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गुरुवार, 18 अगस्त, 2005 को 12:27 GMT तक के समाचार

पॉल एडम्स
सुरक्षा मामलों के संवाददाता

ग़ज़ा पट्टी के बाद राह किधर?

फ़लस्तीनी क्षेत्र ग़ज़ा पट्टी से यहूदी बस्तियाँ हटाने का काम लगभग पूरा हो गया है तो अब नज़रें इस बात पर हैं कि वहाँ से यहूदी बस्तियाँ हटने के बाद कौन सी डगर निकलेगी.

इसमें कोई शक नहीं है कि ग़ज़ा से बस्तियाँ हटाने की जो तस्वीरें टेलीविज़न पर दिखाई जा रही हैं उनसे इसराइलियों में एक राजनीतिक और धार्मिक बेचैनी नज़र आती है.

यहाँ तक कि वे लोग भी ग़ज़ा में यहूदियों को आपस में भिड़ा हुआ देखकर चिंतित हैं जो ग़ज़ा पट्टी पर अपना क़ब्ज़ा बनाए रखने के इसराइल के प्रयासों को वाहियात बताते रहे हैं.

लेकिन कुछ दीवारों और काँटेदार तार की बाड़ों के दूसरी तरफ़ क़रीब 15 लाख फ़लस्तीनी इस घटना को कुछ अलग जज़्बात के साथ देख रहे हैं.

आर्थिक आज़ादी

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यह एक ऐसी घटना होगी जिसमें यहूदी बस्तियों, सैनिकों, सुरक्षा नाकों और निगरानी टॉवरों से छुटकारा मिलेगा. क़रीब पाँच लाख शरणार्थी ग़ज़ा में बहुत ही भीड़-भाड़ वाले शिविरों में रहते हैं.

ग़ज़ा में अपनी पसंद से बसने वाले क़रीब आठ हज़ार इसराइलियों के लिए उन फ़लस्तीनियों से कम ही सहानुभूति मिलेगी जिन्हें 1948 में उस इलाक़े से या तो भागना पड़ा था या वहाँ से निकाल दिया गया जिसे आज इसराइल कहा जाता है.

ग़ज़ा पट्टी से यहूदी बस्तियाँ हटाने के बाद वहाँ का क़रीब 20% हिस्सा ख़ाली हो जाएगा लेकिन जब तक फ़लस्तीनियों को कुछ हद तक आर्थिक आज़ादी नहीं मिल जाती तब तक यह सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही नज़र आएगा.

असंभव स्थिति

इसराइल का कहना है कि बंदरगाह खोलने, ग़ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट के बीच संपर्क बनाने और अनेय महत्वपूर्ण मुद्दों पर कोई बातचीत तभी शुरू हो सकती है जब फ़लस्तीनी प्रशासन हमास और इस्लामी जेहाद जैसे चरमपंथी संगठन को निष्क्रिय कर देता है.

इसराइल के लिए अभी यह भी बताना बाक़ी है कि वह ग़ज़ा हवाई अड्डा खोलने की इजाज़त देगा या नहीं.

इसराइली प्रधानमंत्री अरियल शेरॉन ने 2008 तक ऐसी व्यवस्था भी बनाने की बात कही है जब फ़लस्तीनियों को इसराइल में काम करने की अनुमति नहीं होगी. अगर इस योजना पर अमल होता है तो यह ग़ज़ा पट्टी के लिए बहुत ख़तरनाक साबित होगा.

फ़लस्तीनी नेता महमूद अब्बास ख़ुद को एक असंभव सी स्थिति में पाते हैं क्योंकि इसराइली योजना से उनके अपने लोगों में ग़ुस्सा पनप सकता है. दूसरी तरफ़ हमास को काफ़ी समर्थन मिल रहा है.

किसी भी फ़लस्तीनी से पूछिए कि अरियल शेरॉन ने ग़ज़ा पट्टी से यहूदी बस्तियाँ हटाने का आदेश क्यों दिया है तो उसका जवाब होता है कि क्योंकि हमास के बंदूकधारियों ने शेरॉन को इसके लिए मजबूर किया है.

साथ ही हमास एक राजनीतिक ताक़त भी बनकर उभरा है और जब भी चुनाव कराए जाएंगे तो हमास के और लोकप्रिय होने की संभावना जताई जा रही है.

मुश्किल

हमास को राजनीतिक पर्दे से हटाना महमूद अब्बास के लिए कोई विकल्प ही नहीं हो सकता जिसका मतलब है कि अभी यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि कितनी प्रगति की जा सकती है या महमूद अब्बास मौजूदा स्थिति से कितना राजनीतिक फ़ायदा उठा सकते हैं जिसकी इस वक़्त बहुत ज़रूरत है.

इसके अलावा कुछ और व्यापक चिंताएँ भी हैं. मसलन, ग़ज़ा पट्टी से ख़ुद अपनी ही पहल पर यहूदी बस्तियाँ हटाने के पीछे अरियल शेरॉन की क्या व्यापक रणनीति है?

क्या यह प्रक्रिया, जैसा कि पिछले साल उनके एक निकट सलाहकार ने कहा था, "एक ऐसी कड़वी गोली है जिसका निगलना ज़रूरी ताकि फ़लस्तीनियों के साथ कोई राजनीतिक प्रक्रिया ना हो सके."

आम चिंता

ग़ज़ा में दो हज़ार मकान जल्दी ही नष्ट किए जाएंगे लेकिन पश्चिमी तट में शेरॉन सरकार और छह हज़ार मकान बनाने की योजना बना रही है जिससे अधिकृत क्षेत्रों में इसराइल की पकड़ और मज़बूत होगी और जो बहुत महत्वपूर्ण होगी.

इसराइल जो सुरक्षा बाड़ बना रहा है उससे पश्चिमी तट का दस प्रतिशत हिस्सा इसराइल के क़ब्ज़े में आएगा और यरूशलम में रहने वाले दस हज़ार से भी ज़्यादा फ़लस्तीनी पश्चिमी तट से कट जाएंगे.

यह भी कहा जा रहा है कि इस सुरक्षा बाड़ योजना को अगर शेरॉन की यहूदी बस्तियों की योजना को मिलाकर देखा जाए तो उन्होंने पहले ही यह तय कर लिया है कि भविष्य में इसराइल की सीमाएँ क्या होंगी.

इससे हर तरफ़ चिंता की लहर दौड़ी है.

अधिकृत क्षेत्रों में बसे यहूदियों को आशंका है कि पश्चिमी तट में बसे यहूदियों को भी ग़ज़ा पट्टी जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जबकि दूसरी तरफ़ फ़लस्तीनियों को डर है कि उन्हें एक ऐसे देश की पेशकश की जाएगी जिसके पास अपना कोई ठोस और टिकाऊ क्षेत्र होगा और वह देश जल्दी ही अस्थिर हो जाएगा.