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फूलों की घाटी में कुछ दुर्लभ फूल उत्तरांचल की विश्वप्रसिद्ध फूलों की घाटी में इस बार क़रीब डेढ़ सौ ऐसे दुर्लभ फूल खिले हैं जो लुप्त हो गए थे.
घाटी की सुंदरता इस समय पूरे निखार पर है और बड़ी तादाद में देशी-विदेशी सैलानी यहाँ पहुँच रहे हैं. हिमालयी नीली पॉपी, दुर्लभ ब्रह्म कमल, ऑरेंज पॉनीटेला, अस्ट्रालागस और रोज़ा जैसे तीन सौ से भी ज़्यादा फूल इन दिनों फूलों की घाटी में अपनी छटा बिखेर रहे हैं. हिमालय की बर्फ़ीली वादियों में क़ुदरत के इस बग़ीचे को देखकर यहाँ आने वाले सैलानी हैरान रह जाते हैं. ऑस्ट्रेलिया से हिमालय दर्शन को आए बिन रॉडनी कहते हैं, "क़ुदरत के इस करिश्मे को मेरा सलाम है. मैं तो यहाँ बार-बार आना चाहूँगा".
कोलकता से यहाँ आए पार्थसारथी डे का कहना है, "मैंने वैली ऑफ़ फ़्लावर्स के बारे में काफ़ी कुछ पढ़ा था लेकिन यहाँ आकर जो महसूस हुआ वह शब्दों में बयान नहीं हो सकता". "यहाँ एक दिव्य क़िस्म की शांति है". फूलों की घाटी उत्तरांचल के चमोली ज़िले में है. समुद्र तल से 3962 मीटर की ऊँचाई पर यह घाटी साढ़े सत्तासी वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है. पौराणिक कथाओं में वर्णन वैसे तो कहते हैं नंदकानन के नाम से इसका वर्णन रामायण और महाभारत में भी मिलता है लेकिन आधुनिक समय में ब्रितानी पर्वतारोही फ़्रैंक स्मिथ ने 1931 में इसकी खोज की थी. स्थानीय लोग इसे परियों और किन्नरों का निवास समझ कर यहाँ आने से कतराते हैं.
मिथक का मुताबिक यही वह जगह है जहाँ से हनुमान लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाए थे. वर्ष 1982 में इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया. हर साल बर्फ़ पिघलने के बाद यह घाटी ख़ुद ब ख़ुद बेशुमार फूलों से भर जाती है. लेकिन मध्य सितंबर से नवंबर के पहले सप्ताह तक यहाँ पर 'पीक' समय होता है. यहीं पर काम करने वाले बागान विशेषज्ञ दर्शन सिंह नेगी का कहना है, "ख़ास बात यह है कि हर हफ़्ते यहाँ फूलों का खिलने का 'पैटर्न' बदल जाता है". जो फूल आपको इस हफ़्ते दिखेंगे, अगले हफ़्ते वहाँ कोई और फूल खिला होगा. दवाइयों में इस्तेमाल यहाँ मिलने वाले सभी फूलों का दवाइयों में इस्तेमाल होता है.
इसके अलावा यहाँ सैकड़ों बहुमूल्य जड़ी-बूटियाँ और वनस्पति पाए जाते हैं. यहाँ आने के लिए ऋषिकेश से गोविंदघाट तक मोटर मार्ग है और फिर गोविंदघाट से सत्रह किलोमीटर का पैदल रास्ता है. पिछले कुछ दिनों में पूरी देखरेख न होने से यहाँ से बड़े पैमाने पर जड़ी बूटियों की तस्करी होने लगी थी. लेकिन दस साल पहले यहाँ लोगों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई थी और उसके बाद वनस्पतियों को एक बार फिर फलने-फूलने का मौक़ा मिला. यहाँ के अधिकारी अब काफ़ी संतुष्ट नज़र आते हैं. उनका कहना है कि इस बार रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक यह घाटी देखने आए हैं. नवंबर के अंत तक यह घाटी एक बार फिर बर्फ़ की चादर तले ढंक जाएगी. |
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