भारतीय रेल ने अपनी छवि सुधारने के लिए लगता है कमर कस ली है.
रेलवे स्टेशनों पर साइबर कैफ़े खुल रहे हैं, मोबाइल फ़ोन के ज़रिए सूचनाएं भेजी जा रही हैं, इंटरनेट पर टिकट बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है.
उदघोषणाओं के लिए मंजी हुई आवाज़ों वाले पेशेवर लोगों को आगे लाया जा रहा है.
अब इन सबके साथ-साथ शताब्दी रेलों में बड़े स्तर पर रेल परिचारिकाओं की सेवाएं लेने की बात भी होने लगी है.
हालाँकि दिल्ली-अमृतसर शताब्दी ट्रेल की उच्च श्रेणी में रेल परिचारिकाएं काफ़ी समय से काम कर रही हैं लेकिन पहले उनका काम केवल खाने का ऑर्डर लेने और यात्रियों का हालचाल पूछने तक ही सीमित था.
लेकिन अब वे पूरी तरह से इस काम में आने के लिए तैयार हैं.
अनुभव
काफ़ी समय से रेल परिचारिका का काम कर रही वंदना शर्मा का कहना है, "ये काम भी और कामों जैसा ही है. इक्कीसवीं शताब्दी की लड़कियाँ कोई भी काम करने में सक्षम हैं और मुझे ये काम बेहद पसंद है."
एक अन्य परिचारिका जैसिन्टा कसार का कहना है, "अच्छे-बुरे लोग सभी जगहों पर होते हैं लेकिन अधिकतर यात्री हमें सहयोग ही देते हैं. हालाँकि इस सेवा क्षेत्र में लड़कियों के लिए सुरक्षा संबंधी बाधाएं भी हैं."
लेकिन एक रेलयात्री प्रीति दत्ता का मानना है, "जब लड़कियाँ ऑटोरिक्शा चला सकती हैं, पेट्रोल पंपों पर काम कर सकती हैं तो रेल परिचारिकाएं क्यों नहीं बन सकतीं. आज ख़तरा कहाँ नहीं है, हर काम के अपने व्यावहारिक जोखिम तो होते ही हैं."
रेलयात्रियों में इस बात को लेकर ख़ासा उत्साह है. उनका मानना है कि इससे रेलयात्रा का ग्लैमर बढ़ेगा लेकिन हर्ष मेहता जैसे कुछ लोग भी हैं जिनका कहना है, "बाहरी लीपापोती से बात बनने वाली नहीं है, रेल अधिकारियों को मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए, तभी सभी लोगों को फ़ील गुड हो पाएगा."
उधर रेल अधिकारियों का कहना है कि रेल परिचारिकाओं की भर्ती भारतीय रेल की बजाय रेलों में खान-पान की व्यवस्था करने वाले ठेकेदार करते हैं.
योजना
भारतीय रेल खान-पान और पर्यटन निगम के प्रबंध निदेशक एम एन चोपड़ा का कहना है, "ठेकेदारों के साथ बातचीत करके इसे सभी शताब्दी ट्रेनों में शुरू करवाया जा सकता है लेकिन कुछ ढाँचागत समस्याओं की वजह से अभी यह केवल उच्च श्रेणी में ही शुरू किया गया है."
रेलगाड़ियों में परिचारिकाओं की शुरूआत करने वाले दून केटरर्स के कार्यकारी निदेशक विजय सहगल मानते हैं, "रेल परिचारिकाओं ने उनकी कंपनी और रेल सेवाओं की छवि सुधारी है और सेवा क्षेत्र में लड़कियों का होना कोई नई बात नहीं है."
अब वो इसे अन्य शताब्दी गाड़ियों में भी शुरू करने की बात कर रहे हैं.
उनका कहना है कि रेलों में देरी से चलने की समस्या सबसे गंभीर है क्योंकि यदि रात में शताब्दी गाड़ी देर से वापस लौटती है तो कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं हालाँकि वह रेल परिचारिकाओं को घर से लाने व छोड़ने जैसी सुविधाएं मुहैया कराते हैं.
अब साफ़ है कि लड़कियाँ, पुरुषों के एकाधिकार वाले एक और क्षेत्र में क़दम रख रही हैं.
अगली बार जब आप रेल में सफ़र करें तो हो सकता है कि डिब्बे में क़दम रखते ही आपको कोई रेल परिचारिका स्वागत करती नज़र आए.