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छत्तीसगढ़ में परंपरा के नाम पर बाल विवाह

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर से महज़ 30 किलोमीटर दूर काया गाँव की लगभग 12 वर्षीया पंचवटी सकते में है.

घर में अफ़रा-तफ़री का माहौल है लेकिन पंचवटी बिल्कुल ख़ामोश है.

गुड्डे-गुड्डियों से खेलने की इस उम्र में आज उसे दुल्हन बना कर ले जाने के लिए बिलासपुर का ही संजय नोनिया आया हुआ है.

पंचवटी को विवाह का ठीक-ठीक अर्थ भी नहीं नहीं मालूम है. ऐसे में पंचवटी ख़ुश भी कैसे हो सकती है!

ये क़िस्सा अकेले काया गाँव और पंचवटी भर का नहीं है. बिलासपुर शहर से लगे हुए बुंदेला, भटगाँव, सेवार, बरतोरी जैसे कई गाँवों के बच्चे अक्षय तृतीया के दिन प्रणय सूत्र में बाँध दिये गए.

अक्षय तृतीया की ये शादियाँ अप्रैल के अंत तक चलेंगी. अक्षय तृतीया के नाम पर आज पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में बड़ी संख्या में नाबालिग़ बच्चों की शादियाँ कर दी गईं.

बड़ी संख्या

अकेले राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह के गृह ज़िले कावर्धा में 500 से ज़्यादा नाबालिग़ बच्चों की शादी होने की ख़बर है. इस से पहले रामनवमी के दिन भी राज्य में कई दुधमुँहे बच्चों की शादियाँ हुई थी.

कम उम्र की लड़कियों की शादी कर दी जाती है

हालांकि राज्य सरकार ने दावा किया था कि अक्षय तृतीया के दिन बच्चों की शादियों को रोकने के पुख़्ता इंतज़ाम किये गए हैं.

लेकिन सारे दावों को धता बताते हुए राजधानी रायपुर समेत राज्य के कई ज़िलों में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की शादियाँ हुईं.

बिलासपुर, सरगूजा, कुरिया, रायगढ़, कावर्धा और राजनंदगांव के दूरवर्ती इलाक़ो में बड़े पैमाने पर बच्चों की शादियाँ की गईं.

राजनंदगांव के छुईखादन से लगे रागड़ा गाँव में जब सरकारी अधिकारियों पहुँचे तो पता चला गाँव में कई बच्चों की शादियाँ हो रही हैं. गाँव वाले इस बात पर अड़े हुए थे कि इन बच्चों की उम्र 20 साल से ज़्यादा है.

राज्य के महिला एवं बाल-विकास विभाग के सचिव सुनील कुजूर कहते हैं, “ये एक सामाजिक समस्या है. बाल विवाह को रोकने के लिए सरकार की और से हर तरह के प्रयास किये गए हैं लेकिन ये काम भवन-निर्माण की तरह नहीं हो सकता. इसको रोकने के लिए तो समाज को पहल करनी होगी”.

परंपरा

अक्षय तृतीया के दिन छत्तीसगढ़ में बच्चों द्वारा गुड्डे-गुड्डियों की शादी रचाने का खेल खेलने की परंपरा रही है.

लेकिन अक्षय तृतीया को शुभ मुहुर्त्त वाला दिन बता कर नाबालिग़ और दुधमुँहे बच्चों तक की शादियाँ कर देना, इस खेल का दूसरा भयावह पहलू है.

मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन मुहुर्त्त निकालने, गन मिलाने, यहाँ तक कि शादी करवाने के लिए पंडित की भी ज़रूरत नहीं होती.

न्यूनतम रस्मों के कारण इस दिन शादी में पैसे भी कम ख़र्च होते हैं. छोटे बच्चों की शादी में दहेज की माँग भी नहीं के बराबर होती है.

धार्मिक आस्था है कि इस दिन दान देने से सात जन्मों के बराबर का पुण्य मिलता है और कन्यादान महादान है.

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डा.दिनेश मिश्रा कहते हैं,“छत्तीसगढ़ में हर साल साढ़े तीन से चार हज़ार बाल विवाह होते हैं. कई बार तो ऐसे बच्चे की शादी कर दी जाती है जो बोतल से दूध पी रहे होते हैं”.

पिछले साल सरगूजा के भैयाथन गाँव में अक्षय तृतीया के दिन बाल विवाह के 30 से भी ज़्यादा मामले सामने आए थे. इनमें कई बच्चे ऐसे थे जिन्हें चॉकलेट का लोभ दे कर ब्याह मंडप में बिठाया गया था.

शारदा एक्ट

बच्चों की शादियों को रोकने के लिए 1928 में शारदा एक्ट बनाया गया था.

उसके बाद 1978 में हिंदू विवाह अधिनयम और बाल विवाह अधिनियम में संशोधन करके लड़की की शादी की उम्र 18 साल और लड़के की शादी की उम्र 21 साल निर्धारित की गई.

शारदा एक्ट के उल्लंघन पर कड़ी क़ानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की वकील विनीता अग्रवाल कहती हैं, “शारदा एक्ट किस हद तक प्रभावशाली है, ये बात छत्तीसगढ़ के लगभग हर ज़िले में होने वाली बच्चों की शादियों से पता चल जाता है”.