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एफ्रो-एशियाई देशों का सम्मेलन | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एशिया और अफ्रीका महाद्वीपों के अस्सी से ज़्यादा राष्ट्राध्यक्षों और प्रधानमंत्रियों का दो दिन का सम्मेलन शुक्रवार को इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में शुरू हो गया है. पचास साल पहले 1955 में इंडोनेशिया के ही बांडुंग में हुए एक सम्मेलन के ज़रिए गुट निरपेक्ष आंदोलन का जन्म हुआ था. उस सम्मेलन में इन दो महाद्वीपों के 29 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और प्रधानमंत्रियों ने हिस्सा लिया था और इन देशों में दुनिया की आधी आबादी बसती थी. इनमें ज़्यादातर ऐसे देश थे जो कुछ समय पहले ही एक लंबे स्वतंत्रता आंदोलन के बाद औपनिवशिक शासन से मुक्त हुए थे. उस समय विश्व के राजनीतिक पटल पर दो खेमे बने हुए थे जिनमें से एक का नेतृत्व अमरीका कर रहा था और दूसरे की बागडोर सोवियत संघ के पास था. इन दोनों खेमों के बीच शीत युद्ध चल रहा था तब विकासशील देशों ने अपने राष्ट्रीय हितों के लिए इन दोनों खेमों से बाहर रहते हुए एक तीसरा मोर्चा बनाया जिसे गुट निर्पेक्ष आंदोलन का नाम दिया गया. इस मोर्चे को बनाने में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकार्णो और मिस्र के राष्ट्रपति नासिर की महत्वपूर्ण भूमिका थी. लेकिन शीत युद्ध के दौरान तो इस आंदोलन ने ख़ासा महत्व हासिल कर लिया था लेकिन 1990 में सोवियत संघ के विघटन के बाद इसकी पहचान भी कम हो गई. अब बांडुंग सम्मेलन को पचास साल हो चुके हैं और उसी की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए ये नेता जकार्ता में इकट्ठा हो रहे हैं. सम्मेलन की पूर्व संध्या पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुसीलो बम्बांग युधोयोनो ने कहा कि अगर अफ्रीका और एशियाई देशों के बीच सामरिक दोस्ती बन जाती है तो पाँच दशक के खोए अवसरों की भरपाई हो सकती है. संभावना व्यक्त की जा रही है कि सम्मेलन के अंत में अफ्रीका और एशिया महाद्वीपों के देशों के बीच राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए जाएंगे. |
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