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अमरीकी मुसलमानों की निगाहें चुनावों पर | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अमरीका में रहने वाले मुसलमान देश की राजनीति और चुनावी प्रक्रिया में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. एक नए सर्वेक्षण के अनुसार 89 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता चुनाव के दिन वोट डालने भी जाते हैं. इनमे से आधे से अधिक मतदाता युवा हैं और उच्च शिक्षा पा चुके हैं. अमरीका में अहम संसदीय चुनाव में चंद दिन ही रह गए हैं और चुनावी सरगर्मियाँ चरम पर हैं. इस मध्यावधि चुनाव की बहुत अहमियत है क्योंकि इस बार विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी को उम्मीद है कि वह सीनेट और प्रतिनिधि सभा में बहुमत प्राप्त कर लेगी. अमरीका में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस चुनावी गणित का अहम हिस्सा हैं और इसीलिए वो चुनावी प्रक्रिया में ज़्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं. अमरीका की एक मुस्लिम संस्था ‘काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस’ के एक नए सर्वेक्षण के अनुसार 89 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता चुनाव के दिन वोट डालने जाते हैं. जागरूकता ज़्यादातर मुस्लिम वोटर अपने आप को डेमोक्रेटिक पार्टी के करीब मानते हैं. इनमे से आधे से ज़्यादा मतदाता पढे-लिखे हैं और युवा हैं. सर्वेक्षण के मुताबिक 47 फ़ीसदी वोटर 35 और 54 वर्ष की आयु के बीच के हैं और 20 प्रतिशत 25 से 34 साल के हैं. लगभग 60 फ़ीसदी मुस्लिम वोटर उच्च शिक्षा प्राप्त हैं. सर्वेक्षण के मुताबिक 55 फ़ीसदी मुसलमानों को डर है कि अमरीका का आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध इस्लाम के विरूद्ध युद्व में बदल जाएगा.
लेकिन 69 प्रतिशत का यह भी मानना है कि अगर इसराइल-फ़लस्तीन विवाद सुलझा लिया जाए तो अमरीका की मुस्लिम जगत में छवि सुधर सकती है. लगभग 66 फ़ीसदी लोग अमरीका और ईरान के बीच संबंध सुधारने का समर्थन करते हैं. 'काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस' के कार्यकारी निदेशक निहाद आवाद का कहना है, “हमारे सर्वेक्षण से यह साफ़ होता है कि अमरीकी मुसलमान एकतरफ़ा मतदान नहीं करते बल्कि विभिन्न मुद्दों पर निजी राय रखते हैं और चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए.” राजनीतिक सक्रियता इस रिपोर्ट के अनुसार ज़्यादातर मुस्लिम मतदाता यह भी मानते हैं कि आतंकवादी हमलों से अमरीका में रहने वाले मुसलमानों को बहुत नुकसान होता है. बहुत से मुसलमान यह भी कहते हैं कि उनके समुदाय को ईसाइयों और यहूदियों से मेल-मिलाप बढ़ाना चाहिए. अमरीका में मुसलमानों को 11 सितंबर के हमलों के बाद से नस्ल और धर्म के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. बुश प्रशासन की ओर से लाए गए नए 'आतंकवाद विरोधी' क़ानूनों से भी मुसलमान नाराज़ हैं. अब अमरीकी मुसलमान संगठित तरीक़े से देश की राजनीति पर असर डालने की कोशिश में लग गए हैं. समर्थन मुसलमानों का मानना है कि डेमोक्रेटिक पार्टी मुस्लिम समुदाय के हित में ज़्यादा काम करती है. इसलिए उनकी कोशिश है कि संसद के दोनों सदनों में डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत मिले जिससे बुश प्रशासन की नीतियों को संसद में पारित ही न होने दिया जाए. वैसे यह कोशिश 2004 में ही शुरू हो गई थी जब मुसलमानों ने भारी संख्या में राष्ट्रपति बुश के ख़िलाफ़ वोट दिए थे. न्यूयॉर्क में एक मुस्लिम संस्था ‘काउंसिल ऑफ़ अमेरिकन मुस्लिम प्रेफ़ेशनल्स’ से जुड़े पाकिस्तानी मूल के ऐनुल हक़ कहते हैं, “देखिए, रिपब्लिकन पार्टी का जो मुसलमानों के खिलाफ़ रवैया रहा है उसने हमारी भावनाओं को आहत किया है और हमारे अंदर असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है. इसलिए हमारा कहना है कि इस पार्टी के संसद में बहुमत रहने से हमें नुकसान ही होगा, फ़ायदा कोई नहीं होगा.” हक़ का कहना है कि 90 प्रतिशत अमरीकी मुसलमान डेमोक्रेटिक पार्टी को ही वोट देंगे. एक अनुमान के अनुसार अमरीका में 30 लाख से ज़्यादा मुसलमान रहते हैं जिनमे से करीब चार लाख मतदान करने के लिए पंजीकृत हैं. इस संख्या के और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि हर मस्जिद और इस्लामी केंद्र में मतदाता सूची में पंजीकरण करवाने की मुहिम ज़ोर शोर से जारी है. अमरीका में पहली बार किसी मुसलमान के अमरीकी संसद के किसी सदन का सदस्य बनने के आसार हैं. संसद का सफ़र मिनेसोटा राज्य के डेमोक्रेटिक पार्टी के एक मुस्लिम प्रत्याशी कीथ एलिसन के संसदीय चुनाव में जीतने की आशा है. इससे भी मुसलमानों में जोश और बढ़ा है. देश भर के मुसलमान एलिसन को जिताने में लग गए हैं. मुसलमानों में उनके लिए चंदा जमा करने की होड़ लगी हुई है. कई मुस्लिम संस्थाएँ मुसलमानों को अमरीकी नागरिकता लेकर वोट डालने के लिए पंजीकरण करवाने में मदद कर रही हैं. कैलीफ़ोर्निया में ‘मुस्लिम वॉयस’ नामक संस्था भी इसी तरह मुसलमानों को इस बात की याद दिला रही है कि उन्हें अमरीका को अपनाकर इस देश में हर स्तर पर काम करना चाहिए. इस संस्था की अध्यक्ष समीना फ़हीम कहती हैं,“मैं ऐसे लोगों से भी मिली हूँ जो पाकिस्तान और भारत से आकर अमरीका में 50 साल से बसे हैं लेकिन अब भी कहते हैं कि वो वापस अपने मुल्क़ चले जाएँगे. लेकिन हम उन्हें समझाते हैं कि अब उनकी ज़िंदगी इसी मुल्क़ से जुड़ी है और उन्हें अमरीका को पूरी तरह अपनाना चाहिए तभी उनको उनके हक़ मिल सकेंगे.” न्यूयॉर्क, कैलिफ़ोर्निया, इलिनॉय और न्यूजर्सी जैसे प्रांतों में मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं और हर जगह मुसलमानों में संसदीय चुनावों को लेकर गहमागहमी है. रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच इस बार के चुनाव में भी काँटे की टक्कर है. सात नवंबर के चुनाव के बाद इस बात का फ़ैसला होगा कि संसद के दोनों सदनों पर किस पार्टी का वर्चस्व रहेगा. | इससे जुड़ी ख़बरें अमरीकी अधिकारी ने माफ़ी माँगी23 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना 'बग़दाद में अमरीका को मिली नाकामी'20 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना 'इराक़-वियतनाम की तुलना हो सकती है'19 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना अमरीका की आबादी तीस करोड़ हुई17 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना क़ैदियों के मुक़दमे के बिल पर हस्ताक्षर17 अक्तूबर, 2006 | पहला पन्ना इंटरनेट लिंक्स बीबीसी बाहरी वेबसाइट की विषय सामग्री के लिए ज़िम्मेदार नहीं है. | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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