शनिवार, 09 सितंबर, 2006 को 11:05 GMT तक के समाचार
स्टीव शिफ़रेस
आर्थिक संवाददाता, बीबीसी न्यूज़
पाँच साल पहले न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर किए गए हमले में विश्व अर्थव्यवस्था के वित्तीय केंद्र को निशाना बनाया गया था.
शुरुआती झटके के बाद आश्चर्यजनक रूप से अर्थव्यवस्था लचीली साबित हुई. लेकिन हादसे के बाद अधिकारियों की प्रतिक्रिया ने आर्थिक समस्या को बढ़ाया जो आज दुनियाभर के सामने है.
दुनिया के कई महत्वपूर्ण वित्तीय बाज़ार या तो वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में स्थित थे या तो इसके आसपास. हमले के कारण टेलिफ़ोन और इंटरनेट की संचार व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई.
न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज़ की इमारत को तो कोई नुक़सान नहीं पहुँचा लेकिन इसे 17 सितंबर तक बंद करना पड़ा. जब न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज़ खुला तो डाउ जोन्स के प्रमुख शेयर सात प्रतिशत तक गिर गए. एक सप्ताह के अंदर यह 14 फ़ीसदी तक गिर गया.
हालाँकि उस समय 11 सितंबर के हमले के तात्कालिक प्रभाव को समझा जा सकता था. हमले के कारण अकेले न्यूयॉर्क शहर को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 100 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ.
लेकिन अर्थव्यवस्था को जो नुक़सान हुआ वह इससे भी काफ़ी बड़ा था. व्यापारियों और उपभोक्ताओं का भरोसा टूटा. अमरीकी अर्थव्यवस्था, जो 2001 में मंदी के दौर से गुजर रही थी, और प्रभावित हुई.
प्रभाव
ऐसा नहीं है कि 11 सितंबर के हमले का आर्थिक नुक़सान सिर्फ़ अमरीका को ही भुगतना पड़ा. इसका असर दुनियाभर में देखा गया.
दुनियाभर के आर्थिक विकास दर का जो आकलन हुआ था, उसमें भी गिरावट की भविष्यवाणी की गई. दुनियाभर में विदेशी निवेश में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा की गिरावट आई.
विमान से यात्रा करने में लोगों को डर लगने लगा जिसके कारण विमान परिवहन पर भी असर पड़ा. एयरलायंस और बीमा कंपनियों को बड़ी झटका लगा.
लेकिन जितने बड़े पैमाने पर आर्थिक नुक़सान की भविष्यवाणी की जा रही थी, वैसा भी नहीं हुआ. एक साल के अंदर अमरीकी अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण दिखने लगे.
अमरीकी केंद्रीय बैंक फ़ेडेरल रिजर्व की सूझ-बूझ और पहल के कारण वित्तीय बाज़ार का कामकाज चलता रहा. हमले के दिन ही फ़ेडेरल रिजर्व ने तेज़ी से काम किया और ये सुनिश्चित किया कि कोई वित्तीय रुकावट न हो.
फ़ेडेरल रिजर्व ने यह भी घोषणा की कि अगर किसी वित्तीय संस्था को नक़दी को लेकर अल्पकालिक समस्या झेलनी पड़ रही है तो बैंक के पास उसे सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त राशि है.
फ़ेडेरल रिजर्व ने एक दिन में 10 अरब डॉलर से ज़्यादा की राशि वित्तीय संस्थाओं के लिए जारी भी की. जैसे ही वित्तीय बाज़ार खुला, फ़ेडेरल रिजर्व ने ब्याज दर में आधा फ़ीसदी की कमी कर दी.
और तो और वर्ष 2001 की समाप्ति तक इसी तरह ब्याज दर में दो बार और कमी की गई. वर्ष 2003 तक ब्याज दर पिछले 50 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया.
इस क़दम से शेयर बाज़ार में स्थिरता का दौर आया. जून 2001 में बुश प्रशासन ने कांग्रेस से करों में कटौती पास कराने में सफलता पाई थी.
11 सितंबर के हमलों के बाद वर्ष 2003 में एक बार फिर करों में कटौती हुई. 2004 तक यह लगने लगा था कि आर्थिक विकास की दर फिर राह पकड़ने लगी है.
11 सितंबर के हमलों के कारण सरकार का ख़र्चा ज़्यादा बढ़ गया. पहले अफ़ग़ानिस्तान और फिर इराक़ में युद्ध के कारण तो ख़र्च बढ़ा ही, साथ ही आंतकवाद से निपटने के लिए घरेलू मोर्चे पर भी कई क़दम उठाए गए.
अमरीका का रक्षा बजट बढ़कर दोगुना हो गया. जबकि घरेलू स्तर पर आतंकवाद निरोधक ख़र्च तिगुने हो गए. लेकिन आर्थिक और राजनीतिक कारणों से बुश प्रशासन कर बढ़ाने के पक्ष में नहीं था.
घाटा
इसके उलट बुश प्रशासन ने बढ़े हुए कर्ज़ पर टिके रहना ज़्यादा उपयुक्त समझा. इस कारण वर्ष 2003 में बजट घाटा काफ़ी बढ़ गया.
हालाँकि आर्थिक सुधार के कारण कर से ज़्यादा राजस्व मिलने लगा लेकिन ज़्यादातर जानकारों का मानना है कि बजट घाटे की भरपाई इस दशक के आख़िर तक ही हो पाएगी.
अमरीका की घरेलू अर्थव्यवस्था के साथ-साथ 11 सितंबर की घटना के कारण बुश प्रशासन के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहोयग पर भी असर पड़ा.
अपने राष्ट्रपति काल के शुरुआती दौर में जॉर्ज बुश ने दक्षिणी अमरीकी देशों के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र की वकालत की थी लेकिन 11 सितंबर की घटना के बाद इस नीति पर भी असर पड़ा.
अमरीका की अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीति का प्रसार हुआ. अमरीका के सहयोगी विकासशील देशों को यह जताया गया कि अमरीका आर्थिक विकास का फल सभी तक पहुँचाना चाहता है.
अमरीका ने कई घोषणाएँ भी की. लेकिन घोषणा करने और उसे कार्यरूप में बदलने में मुश्किलें देखी जा सकती थी.
इतना ज़रूर हुआ कि आतंकवादियों के वित्तीय नेटवर्क को तोड़ने के मामले पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ा लेकिन विश्व व्यापार संगठन की बातचीत लगातार चार वर्षों से बिना किसी नतीजे के ख़त्म होती रही है.
समझा यही जा रहा है कि 11 सितंबर के बाद की स्थितियों में पहले के जैसी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग की भावना फिर से जगाना टेढ़ी खीर है.