भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों और बांग्लादेश को सड़क मार्ग से जोड़ने वाली पहली बस सेवा को पर्याप्त संख्या में पैसेंजर नहीं मिल रहे.
इस सेवा के तहत त्रिपुरा की राजधानी अगरतला और बांग्लादेश की राजधानी ढाका के बीच दिन में दो बार बसें चलती है.
इस बस का एक फ़ायदा यह भी है कि पूर्वोत्तर भारत के लोगों के लिए ढाका के रास्ते कोलकाता जाना आसान हो जाता है.
अब तक त्रिपुरा के लोग कोलकाता या तो हवाई जहाज़ से जा सकते थे या फिर असम होकर एक लंबी बस यात्रा के ज़रिए.
सुबह के समय ढाका की अधिकांश बसें खचाखच भरी होती हैं, लेकिन अगरतला के लिए चलने को तैयार बस पर मात्र चार यात्री थे.
चालीस सीटों वाली बस में सिर्फ़ चार यात्री, उनमें से भी दो पत्रकार.
सुविधाएँ
अभी ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि अगरतला-ढाका बस सेवा लोकप्रिय क्यों नहीं हो पा रही.
जहाँ तक इस सेवा की बसों की बात है तो ये तमाम आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण हैं.
और चकाचक ड्रेस पहने स्टॉफ़ बीच-बीच में चाय-बिस्कुट परोसते रहते हैं.
ऐसा भी नहीं है कि बस का रूट बड़ा ही वीरान-सा है. इस बस से यात्रा करना पानी के बीच से गुजरने जैसा है.
रास्ते में कहीं-कहीं ही गाँव दिखते हैं, वरना दूर-दूर तक पानी.
मुश्किल ट्रैफ़िक
ढाका और अगरतला के बीच की दूरी मात्र 150 किलोमीटर है.
बस के ड्राइवर कमाल हुसैन के अनुसार यह दूरी मात्र दो घंटे में तय की जा सकती है, लेकिन ट्रैफ़िक व्यवस्था इतनी ख़राब है कि इसमें पाँच घंटे या ज़्यादा भी लग जाते हैं.
त्रिपुरा के एक व्यवसायी निताई चंद्र साहा के अनुसार पैसेंजर नहीं मिलने के कारणों में प्रमुख हैं--हर यात्री से 10 डॉलर का टैक्स लेना और वापस अगरतला के बजाय कोलकाता लौटने के इच्छुक यात्रियों को वीज़ा नहीं मिलना.
बांग्लादेशी अधिकारी टैक्स को सही ठहराते हुए कहते हैं कि बांग्लादेशियों से भी यह वसूला जाता है.