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सोमवार, 29 अगस्त, 2005 को 23:42 GMT तक के समाचार

ऑस्ट्रेलिया पर ईरानी बच्चे का मुक़दमा

दस वर्षीय एक ईरानी बच्चे ने ऑस्ट्रेलिया की सरकार के ख़िलाफ़ एक मुक़दमा दायर कर दिया है.

शायन बदराई ने दावा किया है कि ऑस्ट्रेलिया के एक शरणार्थी बंदीगृह में रखे जाने के कारण उसका मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

वे ऑस्ट्रेलिया की सरकार से मुआवज़ा माँगने वाले पहले शरणार्थी हैं, ऑस्ट्रेलिया के बंदीगृहों में पिछले पाँच वर्षों की अवधि में लगभग लगभग चार हज़ार बच्चों को रखा गया है.

अपने पिता मोहम्मद सईद बदराई की सहायता से शायन ने आप्रवसान विभाग और दो बंदीगृहों पर मुक़दमा किया है.

शायन के वकील एंड्रू मॉरिसन कहते हैं, "यह मुक़दमा सरकार की नीतियों के बारे में नहीं है बल्कि जिस तरह से उन पर अमल किया जाता है, उसके बारे में है. यह मामला एक मासूम बच्चे को पहुँची स्थायी मानसिक क्षति का है."

बुरी हालत

बदराई परिवार शायन के साथ वर्ष 2000 में ऑस्ट्रेलिया में शरण पाने की उम्मीद लेकर आया था, उस वक़्त शायन की उम्र पाँच वर्ष थी.

अधिकारियों ने पूरे परिवार को शहर से बहुत दूर कँटीले तार से घिरे एक बंदीगृह में बंद कर दिया.

ऑस्ट्रेलिया के नियमों के अनुसार शरण पाने की इच्छा रखने वाले सभी व्यक्तियों को बंदीगृह में रखा जाता है जब तक कि उनकी अर्ज़ी का निबटारा नहीं हो जाता.

शायन के वकीलों का कहना है कि उसने वहाँ बहुत ही विकट परिस्थितियों का समाना किया, उसकी आँखों के सामने कई लोगों ने आत्महत्या करने की कोशिश की, उसने बंदीगृह में कई बार भूख हड़ताल में भी हिस्सा लिया.

उनके वकीलों का कहना है कि शायन ने जिन स्थितियों का सामना किया उनमें कोई बच्चा तो क्या किसी भी इंसान को मानसिक सदमा पहुँचेगा.

शायन के माता-पिता का कहना है कि वह कई-कई दिन तक चुप रहता है और कुछ खाता-पीता नहीं है, उसे अक्सर अस्पताल ले जाना पड़ता है ताकि उसकी जान बचाई जा सके.

तीन वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार आयोग ने कहा था कि शायन को बंदीगृह में रखा जाना ग़लत था.

मानवाधिकार आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि सरकार शायन को मुआवज़ा दे और उनके मानसिक उपचार का ख़र्च उठाए लेकिन सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया था.