॉजी' के इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष से जहाँ के प्रोफ़ेसर डॉ मनीक कुमार उनके गाइड हैं.

डॉ कुमार का कहना है कि 12 जुलाई को उनकी टीम अमरीका जाने वाली है. उन्होंने कहा, "चाँद के लिए हम अपना डिज़ाइन वहीं जाकर नासा को सौंपेंगे."

ख़ास बातें

नासा की इस प्रतियोगिता में डिज़ाइन भेजना, उसके लिए टीम बनाना और लगन से काम करना, इसका ज़िम्मा उठाया था अभिषेक अग्रवाल ने जो ख़ुद इंजीनियरिंग के पहले साल के छात्र हैं.

तो चाँद पर शहर बनाने के लिए क्या ख़ास बातें ध्यान में रखी जाएँगी?

अभिषेक बताते हैं “अंतरिक्ष के कचरे से चाँद का बचाव करना होगा, पृथ्वी की तरह चाँद का वायुमंडल अपना बचाव नहीं कर पाता है और दूसरा यह कि चाँद पर मौजूद गुरुत्वाकर्षण की कमी को नियंत्रित करना होगा.”

अभिषेक के एक साथी परीक्षित शर्मा का कहना है कि उन्होंने दिन रात इंटरनेट पर मेहनत कर अपनी टीम का प्रस्ताव तैयार किया.

उन्होंने अंतरिक्ष जैसे गूढ़ विषय पर जानकारी जुटाई केवल किताबें पढ़कर और इंटरनेट पर सर्च करके.

अब पटियाला की यह टीम 12 जुलाई को अमरीका के कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र के लिए रवाना हो रही है जहाँ उनका मुक़ाबला केवल अमरीकी छात्रों के साथ ही है.

और किसी देश की टीम इस राउंड तक पहुँच ही नहीं पाई.

डॉ मनीक कुमार कहते हैं “नासा तक जाने का फ़ायदा शायद ये हो कि भारत में भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो इस तरह की प्रतियोगिताएँ करवाए जो छात्रों के मनोबल के लिए बहुत अच्छा है.”

डॉक्टर कुमार बताते हैं कि "यह काम आसान नहीं है, इसके लिए आर्थिक सहायता की भी ज़रूरत है, उनका कहना है कि इस अभियान के लिए बहुत पैसों की ज़रूरत है जिसे जुटाने की कोशिश में हम लगे हैं."

अभिषेक यह मानते हैं कि भारत का ज्ञान और शोध भारत में ही रहे इसके लिए पश्चिम में उसका प्रचार ज़रूरी है और इस तरह की प्रतियोगिता में भारतीय टीमों की सफलता का यही फ़ायदा है.

एयरनॉटिकल इंजीनियर बनने की अभिलाषा रखने वाले आयुष के लिए नासा जाने का यह मौका सपना सच होने जैसा है और उन्हें पूरी उम्मीद भी है कि यह प्रतियोगिता वे जीतकर भी लौंटेगे.