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मंगलवार, 11 जुलाई, 2006 को 12:34 GMT तक के समाचार
 
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अपनी पहचान चाहते हैं ब्रिटेन के हिंदू
 
ब्रितानी हिंदू
ब्रितानी हिंदू स्वंय को उपेक्षित मानने लगे हैं
ब्रिटेन में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ रहने वाले हिंदू अन्य समुदायों की तुलना में स्वंय को उपेक्षित महसूस करते हैं.

हिंदू फ़ोरम ऑफ़ ब्रिटेन के इस सर्वेक्षण में ऑनलाइन और टेलीफ़ोन के ज़रिए 700 हिंदुओं की राय जानी गई.

सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि अधिकतर हिंदू स्वंय को एशियाई की जगह हिंदू कहलवाना पसंद करते हैं.

तीसरा बड़ा समूह

ब्रिटेन में पाँच लाख हिंदू हैं और यह ईसाई और मुसलमानों के बाद तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक गुट है.

ब्रिटेन में रह रहे हिंदुओं के इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट समुदाय मंत्री रूथ केली जारी करने वाली हैं.

  हमने ब्रितानी अर्थव्यवस्था को बहुत कुछ दिया. हमने देर-देर तक काम किया. हमने ख़ैरात नहीं ली और अब हम अपनी एक पहचान चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सरकार हमें ब्रितानी हिंदू कहे.
 
प्रीति रायचूड़ा

रिपोर्ट से यह अंदाज़ा भी हो रहा है कि शांतिपूर्ण बाहरी आवरण के बावजूद यहाँ के हिंदू समुदाय में हताशा बढ़ रही है.

चंदू मट्टानी तीस साल पहले ज़ाम्बिया से आए थे और अब वह बेल्ग्रेव रोड पर साड़ियों की एक दुकान चलाते हैं.

उनकी पीढ़ी समाज में घुलमिल गई है लेकिन उनके मन में भी ये सवाल उठते हैं कि क्या हिंदुओं को अपनी पहचान क़ायम करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए.

'बोलना ज़रूरी है'

वह कहते हैं, "हम आवाज़ नहीं उठाते. जो चिल्लाते हैं उन्हें सब कुछ मिल जाता है".

वैसे अब दूसरी और तीसरी पीढ़ी के हिंदू अपनी मेहनत और सफलता को देखते हुए इस बारे में सवाल करने लगे हैं.

उन्हें लगता है कि सरकार ने अब तक उनकी अनदेखी की है.

प्रीति रायचूड़ा हिंदू यूथ फ़ोरम की सदस्य हैं.

वह कहती हैं, "हमने ब्रितानी अर्थव्यवस्था को बहुत कुछ दिया. हमने देर-देर तक काम किया. हमने ख़ैरात नहीं ली और अब हम अपनी एक पहचान चाहते हैं. हम चाहते हैं कि सरकार हमें ब्रितानी हिंदू कहे".

मंदिर
ब्रिटेन में पाँच लाख हिंदू रह रहे हैं

लंबे समय तक ब्रिटेन समय से यहाँ आकर बसने वाले हिंदुओं को एशियाई कहा जाता है लेकिन उससे किसी की अलग पहचान नहीं बन पाती.

हिंदुओं की एक शिकायत आर्थिक मदद को लेकर भी है.

शमशान घाट की मांग

लेस्टर में मुसलमानों को मौत के 24 घंटे के भीतर ही उनकी मज़हबी मान्यताओं के अनुरूप उनके अपने क़ब्रिस्तान में दफ़ना दिया जाता है जबकि हिंदू पिछले 20 साल से अपने अलग शमशान घाट की मांग कर रहे हैं.

हिंदुओं को अब यह एहसास होने लगा है कि उन्हें एक अलग धार्मिक गुट के तौर पर मान्यता मिले और उन्हें मुसलमानों के साथ जोड़ कर न देखा जाए.

यह एक बहुत ही संवेदनशील मामला है.

लेस्टर में पिछले 20 साल से समुदायों में एकजुटता लाने का काम कर रहे स्टीव व्हाइट कहते हैं कि अगर एक समुदाय ख़ुद को उपेक्षित महसूस करेगा तो ग़ु्स्सा भड़कने का ख़तरा है.

उनका कहना है, "सरकार को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हिंदू हाशिए पर आ गए हैं".

लेकिन इसके साथ ही वह यह भी मानते हैं कि हिंदुओं को अपनी पहचान अलग करने पर इतना ज़ोर भी नहीं देना चाहिए कि वह समाज में घुलमिल न सकें.

सरकार ने इसकी प्रतिक्रियास्वरूप समाज में हिंदुओं के योगदान की सराहना करते हुए कहा है कि रिपोर्ट कई अहम पक्ष सामने लाती है.

 
 
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