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बेडशीट अगर आप इतने दिनों में बदलते हैं तो हो जाएं सावधान
- Author, मनीष पांडेय
- पदनाम, न्यूज़बीट रिपोर्टर
किसी को अपनी बेडशीट कितने दिनों पर बदलनी या धोनी चाहिए? इस सवाल को कई लोग बचकाना मान सकते हैं. कई लोग यह भी कह सकते हैं कि इस विषय पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं होनी चाहिए.
लेकिन यह एक ऐसा विषय है जो हर इंसान को प्रभावित करता है. हाल में ब्रिटेन के 2,250 वयस्क लोगों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण में पता चला कि इस पर लोगों की एक राय नहीं है.
दिलचस्प बात मालूम चली कि लगभग आधे अविवाहित पुरुषों ने बताया कि वे क़रीब चार महीने तक अपनी बेडशीट नहीं धोते.
वहीं 12 फ़ीसदी लोगों ने कहा कि वे इसे तभी धोते हैं जब उन्हें इस पर ध्यान जाता है. इन मामलों में समय का यह अंतराल और भी लंबा हो सकता है.
पेशे से मनोवैज्ञानिक, न्यूरोसाइंटिस्ट और नींद विशेषज्ञ डॉ लिंडसे ब्राउनिंग बीबीसी के रेडियो वन न्यूज़बीट को बताती हैं कि असल में यह अच्छी आदत नहीं है.
बेडशीट बदलना ज़रूरी क्यों?
एक कंपनी के अनुसार, अकेले रहने वाली महिलाएं ज़्यादा बार बेडशीट बदलती हैं. उसके आँकड़ों के अनुसार, 62 फ़ीसदी ऐसी महिलाएं हर दो हफ़्ते में अपनी बेडशीट धोती हैं. वहीं दंपतियों के मामले में यह अंतराल तीन हफ़्तों का होता है.
डॉ ब्राउनिंग के अनुसार, हमें एक या दो सप्ताह में अपनी बेडशीट बदल लेनी चाहिए. साफ़ सफ़ाई इसकी मुख्य वजह है. हर इंसान के शरीर से पसीना निकलता है, जो बेडशीट पर लगता है. गर्मी में जब आप सोते हैं तो शरीर से निकलने वाले पसीने से बेडशीट भींग सकती है.
डॉ ब्राउनिंग बताती हैं कि पसीना बेडशीट में जब जाता है, तो उससे बदबू निकलती है. वो कहती हैं कि अच्छी नींद के लिए सोते समय हमें ठंडक महसूस होनी चाहिए, जिसके लिए हवा की ज़रूरत होती है. नींद के दौरान हमारे शरीर से केवल पसीना ही नहीं बल्कि हमारी त्वचा की मरी हुई कोशिकाएं भी मुक्त होती हैं, जिसके बारे में हमें सोचना चाहिए.
वे कहती हैं, "यदि आप अपनी बेडशीट को बार बार नहीं धोते, तो आपकी मरी हुई कोशिकाएं बेडशीट में विकसित होती हैं."
सुनने में भले डरावना लगे लेकिन असलियत इससे भी ख़राब हो सकती है. घुन जैसे कुछ छोटे जीव उन मरी हुई कोशिकाओं को खा सकते हैं. उससे हमें परेशानी हो सकती है और हमारी त्वचा पर चकत्ते उभर सकते हैं.
वे कहते हैं, "आप न केवल पसीने और चमड़ी की मरी हुए कोशिकाएं बल्कि घुन के साथ भी सो रहे होंगे."
क्या मौसम मायने रखता है?
डॉ ब्राउनिंग कहती हैं, "सर्दियों में हम थोड़ी छूट ले सकते हैं, लेकिन सप्ताह में एक बार बदलना आदर्श स्थिति होगी.''
यदि बेडशीट बदलने में आप दो हफ़्ते से ज़्यादा का वक़्त ले रहे हैं तो फिर दिक़्क़त है.
वे कहती हैं कि सर्दियों में भले हमारे शरीर से कम पसीना बहता है, लेकिन उस वक़्त भी मरी हुई त्वचा कोशिकाएं मुक्त हो रही होती हैं.
सर्वेक्षण में, शामिल 18 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे बेडशीट देर से इसलिए बदलते हैं कि सोने से पहले वे नहाते हैं, ताकि बेडशीट गंदी न हों.
डॉ ब्राउनिंग कहती हैं कि गर्मी के दिनों में हवा में धूल कण और फूलों के पराग कण भी फैले होते हैं.
वे कहती हैं कि वास्तव में नियमित तौर पर बेडशीट धोना बेहद अहम है, क्योंकि उससे एलर्जी भी हो सकती है. इससे हमें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
'बेडरूम बहुत आरामदायक हो'
पिज़ुना लिनेन के इस सर्वे में शामिल 67 प्रतिशत लोगों ने याद न रहने को बेडशीट न बदलने की वजह बताई. वहीं 35 प्रतिशत लोगों ने लापरवाही और 22 प्रतिशत ने कोई दूसरा साफ़-सुथरा बेडशीट न मिलने को इसका कारण बताया.
वहीं 38 प्रतिशत का कहना था कि वे नहीं मानते कि बेडशीट को बार बार धोने की ज़रूरत नहीं होती है.
डॉ ब्राउनिंग का कहना है कि नींद के लिए हमारा बेडरूम "अभयारण्य" होना चाहिए. वो जगह ऐसी हो जो "अद्भुत और आरामदायक हो, जहां हम ख़ुश महसूस कर सकें."
उनके पास ऐसे मरीज़ भी आते हैं, जिन्हें नींद न आने की बीमारी होती है. वे कहती हैं, "यदि आपकी बेडशीट नियमित तौर पर नहीं धोयी जाती, वे गंदी दिखे और उसमें से बदबू निकले, तो आपकी वो धारणा मजबूत हो सकती है कि आप अपने बेड पर नहीं रहना चाहते."
वे कहती हैं, "यदि हम बेड पर लेटें तो हमें शांति, आराम और ख़ुशी मिलना चाहिए. साफ़ बेडशीट की गंध हमें शांत और ख़ुश होने में मदद मिलती है."
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