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अबू सालेम के प्रत्यर्पण पर रोक | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के माफ़िया सरगना अबू सालेम के भारत को प्रत्यर्पण के संबंध में निचली अदालत के आदेश को बदल दिया है. पुर्तगाल की एक अदालत ने इस वर्ष फ़रवरी में अबू सालेम के प्रत्यर्पण की अनुमति दे दी थी. मुंबई में 1993 में हुए हमलों के प्रमुख संदिग्ध अबू सालेम अभी पुर्तगाल की जेल में बंद हैं. उन्हें फ़र्ज़ी क़ाग़ज़ात रखने और गिरफ़्तारी से बचने के मामले में साढ़े चार साल की सज़ा सुनाई गई थी. भारतीय अधिकारी अबू सालेम पर मुक़दमा चलाने के लिए उन्हें भारत लाना चाहते हैं. पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बारे में पूछे जाने पर मुंबई पुलिस के संयुक्त आयुक्त डॉ. सतपाल सिंह ने बीबीसी को बताया कि इस बारे में अभी उन्हें कोई जानकारी आधिकारिक तौर पर नहीं मिली है. हालाँकि उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट सालेम और उनकी सहयोगी मोनिका बेदी को भारत प्रत्यर्पित करने की इजाज़त दे देगा. मगर अबू सालेम के वक़ील ने पुर्तगाल के सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए अपने मुवक्किल के प्रत्यर्पण का विरोध किया कि भारत में उनपर निष्पक्ष तरीक़े से मुक़दमा नहीं चलाया जाएगा. वक़ील ने यह भी दावा किया कि सालेम की जान को भारत में ख़तरा है. ग़ौरतलब है कि 20 सितंबर 2002 को इंटरपोल ने अबू सालेम को उनकी दोस्त फ़िल्म अभिनेत्री मोनिका बेदी के साथ गिरफ़्तार किया था. मोनिका को भी फ़र्ज़ी क़ाग़ज़ात रखने के जुर्म में दो साल की जेल की सज़ा हुई है. पुर्तगाल और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है और पुर्तगाल के संविधान में ऐसे देशों में लोगों को प्रत्यर्पित करने की मनाही है जहाँ मौत की सज़ा या उम्र क़ैद की सज़ा दी जाती है. |
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