शनिवार, 09 दिसंबर, 2006 को 10:32 GMT तक के समाचार
अमरीकी संसद ने लंबे समय तक चली बहस के बाद परमाणु समझौते को पास कर दिया था. शुक्रवार सुबह से शुरू हुई बहस शनिवार सुबह तक जारी रही.
इस समझौते के बाद भारत को असैनिक कार्यों के परमाणु तकनीक मिल सकेगी. लेकिन समझौते के तहत भारत के कुछ परमाणु ठिकाने अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के लिए खुल जाएँगे.
एक ओर जहाँ भारत-अमरीका परमाणु समझौते को ऐतिहासिक कहा जा रहा है तो दूसरी ओर आलोचक इसे परमाणु अप्रसार को नुक़सान पहुँचाने वाला बता रहे हैं.
अमरीकी संसद से पास हो जाने के बाद अब इस विधेयक को क़ानून बनने के लिए राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के हस्ताक्षर की आवश्यकता होगी.
हालाँकि अभी भी इस समझौते के प्रभावी बनने में काफ़ी अड़चने हैं. अब अमरीका और भारत को विधेयक के हिसाब से एक व्यापक समझौते का खाका तैयार करना होगा, जिसमें समझौते के सभी तकनीकी पहलुओं को शामिल करना होगा.
इसके बाद अमरीकी संसद इसे दोबारा पास करेगी. और तो और इसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु सुरक्षा मापदंड़ों के तहत अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) की मंज़ूरी भी लेनी होगी और भारत को इसका पालन करने के लिए तैयार होना पड़ेगा.
साथ ही इस समझौते को परमाणु ईंधन सप्लाई करने वाले 45 देशों के ग्रुप के भी समर्थन की आवश्यकता पड़ेगी.
मतदान
सीनेट ने रात भर चले सत्र में इसे पास किया. हालाँकि सीनेट में इस पर मतदान कराने की
आवश्यकता नहीं पड़ी और विधेयक ध्वनि मत से ही पारित हो गया.
प्रतिनिधि सभा में इस पर मतदान हुआ और परमाणु समझौते पर विधेयक 59 के मुक़ाबले 330 मतों से पारित हुआ. अब क़ानून बनने के लिए इस विधेयक पर राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के हस्ताक्षर की आवश्यकता है.
गुरुवार को इस परमाणु समझौते का मसौदा जारी हुआ था. दरअसल सीनेट और प्रतिनिधि सभा ने परमाणु समझौते पर अलग-अलग प्रस्ताव पारित किया था.
इसके बाद इन दोनों सदनों से पारित प्रस्तावों को मिलाकर परमाणु समझौते का नया मसौदा तैयार किया गया था और फिर दोनों सदनों ने नए मसौदे को क़ानून का रूप देने पर अपनी मुहर लगाई.
पिछले साल जुलाई में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के बीच परमाणु समझौते पर सहमति हुई थी.
प्रतिनिधि सभा में विधेयक पारित होने के बाद डेमोक्रेट सांसद टॉन लैंटस ने कहा, "भारत एक ऐसा देश है जो हमारी विदेश नीति का अहम हिस्सा है. भारत के साथ समझौते से परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण प्रसार में मदद मिलेगी."
लेकिन समझौते की आलोचना करने वाले एक अन्य डेमोक्रेट सांसद एड मार्के ने इसे ऐतिहासिक ग़लती बताया. उन्होंने कहा, "अगर चीन पाकिस्तान के साथ ऐसा ही समझौता करे, तो हम क्या कहेंगे या फिर रूस ईरान के साथ ऐसा करे, तो हमारे पास क्या जवाब होगा."
हालाँकि पहले अमरीका ने कई बार भारत के परमाणु कार्यक्रम का विरोध किया था. अमरीका यह भी चाहता था कि भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करे.
लेकिन भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए. साथ ही भारत ने 1974 और 1998 में परमाणु परीक्षण भी किया जिससे अमरीका काफ़ी नाराज़ हुआ.
लेकिन अब भारत के साथ परमाणु समझौते के लिए अमरीकी ने अपनी तीन दशक पुरानी परमाणु अप्रसार की नीति को ही बदल दिया.
भारत की चिंता
वॉशिंगटन से बीबीसी संवाददाता शाहज़ेब जीलानी के मुताबिक़ परमाणु समझौते को लेकर विधेयक के आख़िरी मसौदे में भारत की चिंताओं का ध्यान रखने की बात कही जा रही है.
अमरीका में भी परमाणु समझौते का समर्थन करने वालों को भी उम्मीद है कि आख़िरी मसौदे से भारत को भी कोई ऐतराज़ नहीं होगा.
भारत के दौरे पर गए अमरीकी विदेश उप मंत्री निकोलस बर्न्स ने भी कहा था कि भारत और अमरीका के बीच हुए परमाणु समझौते की परिधि में भी विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है.
समझौते के तहत भारत को ऊर्जा के लिए अमरीका की ओर से परमाणु तकनीक और ईंधन मिल जाएगी. लेकिन बदले में भारत के असैनिक परमाणु ठिकाने पर्यवेक्षकों के लिए खोल दिए जाएँगे.
हालाँकि भारत के परमाणु हथियार केंद्र इससे अलग होंगे. इस समझौते की आलोचना करने वालों का तर्क है कि इससे भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा.
उनका ये भी कहना है कि इससे ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों को ग़लत संदेश जाएगा जिनके परमाणु कार्यक्रमों का अमरीका विरोध करता रहा है.
भारत ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि समझौते में यह नहीं होना चाहिए कि भारत अमरीका की ईरान नीति का समर्थन करे और उसने मिसाइल कार्यक्रम पर भी रोक नहीं होनी चाहिए.