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ओबामा की लोकप्रियता और विदेश नीति
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अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा का समय इस सिद्धांत की परीक्षा के लिए बेहतरीन समय होगा कि अमरीकी शक्ति को लोग पसंद
करते हैं खासकर उसके सॉफ्ट पावर को यानी संस्कृति, फ़िल्में, गाने और जीने का अमरीकी अंदाज़.
ओबामा के चुने जाने की दुनिया भर में तारीफ़ हुई है. यहां तक कि अमरीका के धुर विरोधी रहे वेनेजुएला के राष्ट्रपति ने भी ओबामा के चुने जाने को ऐतिहासिक क़रार दिया है. वर्तमान राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के शासनकाल में दुनिया भर में अमरीका की लोकप्रियता को ठेस पहुंची है लेकिन दुनिया भर में लोगों को ओबामा से उम्मीदें हैं. अब ऐसे में प्रश्न उठता है कि ओबामा की लोकप्रियता किस हद तक अमरीका के प्रभाव को वापस ला पाएगी.
अपने प्रचार अभियान के दौरान ओबामा ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था, ''अगर आप लोगों से कहेंगे कि व्हाइट हाउस में बैठे राष्ट्रपति की नानी लेक विक्टोरिया में रह रही है और उनकी एक बहन आधी इंडोनेशियाई है, जिसकी शादी चीनी कनाडियन से हुई तो लोगों को लगेगा कि राष्ट्रपति को बेहतर पता होगा कि दुनिया में क्या हो रहा है. '' हालांकि विदेश नीति के जानकार नहीं मानते हैं ओबामा की इस छवि का अमरीकी लोकप्रियता पर अधिक प्रभाव पड़ेगा. हार्वर्ड के जाने माने विद्वान जोसेफ़ नई जिन्होंने 'सॉफ्ट पावर' की अवधारणा शुरु की थी, मानते हैं कि ओबामा में कुछ बात तो है लेकिन ऐसा नहीं है कि इससे विदेश नीति में उनको तुरंत सफलता मिल जाए. वो कहते हैं, ''आपके समक्ष एक ऐसा राष्ट्रपति है जो दूसरे देश से अमरीका में आकर बसे व्यक्ति का अफ्रीकी अमरीकी पुत्र है जिससे पता चलता है कि अमरीका में लोकतंत्र है और काम कर रहा है. लेकिन अगर ओबामा की नीतियां बुश जैसी रहीं तो शायद उनकी भी लोकप्रियता कम हो जाए.'' नई कहते हैं कि सॉफ्ट पावर से तात्पर्य एक ऐसे बेहतरीन माहौल से है और इसके लिए अमरीकी नीतियां ज़िम्मेदार होंगी. नीतियां ओबामा की विदेश नीति के बारे में अभी तक लोगों को कम ही जानकारी है और बुश प्रशासन में प्रभावी माने जाने वाले रिचर्ड पर्ले कहते हैं कि अभी अगर दर्ज़न लोगों से पूछा जाए ओबामा की विदेश नीति के बारे में तो दर्ज़न अलग अलग जवाब मिलेंगे. अमरीका में दो तरह के नीति निर्धारकों का बोलबाला रहा है. एक जो नव यथार्थवादी( neo-cons) जो युद्ध में और सैन्य शक्ति में विश्वास रखते हैं जबकि दूसरे अंतरराष्ट्रीय उदारवादी ( liberal-internationalists) हैं जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बातचीत के पक्ष में हैं. लेकिन अभी साफ नहीं है कि ओबामा की नीति कैसी होगी हालांकि उनके नव यथार्थवादियों की तरफ जाने की कोई भी संभावना नहीं है. प्रिंसटन यूनिरवर्सिटी के विद्वान रॉबर्ट हचिंग्स कहते हैं, '' उनके प्रति लोगों में अच्छी भावना है और यह अच्छा होगा उनके लिए. यह ऐसा समय है जब अमरीकी राष्ट्रपत बड़ा और बेहतर सोच सकते हैं और उन्हें कुछ ऐसा करना ही चाहिए. '' बुश प्रशासन की चाहे जितनी भी आलोचना की जाए, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ एक स्तर पर मिलजुलकर काम किया है लेकिन फिर भी उनके कई कदम नापसंद किए जाते रहे हैं. कम से कम ईरान और उत्तर कोरिया के मसले पर बुश प्रशासन बातचीत और सैन्य विकल्प खुला रखने की बात करता रहा है और शायद ओबामा इस नीति से पीछे न हटें. हालांकि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्टीफ़न वाल्ट इस नीति को भी संघर्ष की नीति मानते हैं और कहते हैं कि अगर इसे नहीं बदला गया तो दुनिया भर में अमरीका की छवि ख़राब ही रहेगी. शिकागो यूनिवर्सिटी के ज़ॉन मियरशाइमर कहते हैं कि इराक़ में सेनाओं को बरकरार रखना सही नहीं है जबकि सेना वापस बुलाने से इराक में जातीय हिंसा बढ़ेगी. ऐसे में क्या करना है ये राष्ट्रपति ही तय करेंगे. स्टीफन वाल्ट के साथ अमरीकी नीतियों पर यहूदी लॉबी के प्रभाव पर विवादित पुस्तक लिखने वाले मियरशाइमर कहते हैं कि इसराइल फ़लस्तीन मामले में भी को नीति परिवर्तन शायद ही हो क्योंकि यहूदी लॉबी राष्ट्रपति को इसराइल पर दबाव डालने नहीं देगी. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों को ओबामा से कम उम्मीदें रखनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ओबामा का आकर्षण भले ही बहुत हो इससे नीतियों पर कम ही असर पड़ने वाला है. |
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