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जनरल नियाज़ी ने मौत के सामने हथियार डाले

सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में 'पूर्वी पाकिस्तान' में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करने वाले पाकिस्तानी लेफ़्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी का रविवार को लौहार में देहांत हो गया.

इस आत्मसमर्पण के बाद 'पूर्वी पाकिस्तान' का हिस्सा पाकिस्तान से आज़ाद हो गया था और आज इसे ही बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है.

उस समय भारतीय सेना के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा थे.

बीबीसी ने जनरल अरोड़ा से संपर्क करके उनके विचार जानने चाहे तो वे कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पाए.

जनरल अरोड़ा भी अब काफ़ी वृद्ध हो चुके हैं.

इस आत्मसमर्पण के समय मौजूद मेजर जनरल गंधर्व नागरा ने जनरल नियाज़ी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि जनरल नियाज़ी एक बहादुर फौजी थे लेकिन भारतीय सेना ने उनको हराया.

जनरल नागरा ने कहा कि वे जनरल नियाज़ी को काफ़ी पहले से जानते थे और शुरू में नियाज़ी ने उनके सामने ही समर्पण किया था लेकिन औपचारिक समर्पण जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने ही होना था.

जनरल नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के समय जो पिस्तौल ले रखी थी, उसके दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय से चोरी हो जाने की ख़बरों से पिछले साल कुछ विवाद खड़ा हो गया था.

लेकिन सेना ने कहा था कि उनकी पिस्तौल देहरादून में राष्ट्रीय सेना अकादमी के संग्रहालय में सुरक्षित रखी हुई है.

नियाज़ी कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे और लाहौर के कम्बाइंड मिलिटरी अस्पताल में रविवार रात को उन्होंने दम तोड़ दिया.

नियाज़ी 89 वर्ष के हो चुके थे.

नियाज़ी के दामाद रऊफ़ ख़ान ने बताया है कि रविवार की रात को क़रीब नौ बजे अचानक उनकी तबियत ख़राब हो गई तो उन्हें सैनिक अस्पताल भर्ती कराया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

बहादुर सैनिक

नियाज़ी 1932 में ब्रितानी सेना में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे और 1942 में उन्हें सेना में कमीशन अधिकारी बनाया गया था.

भारत विभाजन से पहले उन्होंने ब्रितानी सेना के लिए अनेक साहसिक कारनामे अंजाम दिए जिनके लिए उन्हें बहादुरी के कई सम्मान मिले.

उन सम्मानों में मिलिटरी क्रॉस भी शामिल है.

नियाज़ी ने ब्रितानी सेना में जापान में भी सेवा की और उस दौरान उन्हें टाइगर नियाज़ी का ख़िताब दिया गया.

जनरल नियाज़ी ने भारत के साथ 1965 के युद्ध में भी बहादुरी दिखाई थी लेकिन 1971 के युद्ध में उन्होंने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे.

नियाज़ी के साथ क़रीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने भी हथियार डाले थे.

जानकारों का कहना है कि भारतीय सेना और बंगाली लोगों के हाथों पाकिस्तानी सेना की शिकस्त और जनरल नियाज़ी का हथियार डाल देना पाकिस्तानी इतिहास में एक काला अध्याय है.

1971 की लड़ाई में पाकिस्तान की हार के कारणों की जाँच के लिए हमूदुर्रहमान आयोग बनाया गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट में जनरल नियाज़ी को ही बड़ी हद तक ज़िम्मेदार क़रार दिया था.

जनरल नियाज़ी आख़िरी समय तक अपनी स्थिति को सही बताते रहे और मौत के सामने हथियार डालने से कुछ ही हफ़्ते पहले उन्होंने एक टेलीविज़न रिपोर्ट में कहा था कि वह फ़ौज की बड़ी व्यवस्था का एक छोटा सा हिस्सा थे इसलिए उन्होंने हथियार डालने की प्रक्रिया पर सिर्फ़ अमल किया था.

हालाँकि उनका निजी ख़याल ये था कि वह लड़ाई जारी रख सकते थे और भारतीय सेना को एक लंबे समय तक उलझाए रख सकते थे.

इस पर जनरल गंधर्व नागरा ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि जनरल नियाज़ी हार चुके थे और यह हार उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी.

"असलिययत यही थी कि पाकिस्तानी सेना हार चुकी थी, बाद में कोई कुछ भी कहता रहे."

जनरल नागरा ने जनरल नियाज़ी के परिवार के साथ सांत्वना व्यक्त की.