क्या बीतती है उन बच्चों पर जिनके मां-बाप शराबी होते हैं?

शराब सेहत के लिए ठीक नहीं है. बरसों से हम ये सुनते आए हैं. मगर मदिरा के शौक़ीनों की तादाद में कोई कमी नहीं आई. इसके शैदाई हर मुल्क़, हर सूबे, हर ज़िले, हर इलाक़े में मिल जाएंगे.

शराब को नुक़सानदेह बताने वाले बताते रहे. मगर मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन ने तो मधु यानी शराब की वक़ालत करते हुए मधुशाला काव्य की रचना ही कर डाली...हरिवंश राय बच्चन अपनी 'मधुशाला' की तारीफ़ में कहते हैं,

'सुन कल कल छल छल मधुघट से गिरती प्यालों में हाला

सुन रुनझुन रुनझुन चल वितरण करती मधु साक़ी बाला

बस आ पहुंचे दूर नहीं कुछ, चार क़दम अब चलना है

चहक रहे सुन पीने वाले, महक रही ले मधुशाला'

नज़्म के ज़रिए शराब की ऐसी ख़ूबसूरत वक़ालत शायद ही किसी ने की हो. मगर सिर्फ़ हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में लोग कहते हैं कि शराब सेहत के लिए नुक़सानदेह है.

इसकी तस्दीक़, ब्रिटेन में हाल ही में हुए एक सर्वे से हुई है. इस सर्वे के मुताबिक़, ब्रिटेन में हर पांचवां बच्चा अपने मां-बाप की शराब की लत की वजह से बुरे हालात का शिकार हुआ है. जिस परिवार में मां-बाप शराब के आदी हों, उस परिवार के बच्चों को बहुत तरह की मुश्किलें उठानी पड़ती हैं. उनकी परवरिश ढंग से नहीं हो पाती.

शराबी मां-बाप बच्चों से जैसा सलूक़ करते हैं, वो बच्चों के ज़ेहन में घर कर जाता है. बचपन बीत जाता है. मगर बच्चों के दिमाग़ से वो बुरी यादें नहीं बाहर निकल पातीं. उन्हें बचपन के खेल और क़िस्से-कहानी भले न याद रहें, मगर बुरा सलूक़ ज़रूर याद रहता है.

कुछ बच्चे तो ये फ़ैसला तक कर बैठते हैं कि उनके बच्चे होंगे तो वो वैसा बर्ताव उनके साथ बिल्कुल नहीं करेंगे.

मगर, ब्रिटेन समेत दुनिया में बहुत से ऐसे देश हैं जहां शराब लाइफ़स्टाइल का अटूट हिस्सा है. आपको सामाजिक सरोकारों की वजह से पीना पड़ता है. कुछ मजबूरी में पीते हैं. तो कुछ को इसकी लत लग जाती है. फिर जब किसी चीज़ की ज़्यादती होती है तो वो बच्चों समेत पूरे परिवार पर असर डालती है.

बचपन पर असर

बीबीसी रेडियो के जो मॉरिस ने ऐसी चार लड़कियों, करेन, लिज़, हिलेरी और लिन से बात की. इन सभी के मां या बाप या फिर मां-बाप दोनों शराब के आदी थे. ये सब बीस बाईस बरस की लड़कियां हैं.

करेन कहती हैं कि जब वो लिज़ से मिलीं तो उनकी लिज़ से फौरन दोस्ती हो गई. क्योंकि दोनों बचपन में एक ही तकलीफ़ से गुज़री थीं. करेन के पिता शराब के आदी थे. लिज़ की मां इस लत की गुलाम थी. लिज़ बताती हैं कि शराब खरीदने के लिए एक दिन उनकी मां ने उनके खिलौने बेच दिए थे. जबकि करेन के पिता उन्हें स्कूल से लाने के बजाए पब पहुंच गए थे. आज इन बातों को अर्सा गुज़र चुका है लेकिन फिर भी ये यादें उनके ज़हन में ताज़ा हैं.

बच्चों को अपनी मां के हाथ का बना खाना बहुत पसंद होता है. उन्हें लगता है उनकी मां दुनिया की सबसे अच्छी कुक हैं. वो उन्हें कुछ भी बना कर दे दें, बच्चे यही सोच कर खाते हैं कि जो खाना उनकी मां ने बनाया है, वही दुनिया का सबसे लज़ीज़ खाना है. लेकिन ज़रा उन बच्चों के बारे में सोचिए, जिनके मां या बाप उन्हें दो वक्त का अच्छा खाना भी मुहैया नहीं करा पाते हैं. इसलिए नहीं कि उनके पास पैसा नहीं है. बल्कि इसलिए कि वो बच्चों के खाने को नज़रअंदाज़ करके अपने शौक़ को पूरा करने लिए पैसा उड़ा देते हैं.

लिज़ के बचपन में भी ऐसा हुआ था. उन्हें बहुत बुरा लगता था जब स्कूल में बच्चे कहते थे कि कल उन्होंने डिनर में फलां चीज़ खाई. क्योंकि लिज़ की मां कभी ढंग का खाना ही नहीं बनाती थी. बल्कि हफ़्ते के अंत में तो उन्हें सिर्फ आलू खाकर गुज़ारा करना पड़ता था. क्योंकि उनकी मां सारे पैसे शराब ख़रीदने में ही उड़ा देती थी.

लिज़ कहती हैं कि उन्होंने अपनी मां को जिस राह पर चलते देखा था, उन्होंने भी उसी राह पर चलना शुरू कर दिया था. क्योंकि उन्हें सही और ग़लत की पहचान कराने वाला कोई नहीं था. बहुत छोटी उम्र में ही वो एक ख़राब रिश्ते से जुड़ गई थीं. लेकिन अपने दोस्तों की वजह से उनकी ज़िंदगी संभल गई.

परवरिश पर असर

दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके बचपन की यादें बहुत कड़वी हैं. वो आज भी उनका पीछा कर रही हैं. बचपन की तल्ख़ यादों से जूझने वालों में महिलाओं की तादाद ज़्यादा हैं. क्योंकि लड़कियां आम तौर पर ज़ज्बाती होती हैं. हरेक बात उनके दिल दिमाग में घर कर जाती है.

इन्हीं महिलाओं में से एक थीं लिन. वो अपनी शादी पर अपनी मां को ही देखना नहीं चाहती थीं. क्योंकि शराब की लत की वजह से उनकी मां की कोई अच्छी याद उनसे जुड़ी नहीं थी. उनका बचपन अपनी मां के लिए शराब की बोतलें लाने में गुज़र गया.

वो आज अपने पति के साथ बहुत खुश हैं. बहुत ज़्यादा शराब पीने की वजह से उनकी मां तेरह बरस पहले चल बसी थीं. लेकिन आज भी लिन का अपनी मां के घर जाने को जी नहीं चाहता.

वो कहती हैं जब उनकी मां की मौत हुई, तो, लोग उन्हें ये कह कर याद कर रहे थे कि उन्होंने एक मुश्किल भरी ज़िंदगी गुज़ारी. लेकिन उन्हें सिर्फ ये याद था कि उनकी मां ने कभी उन्हें मां बन कर पाला ही नहीं. अगर आज वो अपनी मां को याद करती हैं तो सिर्फ शराब के नशे में डूबी एक महिला ही उन्हें याद आती है. अपनी मां को देख कर उन्हें लगता था कि शायद उनकी ज़िंदगी में कभी कुछ अच्छा नहीं हो सकता.

ये कहानी सिर्फ चंद उन महिलाओं की नहीं है जिन्होंने इस तरह का बचपन जिया है. बल्कि हर उस बच्चे की कहानी है जो इस तरह के मां-बाप के यहां पैदा होता है. अपने बचपन से सीख लेते हुए ही बड़े होकर वो ज़िंदगी के कड़वे फ़ैसले भी ले बैठते हैं.

जैसे अगर किसी लड़की का पिता शराबी है तो वो यही फ़ैसला ले लेंगी कि वो कभी शादी नहीं करेगी. या किसी की मां शराब की लत का शिकार है, तो, उसका बेटा ये फ़ैसला ले सकता है कि वो शादी नहीं करेगा. या शादी करेगा भी तो शायद बच्चे नहीं करेगा. क्योंकि, एक डर दिल में घर कर जाता है कि पता नहीं जो महिला आएगी, वो उसके बच्चों की सही परवरिश कर भी पाएगी या नहीं.

कड़वी यादें

वहीं, कुछ लोग ये फैसला भी ले लेते हैं कि जैसा बचपन उनका रहा है, वैसा सलूक़ वो अपने बच्चों के साथ नहीं करेंगे. लेकिन कहते हैं ना कड़वी यादें और तजुर्बे इंसान के साथ ज़्यादा लंबे समय तक रहते हैं. तो बचपन की कड़वी यादों का डर हमेशा ज़ेहन में बना रहता है.

बच्चे मां-बाप की ज़िम्मेदारी होते हैं. किसी भी देश का भविष्य होते हैं. वो ना तो अपनी मर्ज़ी से दुनिया में आते हैं और ना हो खुद अपनी शख़्सियत बनाते हैं.

मां-बाप को बच्चे को जन्म देने से पहले ये तय कर लेना चाहिए कि क्या वो एक वजूद की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए तैयार हैं या नहीं. अगर नहीं हैं तो उन्हें एक ज़िंदगी को धरती पर लाने का कोई हक़ नहीं. हर इंसान की ज़िंदगी में बचपन बहुत अहम होता है. ये उसकी ज़िंदगी की नींव होता है. जब बुढ़ापे में अकेला महसूस करता है तो अपने बचपन को याद करके उदास या खुश हो लेता है. अब ये ज़िम्मेदारी मां-बाप की है कि वो अपने बच्चे को सारी ज़िंदगी खुश रहने वाली यादें देना चाहते हैं. या फिर उसे उदासियों के समंदर में धकेल कर खुद इस दुनिया से चले जाना चाहते हैं.

लत से बचना होगा

आपको भी अगर बच्चे को अच्छी परवरिश देनी है, तो शराब की लत से ख़ुद को हमेशा बचाने की कोशिश करें. मदिरापान से अच्छा है मधुशाला का पाठ किया जाए...

आप भी नोश फ़रमाएं...

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,

'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,

अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ

'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला.

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