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सोमवार, 08 मार्च, 2004 को 12:08 GMT तक के समाचार
 
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शराबी पतियों को सबक सिखाती महिलाएँ
 

 
 
महिलाएँ
महिलाओं का कहना है कि जब तक सारे ठेके बंद नहीं होते तब तक अभियान चलता रहेगा
शराबी पीकर उत्पात करनेवाले पतियों को सबक सिखाने के लिए पश्चिम बंगाल के उत्तर-24 परगना ज़िले की महिलाओं ने लाठियाँ उठा ली हैं.

पिरोजपुर, हरिदासपुर और कल्याणी गाँव की महिलाएँ अब अलग-अलग समूहों में सुबह-शाम गाँव की उन गलियों के चक्कर लगाती हैं जहाँ कच्ची शराब बिकती है.

पुलिस, प्रशासन या राजनीतिक दलों की ओर से कोई ख़ास मदद नहीं मिलने के बावजूद लगभग महीने भर से चल रहे महिलाओं के इस अभियान का अब अच्छा-ख़ासा असर नज़र आने लगा है.

महिलाएँ ऐसे किसी ठेके को देखते ही उस पर टूट पड़ती हैं और रंगे हाथों पकड़े जानेवालों को वहीं सज़ा भी भुगतनी पड़ती है.

सज़ा

पकड़े जानेवाले शराबी को कभी मुर्ग़ा बनाया जाता है तो कभी किसी को कान पकड़कर दंड बैठक करनी पड़ती है.

 अगर इस काम में पुलिस की पूरी सहायता मिलती तो और क़ामयाबी मिल सकती थी
 
ज्योत्सना बिस्वास

इससे भी बात नहीं बनी तो पियक्कड़ों को पुलिस के हाथों सौंप दिया जाता है.

महिलाओं के इस अभियान का इतना असर हुआ है कि अब पहले की तरह सरेआम शराब नहीं बिकती और लोग भी पीने की हिम्मत जल्दी नहीं जुटा पाते.

इस अभियान में शामिल 165 महिलाओं की नेता ज्योत्सना बिस्वास बताती हैं कि अगर इस काम में पुलिस की पूरी सहायता मिलती तो और क़ामयाबी मिल सकती थी.

अभियान में महिलाओं को तीन गुटों में बाँटा गया है और ये लोग बारी-बारी से सुबह पाँच बजे से शाम सात बजे तक और शाम छह बजे से रात नौ बजे तक नियमित रूप से गश्त लगाती हैं.

इलाक़े में नशे का प्रचलन इतना ज़्यादा है कि यहाँ के पुरूष अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा पीने में उड़ा देते हैं और इससे भी पूरा नहीं पड़ा तो घर के बर्तन तक बेच देते हैं.

इससे घर में कलह होती है और विरोध करने पर महिलाओं को पतियों के हाथों पिटना भी पड़ता है.

बगल के कल्याणी गाँव की 55 महिलाएँ भी चार गुटों में बंटकर यही काम कर रही हैं.

विरोध

 इस गाँव और उसके आस-पास देसी शराब के एक भी ठेके के रहने तक अभियान जारी रहेगा
 
श्रेया हालदार

उनकी नेता पुर्णिमा हालदार बताती हैं कि इस काम में उनको घर और बाहर का विरोध भी झेलना पड़ता है.

मगर वे कहती हैं कि उन्होंने गाँव से नशा पूरी तरह दूर नहीं होने तक ये अभियान जारी रखने का बीड़ा उठाया है.

इस गाँव की मिनती कर्मकार बताती हैं कि इस अभियान में शामिल होने के कारण उनको पति के हाथों कई बार पिटना पड़ा.

श्रेया हालदार बताती हैं कि उनकी भी यही हालत है.

लेकिन वह कहती हैं,"इस गाँव और उसके आस-पास देसी शराब के एक भी ठेके के रहने तक अभियान जारी रहेगा".

पश्चिम बंगाल की इन महिलाओं के साहस और उनकी दिलेरी ने यहाँ के गाँवों में एक नई सुबह की उम्मीद तो जगा ही दी है.

 
 
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