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आईएस की सताई यज़ीदी औरतों के लिए सबूत जुटाती कुर्द वकील
- Author, स्वामीनाथन नटराजन
- पदनाम, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस
रेज़ गर्दी की शुरआती तनख़्वाह 2 लाख डॉलर थी लेकिन उन्होंने एक लड़ाई के मक़सद से लॉ फ़र्म की नौकरी को छोड़ दी.
वो बीबीसी से कहती हैं, "बहुत सारे पैसों और फ़ैंसी कॉर्पोरेट नौकरी के लालच के समंदर में मैं हमेशा यह याद करती रहती थी कि इस शानदार ज़िंदगी से भी बड़े मक़सद मेरे हैं. मैं लॉ स्कूल में क़ानून की पढ़ाई करने एक ख़ास मक़सद से गई थी. मैं सकारात्मक बदलावों के लिए क़ानून की ताक़त को समझना चाहती थी."
तथाकथित इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने जिन महिलाओं का अपहरण किया, उन्हें बेचा और उनके साथ बलात्कार किया उनकी लड़ाई के लिए रेज़ आगे आईं क्योंकि व्यक्तिगत रूप से यह उनके लिए महत्व रखता था.
वो कहती हैं, "मेरे परिजन इस क्षेत्र से भागे और मुझे दुनिया की दूसरी ओर ले गए. अब मैं वहां अपने क़दम ले जा रही हूं, जहां से मैंने शुरुआत की थी."
अन्याय के साथ बड़ा होना
पाकिस्तान के एक शरणार्थी कैंप में 1991 में रेज़ का जन्म हुआ. उनके परिजन इराक़ के कुर्द थे और वो सद्दाम हुसैन के काल में मारे गए अपने परिवार के लोगों, पड़ोसियों और दोस्तों की कहानियां सुनते हुए बड़ी हुईं.
जब वो सात वर्ष की थीं तब उनका परिवार न्यूज़ीलैंड आ गया. वो पढ़ाई में बहुत शानदार थीं और पिछले साल उन्होंने हार्वर्ड लॉ स्कूल से पढ़ाई पूरी की.
वो कहती हैं, "मैं जिन परिस्थितियों में पैदा हुई उसने बराबरी, न्याय और मानवाधिकारों में मेरी रुचि बनाई. मैंने अन्याय और मानवाधिकारों का न होना तब जाना जब मुझे इन सबके बारे में पता भी नहीं था."
'यही मुझे बनना था'
वो अब उत्तरी इराक़ में उन सबूतों को इकट्ठा कर रही हैं जहां पर 2014 में काफ़ी अत्याचार हुआ था.
इस्लामिक स्टेट ने जब इस क्षेत्र पर क़ब्ज़ा किया तब उसने एक धार्मिक-जातीय समूह पर ख़ास अत्याचार किया और वो थे यज़ीदी.
यज़ीदी एक प्राचीन समुदाय है जिनकी जनसंख्या तक़रीबन 5 लाख है. उनको आईएस के जिहादी विधर्मी या इंसानों से कम दर्जे का मानते थे.
चरमपंथियों ने जब इस समुदाय पर धावा बोला तो इस समुदाय के गांव वाले जान बचाने के लिए माउंट सिंजर के क़रीब चले गए. सैकड़ों लोगों ने पहाड़ पर अपनी जान बचाई लेकिन कई लोग झुलसती गर्मी में मारे भी गए.
अधिकतर पकड़े गए लोगों को मार डाला गया. लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स की पिछले साल प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि 'हमले के दौरान 10,000 यज़ीदियों को या तो मारा गया या उनका अपहरण किया गया.'
वहीं, आईएस ने जिन महिलाओं और लड़कियों को पकड़ा था उनके लिए आगे नरक की ज़िंदगी थी.
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रेज़ कहती हैं, "जब मैं किसी पीड़िता से उसकी कहानी सुनती हूं तो मैं उसकी मदद नहीं कर सकती हूं लेकिन मैं उसकी उदासी महसूस करती हूं कि वो किन हालातों से गुज़री है और यह मुझे ग़ुस्से से भर देता है."
आईएस की हैवानियत ने रेज़ को हिलाकर रख दिया.
वो कहती हैं, "मैं मदद नहीं कर सकती हूं लेकिन मैं सोचती हूं कि अगर यह मेरे साथ, मेरी बहन, मेरी मां और या मेरी भतीजियों के साथ हो सकता था. क्यों किसी को इन सबसे गुज़रना चाहिए."
युद्ध अपराध
इन अपराधों को किसी के साथ जोड़ना और फिर सबूत पेश करना एक नामुमकिन सा काम है.
रेज़ ख़ासतौर पर उन महिलाओं पर ध्यान दे रही हैं जिन तक मीडिया और दूसरे मानवाधिकार समूह नहीं पहुंच पाए हैं.
रेज़ कहती हैं, "यज़ीदी महिलाएं ये बता सकती हैं कि उन्हें कहां-कहां बेचा गया और कहां रखा गया. वे अपने साथ हुए बलात्कार और यौन हिंसा के बारे में भी बता सकती हैं. वे आईएस के उन आदमियों की भी पहचान कर सकती हैं."
आईएस अच्छी तरह व्यवस्थित समूह था और रेज़ कहती हैं कि यज़ीदियों के सफ़ाए की उन्होंने जिस तरह से कोशिश की उसमें एक ख़ास पैटर्न था.
वो कहती हैं, "वो महिलाओं को पुरुषों से और युवा महिलाओं को बूढ़ी महिलाओं से अलग करते थे. क्योंकि युवा और ग़ैर-शादीशुदा महिला को सेक्स ग़ुलाम के तौर पर अच्छे दामों में बेचा जा सकता था. कई बूढ़े पुरुषों और महिलाओं को उसी जगह पर मार डाला गया."
उनको उम्मीद है कि अधिक जांच के बाद व्यक्तिगत रूप से चरमपंथियों पर मामले चलाना आसान हो जाएगा.
वो कहती हैं, "यह बेहद गुप्त और गंभीर मामला है. मैं सिर्फ़ महिलाओं से सबूत लूंगी जो इसे दे सकती हैं. कुछ अभी भी बोलने से डर रही हैं."
उनके फ़ील्ड वर्क से पता चला है कि महिलाओं के साथ ऐसा अपराध सिर्फ़ चरमपंथियों ने ही नहीं किया.
वो बताती हैं कि मोसुल क्षेत्र के कुछ अरब पुरुषों ने महिलाओं को ख़रीदा जो पैसे वाले और ताक़तवर थे.
इंसाफ़ की लड़ाई
नादिया मुराद उन्हीं महिलाओं में से एक हैं. 2014 में उनका अपहरण किया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया और उनका बलात्कार किया गया. उस समय वो केवल 21 साल की थीं.
2018 में नादिया को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला लेकिन उनकी जैसी कई यज़ीदी महिलाओं को अभी भी इंसाफ़ नहीं मिल पाया है.
रेज़ कहती हैं, "कुछ संदिग्ध इराक़, कुछ सीरिया और कुछ यूरोप में हैं. कुछ मामलों में अदालत में ले जाने के लिए बहुत मज़बूत सबूत हैं."
हालांकि, सीरिया में अभी भी गृह युद्ध जारी है और इराक़ का क़ानूनी सिस्टम अभी भी समस्याओं से भरा पड़ा है.
अमरीका स्थित एनजीओ ग्लोबल जस्टिस सेंटर के अनुसार, यह लिंग-प्रेरित अत्याचार, नरसंहार और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है.
किस मुक़दमे में हुई सज़ा
हाल ही में इराक़ की एक कोर्ट ने यज़ीदी लड़की के बलात्कार के मामले में एक आईएस चरमपंथी को मौत की सज़ा सुनाई है. अशवाक़ हाजी की उम्र उस समय सिर्फ़ 14 साल की थी.
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अशवाक़ अब जर्मनी में रहती हैं लेकिन उनके ऊपर अत्याचार करने वाले शख़्स को सज़ा दिलाने के लिए वो इराक़ आईं.
अप्रैल 2020 में जर्मनी की एक कोर्ट ने एक व्यक्ति पर एक महिला और उसकी बच्ची को ग़ुलाम बनाने के मामले पर सुनवाई शुरू की. महिला की बच्ची को बाद में उस व्यक्ति ने बेहद गर्मी में खिड़की पर बांध दिया था जिससे उसकी मौद हो गई थी.
यह किसी यज़ीदी पीड़ित का पहला मामला था जिसकी सुनवाई यूरोप में हो रही थी.
रेज़ कहती हैं, "इंसाफ़ के लिए कई साल लगते हैं. सबूत इकट्ठा करना अपने आप में एक लंबी प्रक्रिया है. लेकिन हमने थोड़ी कामयाबी देखी है जो मुझे उम्मीद देती है."
इतिहास से सबक़
सद्दाम हुसैन के कार्यकाल में अपने परिवार पर हुए अत्याचार के बारे में जानते हुए भी रेज़ आशावादी हैं.
वो कहती हैं, "मेरी नानी और मेरी मां की दो बहनें रासायनिक हमले में मारी गई थीं और मेरे नाना अपाहिज हो गए थे. मेरी मां अपनी मां की मौत की गवाह बनी थीं और वो 10 साल में अपने घर की प्रमुख बन गई थीं."
मानवाधिकार संस्था ह्युमन राइट्स वॉच के आंकलन के अनुसार, 1998 में 50,000 से 1,00,000 कुर्दों की हत्या की गई. वहीं, कुर्द सूत्र इस संख्या को 1,80,000 बताते हैं.
सद्दाम को जल्दी फांसी दिए जाने के बाद कुर्दों को इंसाफ़ नहीं मिल पाया. रेज़ कहती हैं कि आधिकारिक रूप से कभी इसका मामला सद्दाम पर चल ही नहीं पाया.
वो कहती हैं, "इसी वजह से मैं यज़ीदियों के दर्द को समझ सकती हूं. जब मैं उनके लिए लड़ रही हूं तो मैं महसूस करती हूं कि सद्दाम ने जिन कुर्द लोगों को मारा मैं उनके लिए लड़ रही हूं."
वो मानती हैं कि कुर्दों के मुक़ाबले यज़ीदी समुदाय अधिक हिंसा का शिकार हुए.
"यज़ीदी कुर्दों के मुक़ाबले अल्पसंख्यकों में भी अल्पसंख्यक समूह है जिस वजह से उनके लिए परिस्थितियां और ख़राब थीं."
उम्मीद अभी बाकी है
संयुक्त राष्ट्र ने एक जांच आयोग का गठन किया है जो आईएस के अत्याचारों की जांच करेगा.
सबूतों को देखते हुए उन्हें उम्मीद है कि आईएस के साज़िशकर्ताओं को खोज निकालने में दुनिया साथ काम करेगी.
वो कहती हैं, "जब सद्दाम ने रासायनिक हथियारों से कुर्द बच्चों को मारा था तब इस ख़बर को दुनिया तक पहुंचने में काफ़ी समय लगा था. पूरी दुनिया ने देखा है कि यज़ीदियों के साथ क्या हुआ है."
उन्हें उम्मीद है कि यज़ीदी महिलाओं को इंसाफ़ मिलेगा और इससे उनकी आगे की पीढ़ी को लाभ मिलेगा.
वो कहती हैं, "हमें एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए लड़ने की ज़रूरत है ताकि इस तरह से आगे फिर न हो."
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