|
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
वजूद की लड़ाई लड़ता कोलकाता का चीनी समुदाय
"हम लोग चीनी भाषा पढ़ना भूल रहे हैं. कृपया चीन से कुछ शिक्षक भेजिए." पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में रहनेवाले चीनी समुदाय के संगठन चाइनीज़ एसोसिएशन ने दिल्ली स्थित चीनी दूतावास से ये गुहार लगाई है. उसने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी इसमें सहायता की अपील की है. एसोसिएशन ने पाया है कि कोलकाता में रहनेवाले 70 प्रतिशत चीनी अपनी मातृभाषा लिख या पढ़ नहीं सकते हैं. इस तथ्य ने चीनी आबादी के वजूद पर ही संकट खड़ा कर दिया है. एसोसिएशन के सचिव सी जे चेन कहते हैं कि यहाँ चीनी समुदाय अजीब त्रासदी का शिकार है. वो सवाल करते हैं कि ये कैसी विडंबना है कि 70 फ़ीसदी लोग अपनी मातृभाषा लिख या पढ़ नहीं सकते हैं. वो मायूस होकर कहते हैं कि लोग अपनी भाषा ही नहीं जानते हैं. आगमन कोलकाता में चीनी समुदाय की जड़े बहुत पुरानी हैं. बेंटिंक स्ट्रीट इलाक़े में जूतों की दुकान के मालिक 50 वर्षीय कू बताते हैं कि बंगाल में चीनियों का इतिहास 200 वर्षों से भी पुराना है.
ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में चीनियों का पहला जत्था कोलकाता से लगभग 65 किलोमीटर दूर डायमंड हार्बर के पार उतरा था. उसके बाद रोज़गार की तलाश में धीरे-धीरे और लोग कोलकाता आए और फिर वे यहीं के होकर रह गए. किसी जमाने में यहाँ चीनियों की आबादी 50 हज़ार थी. कोलकाता का एक बड़ा इलाक़ा चाइना टाउन कहलाता है. चाइना टाउन अब भी है लेकिन अब उसमें वो रौनक नहीं रही. कू बताते हैं कि अब तो यहां लोग ही नहीं रहते. पलायन लगभग पूरा चाइना टाउन ही अब कनाडा चला गया है. 1962 में चीन युद्ध के दौरान, चीनियों का कहना है कि उन पर अत्याचार भी हुए. सरकार ने हज़ारों लोगों को चीन भेज दिया. उसके बाद चीनियों का पलायन शुरू हुआ और लोग कनाडा और अमरीका जाने लगे. अब हर घर का कम से कम एक व्यक्ति कनाडा में है. कू बताते हैं कि यहाँ चीनी स्कूल में उनके साथ पढ़नेवाले 30 लोगों में से सिर्फ़ तीन कोलकाता में हैं बाकी सब कनाडा चले गए. कू का कहना है कि चीनियों के हितों की ओर न तो राज्य सरकार ने कोई ध्यान दिया और न ही चीन सरकार ने. कोलकाता में पहले चीनी भाषा की पढ़ाई के लिए तीन स्कूल थे. इनमें से एक तो बंद हो चुका है और जो दो बचे हैं उनमें भी छात्रों की संख्या काफ़ी कम है. पहले यहाँ से तीन अख़बार निकलते थे लेकिन उनमें से एक 'जेनरस ऑफ़ इंडिया' तो बंद हो चुका है. एक बात पर चीनी समुदाय के सभी लोग सहमत हैं कि अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा को बचाए रखना ज़रूरी है. वे कहते हैं कि इसके बिना तो हमारा वजूद ही ख़त्म हो जाएगा. |
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||