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रविवार, 05 अक्तूबर, 2003 को 14:11 GMT तक के समाचार
 
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सवाल-जवाब: यूरोपीय संविधान
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यूरोपीय संघ के सदस्य देश एक बार फिर संघ के संविधान पर सहमित बनाने में नाकाम रहे हैं. इस मामले में किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें सुलझाने की रणनीति क्या हो सकती है, इस बारे में विस्तार से जानिए सवाल-जवाब के माध्यम से.

सदस्य देशों के बीच मतभेद के मुख्य मुद्दे क्या हैं?

मतभेद मुख्य रूप से बड़े और छोटे देशों के बीच हैं. ख़ासकर ऐसे देशों के बीच जो संघात्मक प्रणाली के समर्थक या विरोधी हैं. छोटे देश चाहते हैं कि यूरोपीय आयोग और यूरोपीय संसद के पास अधिक शक्तियाँ हों जबकि बड़े देश मंत्री परिषद के गठन के ज़रिए आपसी सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं. सभी छोटे देश इस आशंका से घिरे हैं कि कहीं उनकी आवाज़ें बड़े देशों की आवाज़ों के नीचे न दब जाएं.

कार्य करने के तरीके पर भी ख़ासा विवाद होने की उम्मीद है. इटली पूरी कोशिश में है कि संविधान के मौजूदा मसौदे में कम से कम परिवर्तन लाए जा सकें. इटली के विदेश मंत्री फ़्रांको फ्रात्तिनी ने कहा है कि कोई भी सदस्य देश बिना उचित समर्थन के संवैधानिक संशोधन प्रस्तावित नहीं कर सकता है.

किस तरह के बहस की उम्मीद की जा रही है?

अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग किस्म की अड़चनें दिख रहीं हैं.

यूरोपीय आयोग की सदस्यता का सवाल- वर्तमान मसौदे के अनुसार आयोग में 15 सदस्यों को वीटो का अधिकार दिया जाएगा जबकि 10 देशों को ये अधिकार प्राप्त नहीं होगा. बहुत से वर्तमान और भावी सदस्य देशों की माँग है कि सभी देशों को वीटो का अधिकार मिलना चाहिए.

मताधिकार-छोटे और बड़े देशों के तुलनात्मक मताअधिकारों को लेकर विवाद चल रहा है. उल्लेखनीय है कि तीन साल पहले हुए नीस सम्मेलन के दौरान जो व्यवस्था की गई थी उसमें स्पेन और पॉलैंड को तकरीबन उतने ही मत(27) देने के अधिकार दिए गए हैं जितने कि जर्मनी और फ़्रांस जैसे बड़े देशों को(29).

मंत्री परिषद्- मसौदे के मुताबिक किसी भी मामले में मतदान तब हो जब अधिकांश सदस्य राष्ट्र इसके पक्ष में हों. साथ ही वे यूरोपीय संघ की कुल आबादी के 60 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व भी करते हों. जबकि स्पेन और पोलैंड वर्ष 2000 की संधि में तय की गई प्रणाली के समर्थन में हैं.

धर्म- प्रस्तावित संविधान की प्रस्तावना में ईसाइयत या किसी दूसरे धर्म का कोई उल्लेख नहीं है. पोलैंड स्पेन और इटली के समर्थन से संविधान में धर्म का स्थान चाहता है. फ्रांस अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाए रखते हुए इसका विरोध कर रहा है.

अध्यक्ष- वर्तमान मसौदे में यूरोपीय संघ के मंत्री परिषद का एक स्थायी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव है. फ़िलहाल, अध्यक्ष पद छह महीनों के लिए प्राप्त होता है. छोटे देशों का कहना है कि एक स्थायी अध्यक्ष बनाने से सिर्फ़ बड़े देशों का हित सध पाएगा.

प्रतिरक्षा - प्रस्तावित मसौदे में बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी और लक्ज़मबर्ग को इस बात की हरी झंडी दिए जाने की संभावना है कि वे यूरोपीय प्रतिरक्षा संघ के गठन की दिशा में आगे बढ़ें. इसमें एक आपसी समझौते के साथ प्रतिरक्षा संधि की योजना है. ब्रिटेन और नीदरलैंड का मानना है कि इस क़दम से नैटो की भूमिका में अवरोध पैदा होने की गहरी आशंका है.

यूरोपीय संघ के इस मसौदे में और क्या क्या है?

इस मसौदे में ये कोशिश की गई है कि यूरोपीय संघ के सर्वांगीण विकास के लिए सभी नीतियों को एक संतुलित दृष्टि दी जा सके. यदि कोई सदस्य यूरोपीय संघ की सदस्यता छोड़ना चाहे तो उसके लिए भी उचित प्रावधान दिए गए हैं.

यूरोप को इस संविधान की आवश्यकता क्यों है?

यूरोपीय संघ में जल्द ही 25 सदस्य हो जाएँगे और इसे व्यवस्थित रखने के लिए एक संविधान की आवश्यकता है. इससे यूरोपीय संघ के लोगों को अपनी शासन प्रणाली को अच्छी तरह समझने का मौक़ा मिलेगा. इस संविधान को तैयार करने वाले सम्मेलन के सचिव और फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति वलेरी गिस्कार्ड डी इस्तेंग चाहते हैं कि संविधान को स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए.

नया संविधान कब तक कानून बन पाएगा?

अगर सब कुछ नियत तरीके से चलता रहा तो इस संविधान को अगले साल मई तक हरी झंडी मिलने की प्रबल संभावनाएँ है.

 
 
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